बद्रीनाथ उपचुनाव में हार, भाजपा के लिए खतरे की घंटी
दिनेश तिवारी
अयोध्या के बाद यह एक और बड़े धार्मिक महत्व की नगरी से भाजपा की पराजय है . बद्रीनाथ विधानसभा धार्मिक रूप से पंडे , पुजारियों , साधु , संतों की बारीक बुनावट से सजी हुई विधान सभा है . और अपने धार्मिक एजेंडे के तहत यहाँ भाजपा ने अपनी तरह के धार्मिक विकास के काम को आगे बढ़ाया भी है . आलवेदर रोड के अलावा बद्रीनाथ मंदिर परिसर का आधुनकीकरण कर भाजपा ने हिंदुओं के इस पवित्र तीर्थस्थल से अपनी राजनीति के लिए स्पेस बढ़ाने की कोशिश की है . देश के जिन प्रमुख तीर्थस्थलों , धामों से वह देश दुनियाँ में फैले हिंदुओं को अपना राजनैतिक संदेश देना चाहती है उनमें बद्रीनाथ धाम भी प्रमुखता से शामिल है . बद्रीनाथ धाम देश के प्रसिद्ध चारधामों में से एक है और हिन्दू धर्म का पवित्र तीर्थ भी है . कहा और माना जा सकता है कि इस सीट पर हार और जीत का राष्ट्रीय महत्व है .इसलिए इस सीट पर हार भाजपा की सेहत के लिए अच्छी ख़बर तो नहीं कही जा सकती .यह भाजपा के लिए चिंता का सबब उतना अगर नहीं भी है तो भी चिंतन का विषय तो होना ही चाहिए कि अपनी राजनीति के प्रतीकात्मक केंद्रों से वह चुनाव क्यों हारती जा रही है? हालाँकि लोकसभा चुनाव और विधान सभा के चुनाव का पैटर्न अलग अलग होता है फिर भी यह मतदाताओं के बदलते मूड , मिज़ाज को समझने का इंडेक्स तो है ही . कुछ दिन पहले हुए लोक सभा चुनाव में भाजपा अयोध्या और रामजन्म भूमि से जुड़ी फ़ैज़ाबाद सीट ही नहीं हारी बल्कि प्रभु राम की स्मृतियों से जुड़ी प्रयागराज , चित्रकूट, नासिक , रामेश्वरम जैसी सीट भी गवाँ बैठी थी और एक और धार्मिक केंद्र बनारस की सीट पर भी जीत का अंतर आश्चर्यजनक रूप से काफ़ी घट गया था . जबकि यहाँ हिंदू अस्मिता के प्रतीक और शिखर पुरुष प्रधानमंत्री मोदी स्वयं चुनाव लड़ रहे थे . अब अगर बद्रीनाथ धाम में भी शिकस्त हाथ आयी है तो कहा जा सकता है कि भाजपा के लिए ख़तरे की घंटी तो बज ही गयी है .
यह एक सामान्य धारणा है कि उप चुनाव का नतीजा सरकार चला रही पार्टी के पक्ष में जाता है. हालाँकि इसके कई अपवाद भी हैं . लेकिन स्थापित मान्यता तो यही है और उपचुनावों के नतीजे कई बार भविष्य का भी गहरा संकेत होते हैं बस इसमें छुपे अंतर्निहित संदेश को ईमानदारी से समझने की ज़रूरत है . हालाँकि इन दो उपचुनावों में भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं था क्योंकि बद्रीनाथ और मंगलौर विधान सभाएँ पहले से ही विपक्ष के पास थीं . लोक सभा चुनाव में कांग्रेस के विधायक राजेंद्र भंडारी के भाजपा में शामिल होने और फिर अपने पद से इस्तीफ़ा देने के कारण बद्रीनाथ विधान सभा को उपचुनाव का सामना करना पड़ा था।लेकिन उपचुनाव सरकार की लोकप्रियता , प्रबंधन , और स्थानीय परिस्थिति के सटीक आकलन , विश्लेषण क्षमता को भी प्रदर्शित करता है इसलिए इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता .तो क्या धामी सरकार अपनी लोकप्रियता खो रही है और क्या बद्रीनाथ , केदारनाथ , जोशीमठ में चल रहे विकास कार्यों से स्थानीय लोग , पंडे, पुजारी संतुष्ट नहीं हैं ? यह भी सवाल है कि क्या जोशीमठ की आपदा और केदार आपदा के ज़ख़्म बद्रीनाथ के चुनाव परिणामों में परिलक्षित हुए हैं ?और क्या बेरोज़गारों के आंदोलन का कोई असर चुनाव पर पड़ा है ?( लेख जारी है )