विक्षिप्त असहायों का मसीहा पुलिस कर्मी,इस काम के लिए अवकाश लेकर आया आज रानीखेत
रानीखेत: मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के प्रति समाज में एक ख़ास तरह की भ्रांति है और लोग उन्हें देख दूर से निकलने की कोशिश करते हैं, लेकिन उत्तराखंड पुलिस के एक जवान में विक्षिप्तता और गरीबी के शिकार लोगों की सेवा का ऐसा जुनून सवार है कि कि वह ड्यूटी के दौरान हो या अवकाश पर, उसने अपना समय असहाय जनों को समर्पित कर दिया है। आज गुरूवार को पुलिस का यह जवान एक विक्षिप्त की सेवा के लिए तैनाती स्थल नैनीताल से अवकाश लेकर रानीखेत पहुंचा।
जी हां,यहां बात हो रही है हालिया महीनों तक रानीखेत कोतवाली में तैनात रहे उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत दिलीप कुमार की । इनदिनों नैनीताल में ड्यूटी कर रहे दिलीप कुमार आज गुरूवार को यहां गांधी चौक में खुले आसमां के नीचे रहने वाले एक विक्षिप्त का हाल जानने पहुंचे,पहले से ही उसकी शारीरिक सफाई,इलाज और देखरेख करते रहे दिलीप कुमार ने यहां पहुंचकर गांधी पार्क में विक्षिप्त को बैठाकर वहीं किया जो वह पिछले लाॅक डाउन के दरमियान करते रहे थे मसलन उसे नहलाने, बाल और नाख़ून काटने, अपने साथ लाए कपड़े पहनाने से लेकर खाना खिलाने तक का काम ।
दिलीप कुमार के भीतर का यह सेवा भाव पिछले लाॅकडाउन में सार्वजनिक हुआ जब लोगों ने उन्हें एक विक्षिप्त को गांधी पार्क में खुद अपने हाथों से नहलाते तो कभी हेयर सलून में ले जाकर उसके बाल कटवाते और कभी अपनी बाइक के पीछे बैठाकर इलाज के लिएअस्पताल ले जाते देखा था उसके बाद वे कुछ गरीब परिवारों के लिए दो रोटी का जुगाड़ करते दिखे और बाजार से राशन खरीदकर गरीबों की चूल्हे की मद्धम पड़ती आंच बचाते दिखे,तो कभी गांधी चौक पर सालों से रह रही विक्षिप्त महिला को नारी निकेतन भेजे जाने से पहले उसे नए कपडे़ देने से लेकर स्थानीय अस्पताल में उसका शारीरिक परीक्षण कराते नजर आए थे।
अपने सेवाभावी कार्यों से तब दिलीप कुमार अचानक चर्चा में आए थे और पुलिस महकमे सहित स्थानीय संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित भी किया था।
आज फिर एक बार दिलीप अवकाश लेकर रानीखेत आए और सीधे उस विक्षिप्त के पास पहुंचे जिसकी सेवा का जूनून उन्हें यहां खींच कर लाया था।उन्हें देखते ही विक्षिप्त व्यक्ति के मैल भरे चेहरे पर मुस्कान तिर आई। दोनों का लाॅकडाउन के दौरान मजबूती पा चुका परस्पर प्रेमाभाव ऐसा लगा जैसे पुनः खिलखिला उठा हो। विक्षिप्त थोडी़ देर नजरें झुकाएं रहा फिर सवालिया आंखों से दिलीप को देखता रहा मानो शिकायती अंदाज में पूछ रहा हो ,”इतने महीने कहां गायब हो गए थे मित्र? सवाल जायज था आखिर दिलीप से उसका गहरा नाता जो बन गया था इसलिए उनकी कमी अखरनी स्वाभाविक थी।
दिलीप ने उसे दुलार दिया ,नाश्ते खाने का इंतजाम किया और उसे नहलाने उसकी सफाई करने ,उसके लिए लाए कपडे़ पहनाने में जुट गए।
इस भागती दौड़ती जिंदगी के दौर में आज भी ऐसे लोग हैं जो, विक्षिप्त,बेसहारा लोगों के दर्द को अपना समझ कर उनकी सहायता करते हैं।दिलीप कुमार इसकी मिसाल हैं जबकि आम आदमी विक्षिप्तों को हेय दृष्टि से न सिर्फ देखता है अपितु अपने पास भी नहीं फटकने देता है।सचमुच दिलीप तुम विक्षिप्तों ,असहायों के मसीहा बनकर उभरे हो।