अपने ही राज्य में पहाड़ हार गया है :तिवारी
उत्तराखंड विधि आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और राज्य आंदोलनकारी दिनेश तिवारी एडवोकेट ने राज्य स्थापना दिवस पर बधाई दी है । कहा कि उत्तराखंड राज्य आज की राजनैतिक सच्चाई है और देश के अन्य हिमालयी राज्यों की तरह इस राज्य के सामने भी विकास और आगे बढ़ने की बड़ी चुनौतियाँ हैं । कहा कि उत्तराखंड राज्य का विकास जितना सच है इसका पिछड़ापन भी उतना ही सच है । कहा कि लेकिन इन इक्कीस वर्षों में राज्य की जो समग्र तस्वीर सामने आयी है वह एक पिछड़े हुए राज्य की है । कहा कि अपने निर्माण के समाजिक , आर्थिक और राजनैतिक उद्देश्यों को समझने और उन्हें पूरा करने में राज्य कमज़ोर साबित हुआ है । कहा कि उत्तराखंड की अर्थब्यवस्था कृषि पर आधारित है लेकिन इसका कृषि सेक्टर सबसे अधिक उपेक्षा का शिकार है । कहा कि कृषि , बाग़वानी , पशुपालन और परम्परागत ऊनी , बाँस , रिंगाल , ताँबे , लोहे , अयस्क जैसे सैकड़ों रोज़गार दे रहे उध्यमों के आधुनिकीकरण की कोई योजना नहीं बनाने और विशाल कृषि सेक्टर के उत्थान के लिए पर्याप्त बजट आवंटित नहीं करने के कारण राज्य की अर्थब्यवस्था कमज़ोर हुई है । कहा कि उतराखंड राज्य में बेरोज़गारी , पलायन कृषि का पिछड़ापन , सिंचाई ब्यवस्था का अभाव पहले की तरह आज भी एक बड़ी चुनौती हैं कहा कि देश के सबसे अधिक साक्षर और शिक्षित राज्यों में से एक होने के बावजूद यहाँ की बौद्धिक शक्ति का उपयोग राज्य के हित में कर सकने में राज्य विफल साबित हुआ है । कहा कि रोज़गार , गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर प्रबंधन में असफलता ने पहाड़ों से पलायन की रफ़्तार तिगुनी कर दी है । आरोप लगाया कि उतराखंड राज्य में भी पहाड़ हाशिए पर है और सरकार की नीतियों में अविभाजित उत्तरप्रदेश की तरह ही मैदान और तराई का विकास छाया हुआ है । कहा कि उत्तराखंड राज्य की अर्थ ब्यवस्था और श्रम शक्ति का ६० प्रतिशत से अधिक महिलाओं से आता है लेकिन महिलाओं की महान निर्माण क्षमता की सम्भावनाओं को समझने और उसके विकास के लिए बुनियादी काम नहीं हुआ है । कहा कि राज्य प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सिस्टम और मैनेजमेंट बनाने में भी अन्य पहाड़ी राज्यों से पिछड़ गया है कहा कि गाँव से शहर की ओर पलायन करने की बढ़ती परिस्थितियों के कारण पहाड़ के शहरों पर भी आवादी और भवनों का दबाव बढ़ गया है । कहा कि अपार प्राकृतिक संसाधनों और बन , खन संपदा के बाबजूद राज्य का बेरोज़गार , पिछड़ा और ग़रीब रह जाना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि बेहद शर्मनाक भी है । कहा कि एक पहाड़ी राज्य की राजधानी को पहाड़ में स्थापित नहीं कर पाने से और जिलों के निर्माण के प्रश्न को लगातार लटकाने की नीति से पहाड़ी अवाम का निराश होना स्वाभाविक है । कहा कि पहाड़ विरोधी नीतियों के रास्ते पर चलने से एक आत्मनिर्भर , स्वावलंबी राज्य बनने का सपना चकनाचूर हुआ है और अपने ही राज्य में पहाड़ हार गया है।