..तो जानिए ,छावनियों के नागरिक क्षेत्रों को अलग करने और राज्य के नगर निगमों, नगर पालिकाओं के साथ उनके विलय के लिए क्या हैं जारी दिशा-निर्देश

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रानीखेत – पिछले सप्ताह के अंत में आई इस खबर से कि शीघ्र ही छावनियों का नागरिक क्षेत्र सैन्य छावनियों के नियंत्रण से मुक्त हो जाएगा; आज़ादी के बाद से ही भूमि -भवन संबंधी कठोर कानूनों का दंश झेल‌ रहे छावनी के नागरिकों में खामोशी भरी खुशी तारी है।

गत सप्ताह 27जून को छावनियों को लिखे गए पत्र में भारत सरकार ने नागरिक क्षेत्रों को अलग करने और राज्य नगर पालिकाओं के साथ उनके विलय को लेकर व्यापक गाइडलाइन जारी की है। पत्र में कहा गया है कि यह दिशानिर्देश पिछले सप्ताह रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने की अध्यक्षता में हुई बैठक में तैयार किए गए थे।

भारत सरकार ने पत्र में कहा है कि, “क्षेत्र में नागरिक सुविधाएं और नगरपालिका सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई सभी परिसंपत्तियों के स्वामित्व के अधिकार राज्य सरकार/राज्य नगर पालिकाओं को बिना किसी शुल्क के हस्तांतरित किए जाएंगे। छावनी बोर्डों की परिसंपत्तियां और देनदारियां राज्य नगर पालिकाओं को ट्रांसफर की जाएंगी।”

पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि सरकार जहां लागू होगा, वहां स्वामित्व का अधिकार बरकरार रखेगी.आदेश में कहा गया है कि, “नगरपालिका अपने अधिकार क्षेत्र के तहत ऐसे क्षेत्रों पर स्थानीय कर/शुल्क लगा सकेगी।हालांकि इन क्षेत्रों को अलग करते समय सशस्त्र बलों की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को उचित प्राथमिकता दी जाएगी। यदि ऐसी कुछ निजी स्वामित्व वाली भूमि है जिसे अलग करने से सैन्य स्टेशन की सुरक्षा पर असर पड़ सकता है, तो मामले के आधार पर इस पर विचार किया जाएगा.”

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ध्यातव्य है केंद्र सरकार नागरिक क्षेत्रों को रक्षा क्षेत्रों से अलग करने की प्रक्रिया में तेजी ला रही है। बताया जा रहा है कि पहले- पहल‌ देश की 13 सैन्य छावनियों की संपत्तियों के अधिकार स्थानीय नगर निगमों, नगर पालिकाओं को हस्तांतरित किए जाएंगे। इसका मतलब यह है कि सैन्य स्टेशन सेना के पास रहेंगे, जबकि उनके बाहर के क्षेत्र राज्य सरकार को ट्रांसफर कर दिए जाएंगे।

ध्यातव्य है कि रक्षा मंत्रालय के पास करीब 18 लाख एकड़ जमीन है।इस तरह यह मंत्रालय देश का सबसे बड़ा भूस्वामी है। अतीत में संसदीय पैनल ने गैर-सैन्य उद्देश्यों, जैसे कि छावनी के नागरिक क्षेत्रों में नागरिक व्यय के लिए रक्षा निधि के उपयोग पर चिंता जताई थी.देश में वर्तमान में 62 अधिसूचित छावनियां हैं। इनका कुल क्षेत्रफल 1.61 लाख एकड़ है।फिलहाल सभी नागरिक और नगरपालिका मामलों को सैन्य छावनी बोर्ड संभालते हैं।

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अब सवाल यह उठता है ‌कि भारत सरकार सैन्य छावनियों से नागरिक बसासत को अलग करने‌ की मंशा क्यों रखती है? अव्वल तो रक्षा मंत्रालय के वित्त कोष का एक बड़ा हिस्सा नागरिक आबादी की सुविधाओं और सैन्य छावनी बोर्ड के संसाधनों पर व्यय होना है,इस व्यय के सापेक्ष छावनी बोर्ड की आय नगण्य है।दूसरा भारत सरकार का मानना है कि छावनी एक पुरातन औपनिवेशिक विरासत का हिस्सा है और वर्तमान व्यवस्था में इन क्षेत्रों के निवासी राज्य सरकार की कुछ कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं।

यहां यह महत्वपूर्ण जानकारी देते चलें कि छावनियों में नागरिक क्षेत्र और सैन्य क्षेत्रों को अलग-अलग करने का मुद्दा स्वतंत्रता के बाद के दौर से ही चला आ रहा है। सन 1948 में कांग्रेस के दिग्गज नेता एसके पाटिल की अध्यक्षता वाली एक कमेटी ने छह छावनियों में नागरिक क्षेत्रों को अलग करने की सिफारिश की थी, लेकिन इसके खिलाफ जनता के विरोध का हवाला देते हुए यह योजना रद्द कर दी गई थी। उसके बाद से यह मुद्दा कई मौकों पर सामने आया।कई मौकों पर छावनियों की नागरिक आबादी सड़कों पर भी उतरी लेकिन बताया जाता है कि उच्च स्तर पर रक्षा मंत्रालय में बैठे आईडीएस अधिकारियों ने प्रशासन की ओर से भेजी जाने वाली तत्संबंधी फाइलों की जीन को दांत से कसकर पकड़े रखा ,जीन ढीली नहीं होने दी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले वर्ष फाइलों की जीन और धिकारियों की मंशा को ढीला कर सैन्य छावनियों से नागरिक आबादी को पृथक करने का निर्णय लिया। हालिया दिनों में आए ताजा दिशा निर्देश को इसी उजाले में देखा जाना चाहिए ।

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