निरंकुश आवारा पशु और छावनी का लुंज-पुंज प्रशासन
जिस तरह इंसान जब कोई अपराध करता है तो पुलिस उसे हवालात में बंद कर देती है ऐसे ही छावनी परिषदों में पालतू पशुओं के लिए भी हवालात का प्रावधान रहा है जिसमें पालतू पशुओं को नियमों का उल्लंघन करने पर बंद किया जाता था। इन पशु हवालात को स्थानीय भाषा में खोड़ उर्दू भाषा में ‘काज़ी हाउस’ और हिंदी में ‘पशु बंदी गृह’ कहा जाता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि किसी दौर में सफाई के लिए पहचान रखने वाली छावनी परिषद में जहां मौजूदा वक्त में पालतू-आवारा पशुओं की तादात बेतहाशा बढी़ है,वही काजी हाउस की व्यवस्था छावनी परिषद में विधित होने के बावजूद अस्तित्व शून्य बना दी गई है।रानीखेत में छावनी परिषद कार्यालय के बगल में किसी दौर के काजी़ हाउस की जगह अब स्टोर रुम ने ले ली है।
उल्लेखनीय है कि काज़ी हाउस का आरंभ अंग्रेजों के समय में हुआ था,उन्होंने काज़ी हाउस को कानूनी मान्यता दी। जिसमें पालतू पशुओं को पकड़ कर काजी़ हाउस या कहें पशुबंदी गृह में बन्द कर दिया जाता है। यह कार्रवाई ऐसे पालतू पशुओं के खिलाफ की जाती है, जो सड़क पर आवारा घूमते और गंदगी करते पकड़े जाते हैं। इनमें गाय, भैंस, घोड़ा, बकरी और पालतू कुत्ता भी शामिल है।
नगर निकाय अथवा छावनी परिषद के कर्मचारी ऐसे आवारा घूम रहे पालतू पशुओं को पकड़कर काज़ी हाउस यानी पशु बंदी गृह में बंद कर देते हैं। जब मालिक अपने पशुओं को ढूंढते हुए काजी हाउस पहुंचता है तो छावनी परिषद प्रशासन उस पर जुर्माना लगाकर पशु को छोड़ देते हैं। एक हफ्ते तक अगर पालतू पशुओं का मालिक अपने पशु को लेने नहीं आता है तो पशु की नीलामी कर दी जाती है। हालांकि,ये कायदे कानून अब सिर्फ छावनी परिषद की एक्ट बुक तक ही सीमित हैं और अरसे से काज़ी हाउस अस्तित्व में नहीं हैं। रानीखेत में छावनी परिषद कार्यालय के बाजू में कभी काजी हाउस हुआ करता था।
मौजूदा वक्त में छावनी परिषद रानीखेत के अधीन कोई भी काजी हाउस संचालित नहीं है। जिस कारण हाल के वर्षों में पालतू व आवारा पशुओं की तादात छावनी क्षेत्र में बेतहाशा बढ़ चुकी है।सड़कों ,गलियों,चौराहों पर सांड ,गायें बछडे़ अपना तबेला बनाए बैठे रहते हैं।इसके अलावा स्थानीय रहवासी अपनी छतों पर उत्पाती बंदरों के कब्जे से भी परेशान है। एक ओर जहां अम्बाला ,जालंधर सहित अन्य छावनी परिषदें अपनी छावनियों को ‘नो कैटल जोन’ बनाने का अभियान चलाते हुए आवारा गायों को गौशाला का रास्ता दिखाने के साथ आवारा पालतू पशुओं के मालिकों से दंड शुल्क वसूलते रहे हैं वहीं छावनी परिषद रानीखेत का प्रशासन वर्षों से इस मामले में हाथ पर हाथ धरे बैठा है ।नतीजतन सड़कों पर आवारा पशुओं के कारण न सिर्फ
कई राहगीर और वाहन चालक चोटिल हो चुके है(इनमेंपूर्व में कुछ बुजुर्ग नागरिकों की मौत भी हो चुकी है।) अपितु गली -सड़कों पर गंदगी आम बात हो गई है।सदर बाजार, खडी़ बाजार, जरुरी बाजार, लालकुर्ती सहित शायद ही कोई मुहल्ला ऐसा हो जहां आपको आवारा गायों ,कुत्तों के समूह न दिखें।
आवारा पशुओं से छावनी नगर को निजात दिलाने की बात अब तक सिर्फ छावनी परिषद की बैठकों में चर्चा तक ही सीमित रही है,इस विषय में संकल्पित कदम छावनी परिषद आज तक नहीं उठा पाई है।जबकि छावनी अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है कि ऐसे किसी पशु का स्वामी या रखवाला जिसका पशु छावनी के अंदर किसी पथ में अथवा सार्वजनिक स्थान में बंधा अथवा रखवाले के बिना घूमता पाया गया तो जुर्माना जोकि रूपया 1000 तक है दंडनीय होगा।
छावनी संशोधित अधिनियम 2006 धारा 289(3)में भी स्पष्ट उल्लेख है कि’ यदि कोई व्यक्ति किसी पशु का मालिक हो,उसे किसी सड़क या सार्वजनिक स्थान पर खुले में घूमने देगा तो उस पर 2,500 रूपया तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा या कैंट बोर्ड के किसी भी कर्मचारी द्वारा पशु गृह में बंद किया जा सकेगा।’ छावनी परिषद के पास स्पष्ट कानून होने के बाद आखिर वह इतनी असहाय क्यों हैं?वह भी तब जब छावनी परिषद क्षेत्र में आवारा घूम रही पालतू गायों के कान में टैग लगा है जिससे उसके मालिक की पहचान आसानी से की जा सकती है और उस पर अर्थ दंड लगाया जा सकता है।रही बात आवारा गोवंशीय पशुओं की तो उन्हें गौशाला भेजा जा सकता है।
पिछले कुछ वर्षों से छावनी परिषद छावनी क्षेत्र में आवारा कुत्तों की बढ़ती तादात पर भी आंखें मूंदे बैठी है। छावनी अधिनियम में पागल ,आवारा,गैर पंजीकृत कुत्तों को मारने की व्यवस्था रही है लेकिन एंटी बर्थ कंट्रोल(2001)डाॅग्स रूल आने के बाद स्थानीय प्रशासन आवारा कुत्तों का पशु कल्याण संस्था के सहयोग से बर्थ कंट्रोल आपरेशन कर सकता है उन्हें मारना गैर कानूनी है।आवारा कुत्तों को एक स्थान से दूसरे स्थान में शिफ्ट करना भी पीसीए एक्ट के तहत पशु क्रूरता अधिनियम 1960 में आता है। ऐसे में आवारा कुत्तों का बधियाकरण ही एक मात्र रास्ता है।छावनी परिषद ने वर्षों पूर्व अल्मोडा़ की एक पशु कल्याण संस्था के सहयोग से आवारा कुत्तों का बधियाकरण कराया लेकिन उसके बाद इतिश्री कर ली, जबकि यह कार्यक्रम दो वर्ष के अंतराल में सतत् रुप में चलाया जाना चाहिए था।
छावनी क्षेत्र के नागरिक आवारा पशुओं पर छावनी परिषद द्वारा नियंत्रण न रखने से कुपित भी हैं और दुःखी भी ,क्योंकि आवारा पशुओं का शिकार उन्हें ही बनना पड़ता है। बाजार क्षेत्र सहित गलियों में साँडों व आवारा पशुओं का निरंकुश होकर घूमना नागरिकों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। इनके आपस में झगड़ने के कारण कई बुजुर्ग-महिलाएँ एवं बच्चे भी इनकी चपेट में आने के कारण चोटिल हो जाते हैं। कभी-कभार तो छोटे स्कूली बच्चे इन आवारा पशुओं के आपसी झगड़े को देख काफी भयभीत हो जाते हैं। अक्सर खाद्य व सब्जी आदि की दुकानों पर भी यह अपना मुँह मारते रहते हैं। भयावह स्थिति तब बन जाती है, जब ये आवारा पशु मार्गों के किनार कूडे़दानों के पास कचरे के ढेरों पर आपस में झगड़ते हैं। कई बार तो बाजार क्षेत्र में भी इनके आपस में झगड़ने से यातायात बाधित होता है।कई बार दिन हो या रात आवारा पशु सड़क पर झुंड बनाकर बैठ जाते हैं जिससे नागरिकों का निकलना मुश्किल हो जाता है।मुख्य बाजार में स्थानीय नागरिकों के साथ ही पर्यटकों के लिए भी ये भय का कारण बनते जा रहे हैं।
ऐसे में निरंकुश आवारा पशुओं की बढ़त पर तत्काल अंकुश लगाए जाने की जरुरत है अगर ऐसा नहीं हुआ तो पर्यटन नगरी रानीखेत आने वाले दिनों में पर्यटकों की नहीं आवारा पशुओं की सैरगाह बन जाएगी। देखना होगा कि छावनी परिषद प्रशासन की कुम्भकर्णीय नींद कब टूटती है।
©️विमल सती