कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल में रानीखेत महाविद्यालय – इतिहास विभाग की शोधार्थी भावना जुयाल का पीएच.डी. वाइवा सम्पन्न।

रानीखेत, 24 सितम्बर। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रानीखेत के इतिहास विभाग की शोधार्थी श्रीमती भावना जुयाल ने आज कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल के डी.एस.बी. कैम्पस में सफलतापूर्वक पीएच.डी. वाइवा सम्पन्न किया। भावना जुयाल ने अपना शोध कार्य महाविद्यालय के इतिहास विभाग में कार्यरत डॉ॰ पंकज प्रियदर्शी, असिस्टेंट प्रोफेसर के निर्देशन में पूरा किया। उनका शोध विषय—
“पश्चिमी रामगंगा घाटी में अवस्थित देवालयों का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन”—क्षेत्रीय इतिहास, स्थापत्य एवं संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस शोध में उन्होंने पश्चिमी रामगंगा घाटी में स्थित प्राचीन एवं मध्यकालीन देवालयों के स्थापत्य, धार्मिक महत्व, स्थानीय परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया है।
पीएच.डी. वाइवा के अवसर पर बाह्य परीक्षक के रूप में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से प्रख्यात इतिहासविद् प्रो॰ प्रभात कुमार सेंगर उपस्थित रहे। इस मौके पर कुमायूं विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के संयोजक प्रो॰ संजय घिल्डियाल, डॉ॰ रीतेश साह, डॉ॰ शिवानी रावत, डॉ॰ मनोज बाफिला एवं डॉ॰ भुवन शर्मा भी मौजूद रहे और उन्होंने शोधार्थी से संबंधित प्रश्नोत्तर एवं विचार-विमर्श किया।
श्रीमती भावना जुयाल के सफल शोध कार्य एवं पीएच.डी. उपाधि प्राप्त करने पर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो॰ पुष्पेश पांडे ने उन्हें हार्दिक बधाई दी। साथ ही, विभाग के प्राध्यापकों डॉ॰ दीपा पांडे, डॉ॰ महिराज मेहरा, डॉ॰ पी.एन. तिवारी, डॉ॰ ब्रजेश जोशी, डॉ॰ जे.एस. रावत सहित अनेक शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने भी उनकी इस शैक्षणिक उपलब्धि पर शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।
महाविद्यालय परिवार का मानना है कि भावना जुयाल का यह शोध न केवल पश्चिमी रामगंगा घाटी के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व को उजागर करेगा बल्कि क्षेत्रीय इतिहास और धरोहर संरक्षण के नए आयाम भी खोलेगा। साथ ही यह उपलब्धि महाविद्यालय की शोधपरक एवं शैक्षणिक गतिविधियों को और अधिक गति प्रदान करेगी। श्रीमती भावना जुयाल ने अपनी स्नातक एवं परास्नातक शिक्षा इतिहास विषय से पूर्ण की है। उच्च शिक्षा के दौरान ही उन्हें प्राचीन इतिहास और क्षेत्रीय सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में गहरी रुचि रही। उन्होंने विभिन्न संगोष्ठियों एवं सेमिनारों में शोधपत्र प्रस्तुत किए हैं और शोध यात्रा के दौरान पश्चिमी रामगंगा घाटी के अनेक दुर्गम क्षेत्रों का भ्रमण कर वहां के मंदिरों एवं स्थापत्य का प्रत्यक्ष अध्ययन किया। उनका यह शोध कार्य न केवल शैक्षणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि क्षेत्रीय संस्कृति, स्थापत्य कला और इतिहास के संरक्षण में भी अहम योगदान देगा।


