‘मुफ़्त की सुविधाओं’ पर बहस

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‘मुफ़्त की सुविधाओं’ पर बहस


● दिनेश कर्नाटक

लगता है आने वाले दिनों में ‘मुफ़्त की सुविधाएं’ एक बड़ा मुद्दा बनने वाला है। प्रधानमंत्री जी के ‘मुफ्त वैक्सीन’ के प्रचार अभियान ने भी इस ओर ध्यान आकर्षित किया है। इधर अपने राज्य उत्तराखंड में 100 और 300 यूनिट मुफ़्त बिजली देने की बातें होने लगी है। इसके साथ ही इसके पक्ष-विपक्ष पर भी माहौल बनने लगा है।

कुछ को लगता है कि मुफ़्त की चीजें देकर हम लोगों को मुफ़्तखोर बनाते हैं। कुछ को लगता है कि यह बेरोजगारी तथा महंगाई से जूझ रहे आम लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुंचाने या सशक्तीकरण का तरीका है। तीसरी तरह के लोग इसे वोट पाने की ‘टैक्टिस’ के बजाय न्यायपूर्ण संतुलन के साथ स्वीकार करते हैं तथा जरूरी मानते हैं।

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दिल्ली में जब केजरीवाल सरकार ने बिजली व पानी के बाद महिलाओं के लिए बसों तथा मेट्रो की यात्रा फ्री में की तो इस पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई। कई लोगों को लगने लगा कि इन सब फैसलों से राज्य की अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी। मगर ऐसी कोई ख़बर या सूचना हमारे सामने नहीं है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था के तबाह होने का पता चलता हो। यानी अगर ईमानदारी से कुशल वित्तीय प्रबंधन किया जाए तो लोगों का सशक्तिकरण होने के साथ अर्थव्यवस्था भी ठीक चल सकती है।

लोगों को अगर वैक्सीन, राशन या बिजली मुफ़्त में दी जा रही है तो यह एक कल्याणकारी राज्य द्वारा जनता के ख़ज़ाने में किये गए योगदान से उनको लाभांश देना है। आम लोगों को छोटी-छोटी राहत पर भड़कने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि इस देश के कॉरपोरेट सेज के नाम पर करोड़ों रुपये की छूट प्राप्त करते हैं तथा एनपीए के नाम पर पूंजीपतियों का अरबों रुपया माफ़ किया जाता रहा है।

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हमें स्वीकार करना होगा कि लोगों को मुफ़्त की राहत देना निश्चित ही गलत होगा, जब देश में बेरोजगारी न हो तथा सभी के पास आय के सम्मानजनक स्रोत हों। अगर ऐसा नहीं है तो आम नागरिकों को बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि मुफ़्त में देना उनका सशक्तिकरण है।

यह दो तरह की राजनीतिक सोच का मामला भी है। एक औपनिवेशिक सोच है जिसके तहत आम जनता से तमाम तरह के टैक्सों के जरिये वसूली कर शासक या पैसे वालों को सशक्त किया जाता है। जनता को करदाता ही बनाकर रखा जाता है। दूसरी सोच आम लोगों के सशक्तिकरण को भी महत्वपूर्ण मानती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि एक लोक कल्याणकारी राज्य किसी एक वर्ग की भलाई के बजाय न्यायपूर्ण होकर सभी के सशक्तिकरण के लिए कार्य करेगा।

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इसलिए जब भी आम लोगों को मुफ़्त की सुविधाओं की बात हो तो हमें यह भी देख लेना चाहिए कि ख़ास लोगों को क्या-क्या मुफ़्त में दिया जाता है। तभी हम इस विषय पर न्यायपूर्ण बात करने की स्थिति में होंगे।

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