‘कुमाऊं के गांधी पं.देवकी नंदन पांडे ,पंखी बाबा की सादगी ऐसी की हर कोई रह जाए हतप्रभ,जानिए उनसे जुड़े कुछ किस्से
ऐसे कई स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं जिन्होंने देश को आजादी मिलने के बाद भी समाज हित में निरंतर समाज के बीच कार्य किया ऐसा ही एक नाम था पं. देवकी नंदन पांडे का, जिन्हें लोग ‘पंखी बाबा’ और ‘कुमाऊं का गांधी’ नाम से जानते थे।
रानीखेत की ठिठुरती ठंड में केवल एक हल्की से गरम लोई ओढे़ लोगों के बरामदों में वे रात गुजार लिया करते थे।दो जोडे़ कपडे़ और जहां सायं हो जाए वहीं डेरा।उनका यहां अपना कोई घर नहीं था।लोई कंधे में डाले वे सदा सेवाकर्म में यत्र-तत्र विचरण करते थे।उनके साधारण पहनावे,बोल-चाल व कद -काठी से उनकी विद्वता और शीर्षता का आभास नहीं होता था। वे अनेक संस्थानों,विभागों में अध्यक्ष,चयनकर्ता और वार्ताकार हुआ करते थे।
एक बार उ.प्र. सरकार से संबद्ध एक विभाग की बैठक रानीखेत के एक होटल में होनी थी जिस हेतु देर रात्रि पं. देवकी नंदन पांडे उक्त होटल में पहुंच गए और उन्होंने होटल प्रबंधक से अगले दिन होने वाली बैठक के बारे में पूछा और होटल में रात्रि होटल में ठहरने हेतु स्थान की जानकारी चाही। पहचान के अभाव में आगंतुक को साधारण व्यक्ति समझकर होटल प्रबंधक ने उन्हें यूं ही स्टोर रूम के पास नीचे बिछी दरी में लेट जाने को कह दिया। पांडे जी बिना खाना खाए, चुपचाप उक्त दरी में अपनी पंखी ओढ़कर सो गए।
अगले दिन महकमे के बडे़ -बडे़ अधिकारियों के मध्य मुख्य सीट पर बैठे पांडे जी को जब होटल प्रबंधक ने बैठक की अध्यक्षा करते,फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते देखा तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। बैठक खत्म होने के बाद होटल प्रबंधक ने पं.देवकी नंदन पांडे के पैर पकड़ लिए और रात्रि में पहचान के अभाव में हुई गलती के क्षमा मांगी,ऐसे वक्त में भी उदारमना ,सीधे सरल स्वभाव के पांडे जी मंद -मंद मुस्कराते रहे।
जब सीधे प्रधानमंत्री को लगाया फोन
ऐसे अनेक किस्से हैं जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. देवकी नंदन पांडे की चिंता,विनम्रता,उदारता,सरलता ,प्रतिबद्धता व सामुदायिक विकास से जुडे़ हुए थे।उस पीढी़ के लोगों को आज भी याद है कि किस प्रकार यह स्वतंत्रता सेनानी निष्काम सेवा में विश्वास करता था,पद, धन -दौलत में नहीं।
किस्सा आजादी के बाद का है,रानीखेत स्थित एक भवन को जो कि वर्तमान में बंसल भवन बताया जाता है,तत्कालीन सैन्य अधिकारियों ने सैन्य क्षेत्र में शामिल करने की कोशिश की।जब इस हेतु सेना के लोग पहुंचे तो नागरिकों का खासा मजमा लग गया।वहां से गुजर रहे पं.देवकी नंदन पांडे ने नागरिकों से वस्तुस्थिति को जानने के बाद निकट के सदर डाकघर से दूरभाष द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को इस अन्याय की जानकारी दी और इस सेना-नागरिक तकरार के बडा़ रूप लेने का अंदेशा भी जता दिया।पीएम ओ तक बात पहुंचने के बाद सैन्य अधिकारियों को कदम पीछे लेने पडे़।ये घटना पं.देवकी नंदन पांडे की पीएमओ में पकड़ बताती हैं।यहां यह भी बता दें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पांडे जी का बेहद सम्मान करती थीं।वे भी इंदिरा गांधी को इंदू कहकर ही सम्बोधित करते थे।1974 में समाज के प्रति पांडे जी की सेवाओं को देखते हुए उन्हें पदमश्री से सम्मानित किया गया।