उत्तराखंड की बद्री गाय पूजी जायेगी प्रयागराज महाकुंभ में आयोजित धर्म संसद व गौ संसद में
सी एम पपनैं
नई दिल्ली। प्रयागराज में आगामी 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित होने जा रहे महाकुंभ मेले में पहली बार उत्तराखंड की अति विशिष्ट बद्री गाय सहित अन्य 51 नस्ली गायों को उनकी भव्य पूजा अर्चना हेतु आमंत्रित किया गया है। महाकुंभ में आयोजित भव्य धर्म संसद व गौ संसद में ज्योतिष पीठ शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती-1008 सहित सभी शंकराचार्यों द्वारा गौ पूजन कर गौ माता-राष्ट्र माता का संकल्प लेकर गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा दिलाने के लिए 24 कुंडीय यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है।
आमंत्रित नस्ली गायों में देवभूमि उत्तराखंड के हिमालयी अंचल में पाली जाने वाली बद्री गाय को एक विशिष्ट गाय के तहत प्रयागराज महाकुंभ में आयोजित धर्म संसद व गौ संसद हेतु विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है। जिस हेतु विगत कई वर्षों से गोपाल मणी महाराज के सानिध्य में ‘गौ माता राष्ट्र माता’ आन्दोलन से जुड़े रहे टिहरी उनियाल गांव में बद्री गायों के गौ धाम के माध्यम से पंचगव्य पर शोध कार्य कर रहे गौ सांसद अनुसूया प्रसाद उनियाल द्वारा अपने पैतृक गांव की गौ शाला से विगत रविवार 5 जनवरी को एक बद्री गाय को उसके बछड़े सहित देहरादून स्थित रिस्पना पुल स्थित विष्णु गोपाल गौ धाम लाया गया तथा मंगलवार 7 जनवरी को गौ क्रांति मंच से जुड़े समाज सेवी बलवीर सिंह पंवार के संयोजन में आयोजित कार्यक्रम में उक्त बद्री गाय को टिहरी गौ सांसद अनुसूया प्रसाद उनियाल के संरक्षण में प्रयागराज महाकुंभ के लिए रवाना करने से पूर्व बड़ी संख्या में गौ भक्तों द्वारा गौ माता की पूजा अर्चना कर बद्री गाय को रवाना किया गया।
नई दिल्ली स्थित रोहणी में 7 जनवरी की सायं अनुसूया प्रसाद उनियाल के संरक्षण में उक्त बद्री गाय के भव्य आगमन पर नरेन्द्र शर्मा, बी एल शर्मा, प्रताप मिश्रा, जगमोहन उनियाल, राजकुमार जांगडा, अजय डांगरे, नरेन्द्र यादव, नन्दन सिंह बिष्ट, गीता सिंघल, मधु शर्मा, भानुमती, ममता कोठारी, दान सिंह मेहता बी एस शर्मा इत्यादि इत्यादि गौ भक्तों द्वारा बड़ी संख्या में बद्री गाय का भव्य स्वागत अभिनन्दन कर पूजा अर्चना की गई। बुधवार 8 जनवरी को प्रातः गौ माता की सेवा व पूजा अर्चना करने के बाद श्रद्धालुओं द्वारा वृंदावन तीसरे पड़ाव के लिए गौ माता को रवाना किया गया। गौ माता का चौथा पड़ाव बृहस्पतिवार और शुक्रवार 9 और 10 जनवरी को कानपुर में रखा गया है।
प्रयागराज महाकुंभ में मध्य हिमालय देवभूमि उत्तराखंड की बद्री गाय के परम महत्व को आयोजित धर्म संसद व गौ संसद में तथा महाकुंभ में आगंतुक दर्शनार्थियों को बताया जाएगा। जिससे धर्मपरायण सनातनियों को देशी गौवंश की महत्ता का ज्ञान हो सके। आयोजित धर्म संसद में ‘गौ माता राष्ट्र माता घोषित हो’ उक्त विषय पर सारगर्भित चर्चा का आयोजन भी होना है जिसमें चारों पीठों के शंकराचार्य, सभी पीठों, ज्योतिर्लिंगों तथा सभी शक्तिपीठों के आचार्य एवं अन्य धर्माचार्य बड़ी संख्या में उपस्थित होकर गौ माता को राष्ट्र माता घोषित करने पर निर्णय लेंगे।
मध्य हिमालय देवभूमि उत्तराखंड की देशी प्रजाति व विशिष्ट नस्ल की बद्री गाय राज्य की पहली पंजीकृत पशु नस्ल है जिसे राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR) द्वारा प्रमाणित किया गया है। उत्तराखंड के पहाड़ी अंचल में पाली जाने वाली छोटे कद व नस्ल की बद्री गाय को उसके दूध, दही, छाज, मक्खन तथा घी में पाए जाने वाले उच्च औषधीय पोषक तत्वों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है जिसमें प्रोटीन और वसा की मात्रा ज्यादा होती है।
पहाड़ी अंचल के खेत खलिहानों, जंगल और बुग्यालों में प्राकृतिक रूप में उगने वाली जड़ी-बूटियों और झाड़ियों को चरने वाली बद्री गाय के दूध में गुणकारी औषधीय तत्व और शुद्ध जैविकता होती है जो स्वास्थ्य लाभ की एक श्रृंखला प्रदान करती हैं।
बद्री गाय के दूध में टोटल सॉलिड 9.02 फीसदी और क्रूड प्रोटीन 3.26 प्रतिशत मिलता है। उक्त दूध ए-2 प्रोटीन से भरपूर तो है ही साथ ही कई साधारण पोषक तत्व भी इसमें मौजूद होते हैं। इस नस्ल की गाय के दूध से निर्मित घी में 99.98% दूध वसा और जीरो पशु वसा होता है। दूध में फैट 4 प्रतिशत पाया जाता है। घी ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर होता है।
इसके दूध और घी से बने उत्पाद बाजार की दृष्टि से महंगे होते हैं क्योंकि गिर, हल्लीकर तथा अन्य स्वदेशी नस्ल की गायों की तुलना में बद्री गाय से मात्र दो से चार लीटर मात्रा तक ही दूध की प्राप्ति होती है।
बद्री गाय का दूध, दही, घी तथा मूत्र स्वास्थ्य वृद्धि की दृष्टि से तथा अधिकतर रोगों व संक्रमण को पनपने से रोकने में अति मददगार माना जाता है। बद्री गाय दूध निर्मित उत्पाद प्रतिरक्षा को बढ़ाते हैं। घी का स्वाद थोड़ा अलग परन्तु स्वादिष्ट होता है। घी का रंग भी थोड़ा भिन्न होता है। गो मूत्र को अत्यधिक पवित्र तथा औषधीय गुणों वाला तथा धार्मिक कार्यों हेतु उपयोग में लाया जाता है।
समुद्र तल से 1200 से 2200 मीटर की ऊंचाई पर आसानी से जीवन जीने वाली शांत स्वभाव वाली बद्री गाय को पहाड़ों की कामधेनु का दर्ज दिया गया है। बद्री गाय को पहाड़ी या सर्द इलाकों के लिए सबसे अनुकूल माना गया है। इसीलिए बद्री गाय उत्तराखंड के सिर्फ पहाड़ी अंचल में पाई जाती है जो ग्रामीणों की कृषि एवं आर्थिकी से सीधे जुड़ी हुई रही है। बद्री गाय को पहाड़ों के उन क्षेत्रों में भी पाला जा सकता है जहां गायों की अन्य नस्लों की पालना करना थोड़ा मुश्किल होता है। इस पहाड़ी नस्ल की गाय को बहुत कम देखभाल की आवश्यकता होती है। छोटा कद होने से सुगमता से पहाड़ों में विचरण कर सकती है। बद्री गाय की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी काफी अच्छी होती है, नतीजन इस नस्ल की गाय जल्दी बीमार नहीं पड़ती है।
डेयरी के व्यावसायीकरण तथा उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल से बढ़ते पलायन के कारण बद्री गाय की पालना पर भी बहुत प्रभाव पड़ा है। बद्री गाय की नस्ल तेजी से खत्म हो रही है, विलुप्ति की कगार पर पहुंच रही है। जन समाज में दूध-डेयरी के काम को अब व्यापार की दृष्टि से देखा व आंका जाता है। डेयरी का काम करने वालों का नजरिया उन नस्लों पर ज्यादा होता है जो नस्ले अधिक मात्रा में दूध देती हैं। इसके विपरीत बद्री गाय के दूध की क्वालिटी तो अच्छी है लेकिन प्रतिदिन इस नस्ल की गाय से बहुत कम मात्रा दूध मिलता है। व्यवसाय की दृष्टि से इस नस्ल की गाय के दूध से लेकर छाछ, मक्खन और घी लगभग सभी उत्पाद महंगे होते हैं। इसलिए बद्री गाय की संख्या सिमट कर रह गई है, विलुप्ति की कगार पर है।
वर्तमान में आंशिक रूप में कुछ डेयरी फार्म्स द्वारा बद्री गाय के दूध की मात्रा को नहीं, गुणवत्ता को समझ इस गाय की नस्ल के संरक्षण और संवर्धन का बीड़ा उठाने की जोहमत की जा रही है। स्थापित सरकारों द्वारा बद्री गाय की विशिष्टता को पहचान इसके संरक्षण और संवर्धन हेतु नीति नियोजन कर इस देशी नस्ल की गाय को बचाने हेतु प्रयास करना नितांत जरूरी जान पड़ता हैं, गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा दिए जाने के परिप्रेक्ष्य में।
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