गैरसैंण में सत्र न करने का फैसला लेकर सरकार ने मैदानी क्षेत्र के विधायकों की लॉबी के आगे घुटने टेके
रानीखेत :विधि आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष दिनेश तिवारी एडवोकेट ने २९ नवंबर से देहरादून में विधान सभा के शीतकालीन सत्र को आहूत करने पर ऐतराज़ किया है . कहा कि केवल तीन विधायकों के विरोध पर विधान सभा के शीतकालीन सत्र को ग़ैरसैंण में नहीं किए जाने का फ़ैसला पहाड़ के हित में नहीं है और शर्तिया तौर पर प्रदेश सरकार का मैदानी क्षेत्र के विधायकों की लॉबी के आगे आत्मसमर्पण है .
कहा कि उत्तराखंड की राजनीति में मैदानी क्षेत्र की लॉबी का निरंतर वर्चस्व बढ़ रहा है और पहाड़ों की आवाज़ कमज़ोर पड़ रही है । कहा कि राज्य के १३ जिलों में से ज़्यादा विधान सभा सीटें चार मैदानी जिलों देहरादून , हरिद्वार , ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जिले की तराई में हैं । आरोप लगाया कि पिछले २२ वर्षों से जारी पहाड़ विरोधी नीतियों ने पहाड़ों की राजनीति को बेहद कमज़ोर किया है . कहा कि इसी का नतीजा है कि मैदानी जिले उत्तराखंड की राजनीति की दिशा को तय कर रहे हैं और पूरी तरह इस पहाड़ी राज्य की नीतियों को डॉमिनेट कर रहे हैं . कहा कि मैदानी जिलों में बढ़ रही आबादी और इसके परिणाम स्वरूप बढ़ रही विधायकों की संख्या के कारण हर ‘ उत्तराखंड’ सरकार गैरसैंण पर नीतिगत निर्णय लेने से भाग रही है । कहा कि यह पहाड़ के लिए केवल भावनात्मक मुद्दा नहीं है बल्कि पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोकने और पहाड़ों के व्यापक विकास की योजनाओं के निर्माण और उन्हें प्रभावी तरीक़े से लागू करने की इच्छा शक्ति से जुड़ा मसला भी है । कहा कि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र से जुड़े विधायकों को पहाड़ के हक़ व हित में प्रदेश सरकार के इस फ़ैसले का चौतरफ़ा विरोध करना चाहिए और सरकार को मजबूर करना चाहिए कि वह विधानसभा का शीतकालीन सत्र गैरसैंण में ही आयोजित करे ।