पहाड़ी जिलों के सरकारी स्कूलों में बच्चे पढ़ेंगे “घुघूति बासूति”

ख़बर शेयर करें -

हरीश चन्द्र अन्डोला

युवा संस्कृतिकर्मी हेम पंत द्वारा उत्तराखंड की स्थानीय भाषाओं गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी, व रवांल्टी आदि के बालगीतों को संकलित कर तैयार की गई उत्तराखंड की पहली पारम्परिक बालगीतों की पुस्तक घुघूति बासूति को पाठकों ने खूब प्यार दिया है। प्रकाशन के पहले ही वर्ष में इस संग्रह के चार संस्करण आ गए हैं। यहां तक कि प्रदेश के पौड़ी, अल्मोड़ा, उधमसिंह नगर, पिथौरागढ़ व बागेश्वर आदि जिलों के अनेक निजी व सरकारी प्राथमिक विद्यालयों ने इस पुस्तक को अपनी शिक्षणेत्तर गतिविधियों से जोड़ लिया है। इतना ही नहीं नई शिक्षा नीति के तहत तैयार हो रहे पाठ्यक्रम की संदर्भ सामग्री के रूप में भी इस पुस्तक का प्रयोग विभिन्न डाइट द्वारा किया जा रहा है। अनेक विद्यालयों में छोटी कक्षाओं के बच्चों को इस किताब से पढ़ाकर बालगीत सिखाए जा रहे हैं।
देश-विदेश में बसे उत्तराखंड के युवाओं ने इस पुस्तक को खूब समर्थन दिया है। निजी सहयोग से प्रदेश के पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत, ऊधम सिंह नगर आदि जिलों में यह पुस्तक सरकारी विद्यालयों के बच्चो को भी वितरित की गई है।
यहां तक कि प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी अपने अधिकारिक फेसबुक पेज पर घुघूति बासुति बालगीत पुस्तिका की सराहना करते हुए टिप्पणी लिख चुके हैं। एक निजी विद्यालय के बालगीत गाते बच्चों का बीडियो शेयर करते हुए मुख्यमंत्री ने लिखा है कि घुघूति बासुति उत्तराखंड के परम्परागत बालगीतों का संकलन कई स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनकर बच्चों को अपनी बोली भाषा संस्कृति से जोड़ने में सहायक साबित हो रहा है। प्रदेश की संस्कृति के संबर्द्धन के दृष्टिगत नई पीढ़ी को अपनी स्थानीय बोली से अवगत कराने का यह प्रयास अंत्यंत सराहनीय है। 16 सितम्बर को मुख्यमंत्री द्वारा शेयर की गई धुघूति बासुति पुस्तक से जुड़ी पोस्ट को हजारों लोगों ने देखा है।
पूरे प्रदेश से बालगीतों का संकलन करने वाले युवा संस्कृतिकर्मी हेम पंत ने बताया कि इस पुस्तक के प्रति शिक्षकों व विद्यार्थियों के साथ आम पाठकों का जबरदस्त रुझान रहा है। इस पुस्तक की सफलता ने आगे और बालगीतों के संकलन की प्रेरणा मिली है।
पुस्तक के प्रकाशक समय साक्ष्य के प्रवीन कुमार भट्ट ने बताया कि पहले ही साल में किताब का तीसरा संस्करण आ रहा है। इससे यह साबित होता है कि अपनी बोली भाषा और संस्कृति के प्रति उत्तराखंड के लोगों का प्रेम अतुलनीय है। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक को अमेरिका, न्यूजीलेंड, आस्ट्रेलिया, सउदी अरब, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया सहित अनेक देशों के पाठकों द्वारा मंगाया गया।