सुप्रसिद्ध पांगू-अस्कोट-आराकोट यात्रा के पचास वर्ष पूर्ण होने पर ‘पहाड़’ ग्रुप द्वारा मंचित किया जा रहा है नाटक ‘यात्राओं की यात्रा’

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सी एम पपनैं

नई दिल्ली। सु-विख्यात पर्यावरण विद स्व. सुंदरलाल बहुगुणा की प्रेरणा से संग्रामी श्रीदेव सुमन के जन्मदिवस के पावन अवसर पर वर्ष 1974 से निरंतर प्रति दस वर्षो बाद सुप्रसिद्ध ‘अस्कोट-आराकोट यात्रा’ का आयोजन ‘पहाड़’ के संस्थापक व प्रसिद्ध इतिहासकार व लेखक पद्मश्री डॉ.शेखर पाठक के नेतृत्व तथा देश-विदेश के अनेकों प्रबुद्ध जनों के सानिध्य में हिमालय की जड़ों को समझने की ठोस पहल हेतु किया जाता रहा है। उक्त महत्वपूर्ण यात्रा अभियान के पचास वर्ष पूर्ण होने पर पहली बार आगामी 15 दिसंबर 2025 दिन सोमवार को सायं 6 बजे नई दिल्ली, मंडी हाउस स्थित कमानी सभागार में ‘यात्राओं की यात्रा’ नामक शीर्षक पर डॉ. कमल कर्नाटक रचित व ममता कर्नाटक द्वारा निर्देशित नाटक का मंचन चंदन डांगी के संयोजन में मंचित किया जा रहा है।

मध्य हिमालय भारत, नेपाल के सीमांत गांव पांगू व अस्कोट से उत्तराखंड तथा हिमाचल के सीमांत गांव आराकोट तक की करीब 1150 किलोमीटर तक की पैदल ‘पांगू-अस्कोट-आराकोट यात्रा’ के असल मायने और यात्रा अभियान के महत्व को उजागर करने हेतु मंचित किए जा रहे उक्त नाटक ‘यात्राओं की यात्रा’ में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रंगमंच से जुड़ी सुप्रसिद्ध सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केंद्र के कलाकारों के साथ-साथ अंचल की अन्य अनेकों प्रवासी सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े करीब चालीस कलाकारों द्वारा प्रतिभाग किया जा रहा है।

मंचित किए जा रहे नाटक के माध्यम से उत्तराखंड की विगत पांच दशकों विशेष रूप से उत्तराखंड राज्य गठन के बाद पिछले ढाई दशक में क्या स्थिति बनी है? लंबे आंदोलनों और कुर्बानियों के बाद हासिल हुए नए राज्य में लोगों की आकांक्षाओं का क्या हुआ? क्या उन्हें उनके हिस्से का लोकतन्त्र और विकास नसीब हुआ? इत्यादि इत्यादि की समग्र स्थिति के साथ-साथ मिट्टी, पेड़, पानी, वन्य जीवन, खनिज, स्वास्थ्य, सफाई, सड़क, शिक्षा, कुटीर उद्योग, नशा, पर्यटन, प्राकृतिक संसाधनों में सिमटाव, नई आर्थिक नीति, उदारीकरण, पहाड़ों में शराब का अंत हित विस्तार, बांध तथा आपदा विस्थापितों की दशा, कैंसर और एड्स जैसे विभिन्न रोगों के साथ भयावह कोविड से उत्पन्न हुई स्थितियों को समझने तथा गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका जैसे तमाम विषयों की पड़ताल और उक्त विषयों पर अंचल के ग्रामीण जनमानस के साथ यात्रा अभियान के दौरान हुए वार्तालाप इत्यादि इत्यादि को प्रभावी अंदाज में नाटक के माध्यम से मंचित कर नाट्य प्रस्तुति के मायने, यात्रा के उद्देश्य और महत्व पर प्रकाश डाला जायेगा।

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उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के पूर्वी कोने पर नेपाल सीमा पर स्थित पांगू, जिला पिथौरागढ़ से पांगू-अस्कोट-आराकोट यात्रा अभियान अनेक टोलियों में अनेक मार्गो से यात्रा करते हुए सम्पन्न होती है। आयोजित यात्रा अभियानों की अलग-अलग थीम रखी जाती रही है। वर्ष 2024 में आयोजित यात्रा अभियान की थीम ‘स्त्रोत से संगम’ रखी गई थी ताकि नदियों से समाज के रिश्ते को गहराई और समग्र जलागम के संदर्भ में समझा जा सके।

45 दिन की इस महत्वपूर्ण यात्रा में अभियान दल के सदस्य पांगू, अस्कोट, मुनस्यारी, नामिक, मानाटोली, रैणी, जोशीमठ, पीपल कोटी, गोपेश्वर, तुंगनाथ, मण्डल, उखीमठ, फाटा, त्रिजुगी नारायण, घुन्तु, बुढ़ा केदार, उत्तरकाशी, बड़कोट, पुरोला, त्युनी तथा आराकोट की इर्दगिर्द के लगभग 350 गांवों से गुजरा था। 35 नदियों, 16 बुग्यालों-दर्रो, 20 खरको, भूकंप और भूस्खलन से प्रभावित क्रमश: 15 क्षेत्रों और अनेक घाटियों, 15 उजड़ी चट्टियों, चिपको आंदोलन के 8 क्षेत्रों, 5 जनजातीय क्षेत्रों, 5 तीर्थ यात्रा मार्गों और 3 भारत-तिब्बत मार्गों से गुजरने वाली यह यात्रा लगभग 1150 किलोमीटर की रही थी।

अभियान दल के सदस्य वर्ष 1974 में यात्रा के दौरान 9 से 14 हजार फिट तक के तीन पर्वत शिखरों के साथ ही 200 से अधिक गांवों व कस्बों से गुजरे थे। आयोजित उक्त पहली यात्रा में अंचल के शिक्षा, स्वास्थ तथा पलायन को लेकर जो कमियां चिन्हित हुई थी ये सब कालांतर में ‘पहाड़’ विमर्श का हिस्सा भी बनी थी।

बाद के दशकों में यात्रा को और विस्तार दिया गया था। पांगू से अस्कोट, वान से रामणी, झिंझी, पाणा, कुंवारी पास, ढाक, तपोवन-रैणी, जोशीमठ होकर गोपेश्वर, घुन्तू, बूढ़ा केदार, उत्तरकाशी इत्यादि इत्यादि नए स्थान और मार्ग इस यात्रा अभियान में जोड़े गए थे। संयोग से आयोजित यात्रा के पहले अभियान वर्ष 1974 में अंचल में ‘चिपको आंदोलन’ का जन्म हुआ था। उसके बाद प्रति दस वर्षो के अंतराल में आयोजित की गई अस्कोट-आराकोट यात्रा वर्ष में ही संयोग से 1984 में ‘नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन’, 1994 में ‘उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन’ के साथ ही यमुना घाटी में धूम सिंह नेगी के नेतृत्व में ‘बीज बचाओ आंदोलन’ इत्यादि इत्यादि चले थे। अवलोकन कर स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है, उक्त आंदोलन इस यात्रा अभियान को ऐतिहासिक अमरता प्रदान करते नजर आए हैं।

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‘पहाड़’ यात्रा अभियान संस्था के सभी क्रिया-कलाप जनहित से जुडे़ देखे जाते रहे हैं। हिमालय तथा पहाड़ों संबंधी अध्ययन तथा सामाजिक आंदोलनों में हिस्सेदारी और सहयोग में लगी यह एक गैर सरकारी, अव्यवसायिक तथा सदस्यों के अवैतनिक सहयोग से चलने वाली संस्था रही है। ‘पहाड़’ का कोई भी अभियान प्रोजेक्ट आधारित नहीं देखा गया है।

‘पहाड़’ यात्राओं का आयोजन करती है। इन यात्राओं में ‘पांगू-अस्कोट-आराकोट यात्रा’ सबसे महत्वपूर्ण और हर दशक में आयोजित होने वाला यात्रा अभियान है। हिमालय के विविध क्षेत्रों, आपदा प्रभावित क्षेत्रों और उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी अध्ययन यात्राए होती रही हैं। आयोजित यात्राओं से ‘पहाड़’ के सदस्यों तथा यात्रा में भाग लेने वाले अन्य सदस्यों को हिमालय की प्रकृति और जीवन के यथार्थ को देखने और समझने का प्रत्यक्ष मौका मिलता रहा है। अभियान के प्रत्येक दशक में अंचल में हुए परिवर्तनों को समझने की कोशिश यात्रा अभियान दल सदस्यों द्वारा की जाती रही है।

‘पहाड़’ द्वारा आयोजित अन्य यात्रा अभियानों में 1975 में श्रीनगर-शिमला, 1976 अल्मोड़ा-श्रीनगर, 1977 नैनीताल-गोपेश्वर, 1984 कोटद्वार-कर्ण प्रयाग तथा 1984-1994 के दौरान उत्तराखंड से अन्य हिमालयी राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, सिक्किम, अरूणांचल के साथ-साथ बाहरी हिमालयी देशों में नेपाल, भूटान तथा तिब्बत इत्यादि के साथ-साथ दुनिया के अन्य पहाड़ी क्षेत्रों की यात्राए भी की गई हैं। जिन्हें अभियान दल सदस्यों द्वारा लेखों व व्याख्यानों के माध्यम से लोगों के सामने समय-समय पर प्रस्तुत किया जाता रहा है।

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2014 में आयोजित पांचवे अस्कोट-आराकोट यात्रा जिसे पांगू से सु-विख्यात पर्यावरण विद व पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा रवाना किया गया था, उक्त यात्रा को ‘जंगम विश्व विद्यालय’ नाम दिया गया था। इस यात्रा अभियान में अमरीका, कनाडा और जर्मनी से आए शोधार्थियों तथा प्राध्यापकों सहित भारत के आठ राज्यों के लगभग 200 से अधिक लोगों द्वारा प्रतिभाग किया गया था।

विगत पांच दशकों में खासकर नए राज्य गठन के ढाई दशक बाद उत्तराखंड का प्राकृतिक चेहरा जल, जंगल, जमीन, खनन, बांध, सड़क आदि के बहाने कितना घटा है? अर्थव्यवस्था किस बिन्दु पर है? सामाजिक तानाबाना किस स्थिति में है? सामाजिक राजनैतिक चेतना में कितना इजाफा हुआ है? अंचल में आर्थिक और सांस्कृतिक घुसपैठ कितनी बढ़ी है? पलायन का क्या रूप है? गांव के हाल कितने बदले हैं? शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, पानी, शराब, विभिन्न आपदाओं तथा महिलाओं, बच्चों, सहित पर्वतीय जीवन के अन्य पक्षों की क्या स्थिति है? यह सब जानने समझने के लिए 25 मई से 8 जुलाई 2024 के बीच आयोजित ‘पांगू-अस्कोट-आराकोट’ 45 दिन की अध्ययन यात्रा का हिमालयी राज्य उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में बहुत बड़ा महत्व नजर आया है। हिमालय की जड़ों व हो रहे हास को समझने की ठोस पहल नजर आई है।

उक्त यात्रा अभियान दल सदस्यों द्वारा प्रत्यक्ष रूप में किए गए अवलोकन व शोध कार्यों तथा ग्रामीण जनमानस से हुए प्रत्यक्ष वार्तालाप को आधार बना कर ही मंचित किया जा रहा है नाटक ‘यात्राओं की यात्रा’। उक्त नव सृजित नाटक 15 दिसंबर को नई दिल्ली के कमानी सभागार में सायं 6 बजे मंचित किया जा रहा है।
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