बकौल रोजी अली खान:“ ये ज़ोन ज़ोन लोग दिल्ली , लखनो में बैठे हैं जनता की आवाज़ सुन लें”
दिनेश तिवारी
घुमक्कड़ी रोज़ी भाई के स्वभाव में थी . वह इस छोटे से क़स्बेनुमा शहर के बड़े यायावर थे . फक्कड़ी उनका मिज़ाज था और हर छोटे बड़े इवेंट को अपने दम पर बड़ा बना देने की अद्भुत कला रोज़ी भाई को रोज़ी अलीखान बना देती थी .अपनी साइकिल से “ सैर कर दुनियाँ की गाफ़िल , जिंदगानी फिर कहाँ , ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ “ की तालीम पर चलने वाले रोज़ी भाई ने कुमाऊँ का कौन सा ऐसा शहर होगा जिसे नापा नहीं होगा . वह अभी रानीखेत तो कुछ देर बाद गरमपानी की सड़कों पर उनकी साइकिल दिख जाती , कहीं साइकिल पर बैठे हुए तो कहीं साइकिल को अपने साथ पैदल ही ले जाते हुए ! वही एक पठानी सूट उस पर चढ़ा हुआ धारीदार कोट और कोट की ऊपर की जेब पर लगे हुए मेडल . इस दौर में ही नहीं बल्कि हर दौर में रोज़ी भाई की यही पहचान रही . शहर कोई भी हो और मसला कुछ भी हो रोज़ी भाई का साइकिल पर लगा माइक बोल पड़ता था . मुझे याद है कि भवाली में शराब की दुकान को बंद करने के लिए मुख्य चौराहे पर धरना चल रहा था , यह १९८४ की बात है मैं धरने को संबोधित कर रहा था कि देखा एक शख़्स यह कहते हुए धरना स्थल में घुस आया कि मुझे भी दो शब्द शराब की बुराई पर कहने हैं “ . हमारे साथियों ने उन्हें बड़ी मुश्किल से यह कह कर शांत कराया कि उन्हें ज़रूर अपनी बात कहने का मौक़ा दिया जाएगा . बाद में पता चला कि यह रोज़ी भाई हैं , नैतिक शिक्षा का अपने संसाधनों से जगह जगह प्रचार करते हैं . वह उस धरने में अपने अन्दाज़ में बोले और आंदोलन को अपना समर्थन भी दिया . ऐसे ही शहर से बाहर अनेक आंदोलनों , सरकारी , ग़ैरसरकारी कार्यक्रमों में बाद में उनसे मुलाक़ात होती रही .ऐसा ही एक और वाक़या १९८९ का याद आ रहा है जब द्वाराहाट में उत्तराखंड राज्य की माँग को लेकर चौराहे पर जन सभा चल रही थी कि अपने चित-परिचित अन्दाज़ के साथ रोज़ी भाई सभा में पहुँच गए . मुझे हितचिंतक मैदान से दी गयी उनकी स्पीच आज भी रोमांचित करती है “ ये ज़ोन ज़ोन दिल्ली , लखनो में बैठे हैं जनता की आवाज़ सुन लें और ये लोग जो माँग रहे हैं इन्हें दे दें . फिर जब उन्हें बताया गया कि यह अलग उत्तराखंड राज्य की माँग के लिए सभा हो रही है तो कहने लगे कि ये ज़ोन सरकार हैं मेरी बात सुन ले और अलग उत्तराखंड राज्य की घोषणा अभी और यहीं पर की यहीं पर कर दे “. उनका ये भाषण और भारी भीड़ का तालियों की गड़गड़ाहट से अभिवादन आज भी याद आने पर जीवंत हो उठता है .
ऐसे ही अनेक रोचक प्रसंग रोज़ी भाई से जुड़े हैं . रानीखेत में हर राष्ट्रीय पर्व पर गांधी चौक उनके सामाजिक कर्म से आबाद रहता था . गांधीपार्क ही क्यों , पंतपार्क या जहाँ भी उन्हें स्पेस मिलता वह अपनी महफ़िल जमा लेते . फिर मसला चाहे २६ जनवरी का हो या १५ अगस्त , दो अक्तूबर या १४ नवम्बर का अपनी बाल सेना के साथ वह पेंटिंग , कविता लेखन , वादविवाद प्रतियोगिता जैसे इवेंट्स बड़ी बेबाक़ी और सफलता के साथ आयोजित कर लेते . रानीखेत में गांधीचौक पर सभा करना हर किसी के बस की बात नहीं है यहाँ पर बड़ी भीड़ भी बहुत कम नज़र आती है लेकिन यह रोज़ी भाई ही थे जो अकेले माइक लेकर गांधी चौक पर गांधी जी की मूर्ति के बग़ल में खड़े हो कर स्पीच दे जाते . कोई सुने या न सुने और कौन क्या कह रहा है इसकी परवाह रोज़ी भाई ने की ही कब ? उर्स के मुशायरे और कवि सम्मेलन प्रोग्राम के भी वह चाहे , अनचाहे मेहमान रहे और अपनी कविता , नज़्म सुना कर ही जाने वाले , और मानने वाले शख़्स हुए रोज़ी भाई !.
अनेक यादें हैं उनसे जुड़ी हुई . अलग ही तरह का करेक्टर , फक्कड़ , बेबाक़ , निडर न जाने क्या क्या !
यह शायद रानीखेत की मिट्टी की ही ख़ासियत है कि यहाँ इदरीश बाबा की फ़ुटबाल भी चर्चा में रही तो रोज़ी भाई की साइकिल भी . दोनो ही अपने अन्दाज़ में जिए और अभाव में गुज़रे . यह हमारा करेक्टर है कि जो जीते जी कभी किसी की ख़बर नहीं लेता , हाँ मरने के बाद टेसुवे ज़रूर ज़ोर -ज़ोर से बहाता है. रोज़ी भाई हों सके तो माफ़ करना इस बीच तुम्हारी ख़बर लेने नहीं आ सके .
लेकिन जो भी हो अब एक ख़ालीपन रहेगा . हर पंद्रह अगस्त , पंत जयंती , बाल दिवस , छब्बीस जनवरी और ऐसे ही अनेक मौक़ों पर तुम बहुत याद आओगे रोज़ी भाई ! और नन्हें -नन्हें बच्चे भी तुम्हें बहुत मिस करेंगे . साइकिल तो शहर में बहुत आएँगी और दौड़ेंगी भी पर माइक लगी नैतिक शिक्षा का गुणगान करती साइकिल अब कहाँ देखने को मिलेगी !
अलविदा रोज़ी भाई ! तुम याद और बहुत याद आओगे .
दिनेश तिवारी. सोशल एक्टिविस्ट