‘बेडू पाको’ से उठता है अमेरिका का ये शहर, उत्तराखंड दंपती की अनोखी पहल
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में ऐसी प्रतिभाशाली युवाओं की कोई कमी नहीं है। बात म्यूजिक, सिंगिंग की या फिर खेल के मैदान की, युवाओं को जब मौका मिला उन्होंने अपनी काबिलियत का लोहा देश ही नहीं, विश्व में भी मनवाया है। पहाड़ के कई युवा विदेशों में नाम कमा रहे हैं। उत्तराखंड की अल्मोड़ा तहसील के मनान क्षेत्र के तल्ला ज्यूला गांव निवासी युवा वैज्ञानिक और उद्यमी डॉ. शैलेश उप्रेती की कंपनी ने 20 से 22 घंटे बैकअप देने वाली बैटरी का निर्माण किया है। डॉ. शैलेश उप्रेती का जन्म 25 सितंबर 1978 को अल्मोड़ा जिले के तल्ला ज्लूया (मनान) में पिता रेवाधर उप्रेती और माता चंद्रकला उप्रेती के घर हुआ। शैलेश बचपन से ही होनहार थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राइमरी स्कूल मनान से की। पिता रेवाधर ब्लॉक शिक्षा अधिकारी थे तो घर में पढ़ाई का महौल रहा। तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े शैलेश ने वर्ष 1992 में जीआइसी बागेश्वर से हाईस्कूल किया। वर्ष 1994 में जीआइसी भगतोला (अल्मोड़ा) से इंटर की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की। कुमांऊ विश्वविद्लाय के सोवन सिंह जीना परिसर 1997 से 2000 में अल्मोड़ा कैंपस से ही रसायन विज्ञान से एमएससी पढ़ाई के दौरान जूनियर सहयोगी था। अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से एक घंटे की दूरी पर मौजूद मनान गांव से ताल्लुक रखने वाले डॉक्टर शैलेश उपरेती और उनकी पत्नी पिछले 17 सालों से अमेरिका के न्यूयार्क शहर में रह रहे हैं.शैलेश न्यूयार्क में लिथियान बैटरी व्यवसाय में कार्यरत हैं. डा. शैलेष ने ऐसी तकनीक को पेटेंट कराया है जो न केवल लिथियम आयन बैटरी के जीवन को 20 साल के लिए बढ़ाती है। बैटरी की भंडारण क्षमता और शक्ति में भी सुधार करती है। इसे सौर ऊर्चा को स्टोर करने के साथ बिजली से चलने वाली कारों, ट्रकों और बस चलाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
उनकी कंपनी करीब 500 सौ लोगों को रोजगार भी दे रही है। लेकिन अपने देश और अपने प्रदेश उत्तराखंड की संस्कृति को भी पूरे जज्बे के साथ आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. डॉ शैलेश उप्रेती की पत्नी बिंदिया भगत उप्रेती ने साल 2009 में एक वेबसाइट बेडू पाको डॉट कॉम की शुरुआत की थी. इस वेबसाइट पर उन्होंने उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़ा कंटेंट डालना शुरू किया. इसका इन्हें अच्छा रिस्पांस मिला. खासकर उत्तराखंड मूल के प्रवासियों ने इस वेबसाइट की तारीफ भी की. आज तकरीबन 50 से 60 देशों में रह रहे उत्तराखंड मूल के लोग इस रेडियो और वेबसाइट के माध्यम से अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं. डॉ शैलेश ने ‘आ अब लौटे’ मुहिम के लिए ईटीवी भारत को धन्यवाद दिया. उन्होंने बताया कि इस वेबसाइट के माध्यम से वह विदेशों में मौजूद उत्तराखंड मूल के तमाम लोगों से जुड़े हुए हैं और उनसे बातचीत करते हैं. उनकी समस्या या फिर उनकी किसी भी प्रकार की जिज्ञासा को पूरा करने प्रयास करते हैं. इस दंपत्ति द्वारा अमेरिका में उत्तराखंड एसोसिएशन ऑफ नार्थ अमेरिका नाम से एक संगठन भी बनाया है. जिसके द्वारा यह संस्था देवभूमि से सात समंदर पार भी यहां के रीति रिवाज जैसे कि नंदा देवी राजजात और गोलू देवता सहित उत्तराखंड के तमाम त्योहारों का मंचन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, यहां की वेशभूषा और पकवानों को बढ़ावा देने का काम करती हैं डॉ शैलेश उप्रेती की शिक्षा दीक्षा अल्मोड़ा में ही हुई है. कुमाऊं यूनिवर्सिटी से पासआउट होने के बाद उन्होंने आईआईटी दिल्ली से पीएचडी की. जिसके बाद 2006 में वह एक कंपनी के साथ अमेरिका में काम करने लगे. डॉ शैलेश को अपनी संस्कृति से भी विशेष लगाव रहा है। डॉ शैलेश के गाने का शौक रहा है। उनके पहाड़ी गाने की दो कैसेट भी रिलीज हो चुकी है। इतना ही नहीं वह पहाड़ी वाद्य यंत्र भी बजाते हैं। हुड़का (पहाड़ी वाद्य यंत्र) बजाने में उन्हें महारत हासिल है। शैलेश का विवाह बिंदिया उप्रेती से हुआ।डॉ. शैलेश उप्रेती का लेखक अन्डोला परिवार से विशेष लगाव रहा है।
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।