रानीखेत में मुंशी प्रेमचंद जयंती के अवसर पर नई पीढी़ में पढ़ने की संस्कृति विकसित करने पर हुई परिचर्चा

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रानीखेत:- यहां अज़ीम प्रेम जी फाउंडेशन द्वारा मुंशी प्रेम चंद की जयंती के अवसर पर ‘मुंशी प्रेम चंद,पढ़ने लिखने की संस्कृति और नई पीढी़ ‘विषयक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें मुंशी प्रेम चंद के जीवनवृत्त पर प्रकाश डालने के साथ ही किशोरों एवं युवाओं में पढ़ने -लिखने की संस्कृति विकसित करने के साथ ही उनके रचनात्मक कौशल को कैसे सामने लाया जाए इस पर वृहद चर्चा हुई।
कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोलते हुए संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार विमल सती ने कहा कि मौजूदा दौर में पढ़ने की संस्कृति में बुनियादी बदलाव आए हैं।संवेदना विकसित करने वाले साहित्य का स्थान उपयोगिता प्रधान सामग्री ने ले लिया है। नई पीढी़ पारम्परिक साहित्य से विलग हो रही है।किताबी ज्ञान के बजाए छोटी जानकारी भी गूगल में खंगाली जा रही हैं कभी ये जानकारियां भी गलत साबित होती हैं।

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उन्होंने कहा कि किताबों से एकात्म्य की प्रक्रिया रूक सी गई है पारम्परिक की जगह वर्चूअल रीडिंग ने ले ली है,न्यूज ब्लाग लेख फेसबुक पोस्ट को ही ‘पढ़ना’ मान लिया गया है। उन्होंने कहा कि पढ़ना मानवीय क्रियाकलाप का महत्वपूर्ण पक्ष रहा है।सामूहिक और व्यक्तिगत चेतना गढ़ने में पठन संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है सामाजिक सांस्कृतिक,आंदोलनों को गढ़ने में पढ़ने की संस्कृति प्रमुख कारक रही है।उन्होंने स्थानीय युवाओं की प्रतिभा को विकसित करने के लिए सुझाव भी दिए।

मुख्य वक्ता पूर्व प्रधानाचार्य एवं साहित्यकार डाॅ. विपिन चंद्र शाह ने मुंशी प्रेम चंद की गोदान, गबन , सहित तमाम कृतियों की चर्चा करते कहा कि उनकी प्रत्येक कृति कालजयी है। उन्होंने प्रेमचंद को यथार्थवादी ,अनुभूति और संवेदना का कथाकार बताया साथ ही कहा कि उनके निमित्त आज जो परिचर्चा के लिए हम एकजुट हुए हैं निस्संदेह सार्थक साबित होगी। डाॅ.शाह ने रानीखेत में साहित्यिक -सांस्कृतिक गतिविधियों के शून्य होने के पीछे स्थानीय स्तर की टांग खिंचाई बताते कहा है कि परस्पर सहयोग और एकजुटता से शहर के सांस्कृतिक वातावरण को पुनः बहाल किया जा सकता है।उन्होंने रानीखेत आए कई नामचीन साहित्यकारों को प्रसंगवश याद किया।

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कार्यक्रम का संचालन करते हुए अजी़म प्रेमजी फाउंडेशन के भाष्कर उप्रेती ने पढ़ने की संस्कृति पर जोर देते हुए कहा कि पढ़ने- लिखने की संस्कृति इंसान में संवेदना और समझ विकसित करती है।उन्होंने नगर के पुराने गौरवशाली अतीत को लौटाने और नई पीढी़ को इससे अवगत कराने के लिए कार्य योजना पर जोर दिया। परिचर्चा में कई सुझाव निकल कर आए जिनमें पाक्षिक परिचर्चा जारी रखने और युवाओं किशोरों के रचना कौशल को विकसित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आरम्भ करने,नगर व आस -पास के साहित्य ,कला ,संस्कृति से जुडी़ प्रसिद्ध हस्तियों की कृतियों और उनके विषयक जानकारी से विद्यार्थियों,युवाओं को अवगत कराने,नवांकुर कवियों के लिए काव्य गोष्ठियों का आयोजन करने मे सर्वसम्मति बनी।परिचर्चा में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के पूरन जोशी व अन्य साथी,विभिन्न विद्यालयों के शिक्षक,शिक्षिकाओं ने भी शिरकत की।

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