रानीखेत मुक्ति धाम में मोक्षदा -हरित शवदाह प्रणाली की स्थापना की मांग, जन जागरण मंच ने वन संपदा को बचाने में बताया उपयोगी
रानीखेत – जन जागरण मंच रानीखेत ने विधायक डॉ प्रमोद नैनवाल से रानीखेत मुक्ति धाम में मोक्षदा -हरित शवदाह प्रणाली की स्थापना के लिए आर्थिक सहयोग की मांग की है। मंच का कहना है कि इस प्रणाली से शवदाह संस्कार होने पर समय और वन संपदा की बचत होगी। देश में अब तक इस प्रणाली के इस्तेमाल से सात लाख विकसित पेड़ बचाए जा चुके हैं।
जन जागरण मंच के संयोजक खजान जोशी का कहना है कि प्रायः अंतिम संस्कार में बड़ी मात्रा में लकड़ी का उपयोग होता है, जो पेड़ों के कटने की एक वजह भी है। एक दाह संस्कार में 400 से 500 किलो लकड़ी का उपयोग किसी-किसी के लिए आर्थिक बोझ भी होता है, जबकि ‘मोक्षदा-हरित शवदाह प्रणाली’ से यह महज 100 से 170 किलो की लकड़ी में हो जा रहा है। देश में मोक्षदा -हरित शवदाह प्रणाली की नौ राज्यों में 56 यूनिट कार्यरत हैं । शवदाह गृहों में इसका बेहतरी से इस्तेमाल हो रहा है।
ध्यातव्य है कि 50 से अधिक चिताओं से प्रतिवर्ष 25 हजार से अधिक दाह संस्कार हो रहे हैं। इस तरह इससे प्रतिवर्ष करीब दो लाख पेड़ों को बचाया जा रहा है। अगर इस आधुनिक चिता का उपयोग देश के सभी शवदाह गृहों में हो, तो प्रतिवर्ष करोड़ों पेड़ मनुष्यों की अंतिम संस्कार में जलने से बचने लगेंगे। एक अनुमान के मुताबिक देश में हर वर्ष करीब छह-सात करोड़ वृक्ष सिर्फ अंतिम संस्कार में प्रयुक्त होते हैं।
मोक्षदा-हरित शवदाह प्रणाली अष्ट धातु से बनी विशेष चिता है, जो धातु के फ्रेम में जमीन से ऊपर है, जिसमें आसानी से हवा जा सकती है, जो लकड़ी से निकलने वाली पूरी तपिश को शवदाह करने में सहायक बनाती है। चिता जब जलती है, तो उसमें 1000 डिग्री का तापमान होता है। परंपरागत जमीन की चिता में हवा का प्रवेश आसानी से नहीं होता, इस कारण इसमें ज्यादा लकड़ी का उपयोग होता है, जबकि इस तकनीक में पूरे तापमान का उपयोग होता है।
यह कुछ वैसा ही है जैसे एक भट्टी में नीचे पंखा लगाकर आग को तेज किया जाता है। इससे शवदाह में लकड़ी का खर्च घटकर आधा ही रह जाता है। इस चिता फ्रेम के नीचे एक अष्ट धातु की ट्रे भी लगी भी होती है, जिसमें चिता की राख और फूल एकत्रित हो जाते हैं। करीब ढाई घंटे के बाद इस ट्रे को बनाए गए स्थान पर रख दिया जाता है, जिसमें अगले दिन लोग फूल चुनने की विधि को पूरा कर सकते हैं। ट्रे को हटाने के बाद चिता फ्रेम को 20 मिनट में पानी से ठंडा करके फिर से अंतिम संस्कार के लिए उपयोग किया जा सकता है।
इस प्रणाली की शुरुआत करीब 30 साल हरिद्वार से हुई थी ।परंपरागत और मोक्षदा में कोई विशेष अंतर नहीं है। अंतर बस इतना है कि वह जमीन पर होती है, जबकि मोक्षदा फ्रेम पर है। दोनों में धार्मिक व्यवस्था व मान्यता एक जैसी है। लोग धीरे-धीरे लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं। फूल चुनने व कपाल क्रिया जैसी धार्मिक प्रथाएं इसमें भी पूरी की जाती है।
मोक्षदा -हरित शवदाह प्रणाली 👆👆