‘पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा पर्यावरण सम्मान-2025’ से सम्मानित हुए सी एम पपनैं

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प्रकृतलोक ब्यूरो

नई दिल्ली। भारत संस्कृत परिषद एवं पर्वतीय लोक विकास समिति के संयुक्त तत्वाधान में 8 जून को ललित महाजन सरस्वती बाल विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बसंत बिहार में राष्ट्रीय पर्यावरण गोष्ठी एवं सम्मान समारोह-2025 का आयोजन मुख्य अतिथि प्रो. गणेश भारद्वाज पूर्व निदेशक हिमाचल प्रदेश संस्कृत अकादमी तथा विश्व हिन्दू परिषद अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त संगठन महामंत्री कोटेश्वर राव की प्रभावी उपस्थिति तथा सेवानिवृत लेफ्टीनेंट जनरल ए एस रावत की अध्यक्षता व अति विशिष्ट अतिथियों प्रो.जय प्रकाश दुबे, संस्थापक निदेशक, दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म, दिल्ली विश्वविद्यालय, डॉ. नीलांबर पांडे, पूर्व निदेशक रक्षा मंत्रालय भारत सरकार, प्रो.देवी प्रसाद त्रिपाठी, डीन श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, प्रो (डॉ.) राजेंद्र कुमार जोशी दिल्ली विश्वविद्यालय के सानिध्य में आयोजित की गई।

राष्ट्रीय पर्यावरण गोष्ठी का श्रीगणेश मंचासीन अतिथियों के कर कमलों दीप प्रज्वलित कर किया गया। आयोजक संस्था पदाधिकारियों द्वारा मंचासीन अतिथियों के साथ-साथ आमंत्रित वरिष्ठ पत्रकार चंद्र मोहन पपनैं, कवि एवं लोकभाषा आंदोलनकारी दिनेश ध्यानी को अंगवस्त्र ओढ़ा कर व स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत अभिनन्दन किया गया।

आयोजित गोष्ठी में पर्यावरण के विषय पर मंचासीन प्रो. गणेश दत्त भारद्वाज द्वारा कहा गया, पर्यावरण शब्द संस्कृत आधारित है। ज्यों-ज्यों संस्कृत जनमानस के मध्य पिछड़ती गई, लोगों के विचार प्रदूषित हुए, पर्यावरण का हास हुआ। कहा गया, जब तक मनुष्य की नाभि स्वच्छ है तभी तक व्यक्ति स्वस्थ है। जब तक वैचारिक प्रदूषण समाप्त नहीं होगा, तब तक पर्यावरण का नुकसान होता रहेगा। पर्यावरण के मूल तथ्यों को जानने पहचानने के लिए संस्कृत का ज्ञान व समझ तथा वेदों का पठन-पाठन कर, अध्ययन कर उसके मूल भावों को जानना जरूरी है। कहा गया, सूर्य, सूर्य नहीं उसका रथ है, आभा मंडल है, उसके पीछे सूर्य है। कहा गया, प्रकृति अगर स्वस्थ है, हम स्वस्थ हैं। प्रकृति, वृक्ष, नदिया, आसमान सब स्वस्थ रहे।

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प्रोफेसर जय प्रकाश दुबे द्वारा कहा गया, समस्याएं कुछ दिख रही हैं, कुछ नहीं दिख रही हैं। हमने पहले अपना मूल आधार छोड़ना शुरू किया, विकास की मुख्य सीढ़ियों को पढ़ना बंद कर दिया गया। हम सब कुछ बिगाड़ते चले गए। पर्यावरण की चेतना को दुबारा चेताया गया है, जिस पर ध्यान जाना बंद हो गया था। कहा गया, पर्यावरण संरक्षण हेतु कुछ ऐसा नया करना होगा जो अभी तक नहीं किया गया है। जो कमियां हैं उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाए। कहा गया, पर्यावरण बिगड़ रहा है, संसाधनों का ज्यादा दोहन करने से। जनमानस को दोहन के क्रम को घटाना होगा, जिसमें शिक्षण की सारी व्यवस्थाएं हैं, जिन्हें हम पीछे छोड़ चुके थे। कहा गया, उतना ही दोहन करे, जितना जरूरी है। शिक्षा ग्रहण करने में बंदिश नहीं, जब चाहे उक्त विषय पर ज्ञान अर्जित करें। कहा गया, पत्रकारिता किसी भाषा की नहीं, किसी भी भाषा में हो सकती है। भाषाएं सिर्फ दो ही हों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय।

प्रोफेसर जय प्रकाश दुबे द्वारा कहा गया, जिस संस्कृत भाषा ने अन्य बोली-भाषाओं की समृद्धि में योगदान दिया, जिसको जननी कहा गया उसका अस्तित्व कम किया जाने लगा था। विगत आठ वर्षों में संस्कृत की समृद्धि में कदम बढ़ने शुरू हुए, संस्कृत में नाटक हुए, संवाद व गोष्ठियां हुई, कविताएं व अन्य साहित्य रचना की गई, उनका बड़े स्तर पर पठन-पाठन हुआ है। पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर जनमानस का ध्यान जाना अति महत्वपूर्ण है।

डॉ. नीलांबर पांडे द्वारा कहा गया, विद्वता और विद्वानों का सदा सम्मान होता रहा है। उनकी सदा पूजा होती रही है। संस्कृत पुरानी व समृद्ध भाषा रही है। अंग्रेजों ने हमारी संस्कृति को नष्ट करने का कार्य किया, जिसमें हमारी भाषा भी थी। आज अंग्रेजियत सब जगह व्याप्त है। उत्तराखंड में संस्कृत भाषा को बचाने का प्रयास किया जा सकता है। पर्यावरण को बचाने के लिए वायु मंडल, जल मंडल, मिट्टी, पर्वत, वनस्पति, जीव जंतु व मनुष्य को बचाने की जब तक कोशिश नहीं होगी तब तक पूर्ण रूपेड़ पर्यावरण को नहीं बचाया जा सकता।

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प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी द्वारा कहा गया, चारों तरफ के आवरण को अगर दूषित कर दिया जाए तो बीच वाला भाग नहीं बच सकता। कहा गया, मिनिमम आत्मा, मैक्सिमम परमात्मा है दोनों को संतुलित करना जरूरी है। पांच तत्व ही मूल रूप से ब्रह्मांड के आधार और सभी चीजों का स्रोत हैं। इन तत्वों में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश शामिल हैं। इन तत्वों के संयोजन से ही संपूर्ण सृष्टि बनी है, अगर ये प्रदूषित हुए तो समझो बीच में रहने वाला भी जरूर प्रदूषित होगा। आवरण ठीक रहने पर ही सुरक्षित रहा जा सकता है। कहा गया, खुद को सुखी रखने के लिए दूसरों को भी सुखी रखना होगा। पृथ्वी मृत नहीं पत्थर में भी जीवन है। पत्थर की भी आयु निश्चित है।

दौलत राम कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर (डॉ.) राजेंद्र प्रसाद जोशी द्वारा कहा गया, हमारे पास तीन फीसद पानी पीने योग्य है, अगर पर्यावरण का निरंतर हास होता रहा है तो निश्चय ही पीने योग्य पानी का प्रतिशत और कम होगा, निश्चय ही जल संकट होगा, हाहाकार मचेगा। पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन हेतु प्रोफेसर (डॉ.) राजेंद्र प्रसाद जोशी द्वारा विस्तार से ज्ञानवर्धक तथ्यों पर प्रकाश डाला गया।

गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे सेवानिवृत लेफ्टीनेंट जनरल ए एस रावत द्वारा चयनित विषयों पर कहा गया, संस्कृत का अर्थ है पवित्र, यह प्राचीन भाषा है, कई भारतीय भाषाओं की जननी है। संस्कृत में वेद, उपनिषद्, पुराण, और अन्य धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथ लिखे गए हैं। कहा गया, उनके एक परिजन संस्कृत के विद्वान अध्यापक थे, स्वयं उन्होंने भी बालपन में बेसिक शिक्षा तक संस्कृत का पठन-पाठन किया। बदलती व्याप्त शिक्षा पद्धति के कारण संस्कृत भाषा से दूर होना पड़ा। समझता हूं संस्कृत का ज्ञान जरूरती है, पठन-पाठन की ओर ध्यान देना जरूरी है। सेवानिवृत लेफ्टीनेंट जनरल ए एस रावत द्वारा पर्यावरण को दूषित करने वाले अनेकों तथ्यों व पर्यावरण संरक्षण पर ज्ञानवर्धक प्रकाश डाला गया।

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अखिल भारतीय संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण वर्ग एवं पर्वतीय लोक विकास समिति के संयुक्त तत्वाधान में पर्यावरण दिवस पर राष्ट्रीय विचार गोष्ठी और सम्मान समारोह में देश के अनेक राज्यों से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य कर रहे प्रबुद्ध जनों में प्रमुख रोशन बडोला (नई दिल्ली डीडीए के सेवानिवृत्त पूर्व अधिकारी), डॉ. सूर्य मोहन भट्ट, (पूर्व प्राचार्य एवं शिक्षाविद), चंद्र मोहन पपनै, (वरिष्ठ पत्रकार), दिनेश ध्यानी, (वरिष्ठ कवि एवं लोकभाषा आंदोलनकारी) डॉ.कृष्ण चंद्र पांडेय, (प्राध्यापक महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, कैथल), मीना कंडवाल, (निदेशक राज्यसभा),
प्रो.अशोक थपलियाल, (प्राध्यापक वास्तु विभाग, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली), डॉ. ग्रीन अवस्थी, (प्राध्यापक कमला नेहरू महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय), चंद्रमोहन शर्मा, (पूर्व प्रधानाचार्य, मेरठ), शिव कुमार शास्त्री, (व्यवस्थापक अशोक सिंहल वैदिक अनुसंधान केंद्र, गुरुग्राम), डॉ.अश्विनी शर्मा, (प्राध्यापक, राज्य शैक्षणिक अनुसंधान परिषद, हरियाणा सरकार) को ‘पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा पर्यावरण सम्मान-2025’ से मुख्य व विशिष्ट अतिथियों के कर कमलों प्रदान किए गए।

आयोजित राष्ट्रीय पर्यावरण गोष्ठी का संचालन संस्कृत विद्वान व पर्वतीय लोक विकास समिति संस्थापक तथा भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रालय में मीडिया सलाहकार के पद पर सुशोभित डॉ. सूर्य प्रकाश सेमवाल द्वारा बखूबी अति प्रभावशाली अंदाज में किया गया।
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