भूस्खलन व सड़कों की खामी दे रही दुर्घटनाओं को आमंत्रण

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

पहाड़ में सर्दियों में पाला और मैदानी क्षेत्रों में धुंध व कोहरे की चादर, उस पर सड़कों की खराब
सेहत। रही-सही कसर पूरी कर दे रहे हैं पहाड़ में सड़कों पर जगह-जगह बनते भूस्खलन जोन,
जिनका उपचार चुनौती बना हुआ है। और तो और, सिस्टम की सुस्ती देखिए कि सड़कों पर
यातायात संकेतकों की कमी चालकों का ध्यान भटका रही है, तो पैराफिट, क्रैश बैरियर और
अवैध कट पहले ही दिक्कत का कारण बने हुए हैं। नतीजा, सड़कों पर जोखिमभरा सफर और
बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं। कुछ ऐसा ही है उत्तराखंड का परिदृश्य। सफर को सुरक्षित और सुगम
बनाने के लिए तंत्र के साथ गण की अनदेखी भारी पड़ रही है। उत्तराखंड की दौड़ती-भागती
सड़कों पर निर्माण, सुविधा और सुरक्षा की पड़ताल की तो उसमें भी उक्त तथ्य उभरकर सामने
आए। पहले बात राष्ट्रीय राजमार्गों की, जिन पर राज्य में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं।
दैनिक जागरण ने प्रदेश के 1643 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग का सर्वे किया, इनमें 141 से अधिक
सक्रिय भूस्खलन क्षेत्र पाए गए। विशेषकर नए मार्गों पर बन रहे ये क्षेत्र दुर्घटनाओं को आमंत्रण
दे रहे हैं। यही स्थिति पैराफिट व क्रैश बैरियर की देखने को मिली है। इन राष्ट्रीय राजमार्गों में
400 किमी से अधिक पर्वतीय क्षेत्र वाले हिस्से में क्रैश बैरियर व पैराफिट की आवश्यकता
महसूस की गई। राज्य राजमार्गों की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। 1678 किमी लंबे राज्य
राजमार्ग में 600 किमी मार्ग खराब पाया गया। अधिकांश स्थानों पर टूटी सड़कें और इन पर
गड्ढे पाए गए। तकरीबन 100 किमी के क्षेत्र में धुंध और लगभग सभी पर्वतीय मार्गों पर पाला
एक बड़ी समस्या बना हुआ है। साथ ही मार्गों पर बने अवैध कट दुर्घटना की आशंका को और
बढ़ा रहे हैं। वहीं, 704 किमी लंबे आंतरिक मार्गों में तंग गलियां, बाटलनेक और आवारा जानवर
दुर्घटना का प्रमुख कारण बन रहे हैं। सरकारी आंकड़े भी सड़कों की खराब हालत को बयां कर रहे
हैं। परिवहन विभाग ने अपने विस्तृत सर्वे में 165 ब्लैक स्पाट और 2500 से अधिक दुर्घटना
संभावित स्थल चिह्नित किए हैं। विभाग का दावा है कि केवल 44 ब्लैक स्पाट और तकरीबन
900 से अधिक दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में काम होना बाकी है। शेष को दुरुस्त कर दिया गया है।
विभागीय आंकड़ों के अनुसार अभी प्रदेश में 2600 किमी के दायरे में क्रैश बैरियर लगने शेष हैं।
प्रदेश में सड़कों की सेहत जानने को वर्ष 2018 से ही सड़क सुरक्षा आडिट की बात चल रही है।
इसके लिए 15 हजार किमी सड़कों का रोड सेफ्टी आडिट किया जाना है। लोक निर्माण विभाग
को इसकी जिम्मेदारी दी गई। इसमें से अभी तक केवल 5000 किमी सड़कों का ही आडिट हो

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पाया है। इसका कारण अभियंताओं का इसके लिए प्रशिक्षित न हो पाना है। जहां राष्ट्रीय
राजमार्ग प्राधिकरण ने हाईवे को 21 फीट चौड़ा बनाया हुआ है। ऐसे में दुर्घटना कैसे हुई, इसका
अंदाजा कोई भी नहीं लगा पा रहा है। इससे तो यही कहा जा रहा है कि सुहाने सफर में जिंदगी
की गारंटी नहीं। जहां सड़कें सही हैं, वहां वाहन चालक अपने वाहनों की गति को ओवरस्पीड में
बढ़ा दे रहे हैं, जिसके कारण दुर्घटनाओं के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। जनपद उत्तरकाशी में
पिछले 10 माह के अंतराल में 35 सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं, जिनमें 64 व्यक्तियों की मृत्यु हुई है,
जबकि 112 घायल हुए हैं। वर्ष 2018 के बाद इस वर्ष सबसे अधिक दुर्घटनाएं हुई हैं। जहां
बरसात में भूस्खलन से सड़क बाधित हो जाती है। इनका अभी तक पूरी तरह उपचार नहीं हो
पाया है।

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लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं

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