“खुशियां गर ढूंढो तो‌ मिल ही जाता करती हैं,हमने भी ढूंढ ली एक बेजुबां की शक्ल में “

ख़बर शेयर करें -

फ़र्क नहीं पड़ता कौन‌ गीता कौन कुरान पड़ता है

इंसान तो वह है जो बेजुबानों की ज़ुबान पढ़ता है।

जी हां,दया एक‌ ऐसी भाषा है जिसे बोलने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं पड़ती इसे मूक कर्म के जरिए भी जताया जा सकता है ऐसे ही मूक कर्म में निमग्न लोगों से मिलाना आज इस खबर का मक़सद है।

देश-दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो जरूरतमंद इंसानों के प्रति अपनी दयालुता दिखाते हैं,उनके लिए खाने से लेकर पैसों तक की व्यवस्था करते हैं. लेकिन बेजुबान जानवरों के प्रति दया रखने वाले इंसान बहुत कम ही मिलते हैं. ऐसे ही चंद लोगों में कुछ ऐसे इंसानियत के फ़रिश्ते छोटे से कस्बे रानीखेत में भी हैं जो अक्सर सड़कों में घूमते मासूम जानवरों के‌ लिए हमेशा फिक्रमंद देखें गए हैं वे न सिर्फ इन्हें एक वक्त का खाना खिला अपने पशु प्रेम को समाज के सामने लाते‌ रहे हैं अपितु समाज को इसके लिए  प्रेरित भी करते रहे हैं।

सच कहें तो सब काम छोड़कर बेजुबानों की सेवा में जुटने की बेकरारी इन‌ युवाओं का जुनून बन गया है। तभी तो युवाओं की यह सेवाभावी टीम हाथों में ‌भोजन के डब्बे व पैकेट लिए पिछले 72 घंटे की बारिश में सड़कों के आस -पास भूख से अकुलाए इधर-उधर बरामदों में ‌दुबके बैठे बेजुबानों को तलाशने‌ निकल पड़ी।आज दोपहर इस सेवाभावी टीम का बेजुबानों के मुंह तक भोजन ले जाने का अभियान बाज़ार, गलियों में चलता रहा।

उल्लेखनीय है कि हर जीव में परमात्मा का वास होता है, प्रत्येक जीव परमात्मा के अंश हैं, अब चाहे वह मानव हों या फिर पशु पक्षी। चोट लगने पर मानव को जिस प्रकार से दर्द होता है उसी प्रकार से पशु पक्षियों को भी दर्द होता है। भूख से जैसे‌ मानव‌ कुलबुलाता है वैसे‌ ही पशु पक्षी भी,इसी कथन को अपने जीवन में चरितार्थ बनाते इन युवाओं को बेजुबानों के लिए समर्पित भाव से‌ काम‌ करना एक सुखद अहसास दे गया,और उससे भी सुखद यह कि यह टीम निरंतर विस्तार ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ले रही है।  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *