1971 के युद्ध के एक पराक्रमी योद्धा : मेजर जनरल (सेवा निवृत्त) प्रकाश चंद्र सिंह खाती,वीर चक्र
1971 के भारत पाक युद्ध की स्वर्ण जयंती के अवसर पर कुमाऊं के अनेक वीरों को याद करना लाज़मी है जिन्होंने इस युद्ध में अपना कौशल दिखाया। ऐसा ही एक नाम है मेजर जनरल (सेवा निवृत्त) प्रकाश खाती जिन्होंने इस युद्ध में एक युवा सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप छंब क्षेत्र में अदम्य साहस और नेतृत्व कौशल का परिचय दिया जिसके लिए उन्हें वीर चक्र से पुरस्कृत किया गया ।
पाली पछाऊं की सिलोर पट्टी के मूल निवासी जनरल खाती का जन्म रानीखेत में हुआ जहां इनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल दुर्गा सिंह खाती तैनात थे। इनकी स्कूली शिक्षा नैनीताल के प्रसिद्ध बोर्डिंग स्कूल बिड़ला विद्या मंदिर में हुई। मध्यप्रदेश के सागर विश्वविद्यालय से बीएससी करने के बाद आप मद्रास (अब चेन्नई) के ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल में भर्ती हो गए और अगस्त 1971 में 4/1गोरखा राइफल्स में बतौर सेकंड लेफ्टीनेंट कमीशन मिला…इनकी बटालियन उन दिनों जम्मू कश्मीर में सीमा पर ही तैनात थी और इनके ज्वाइन करने के कुछ ही समय बाद युद्ध की सरगर्मियां शुरू हो गईं। 191 इन्फेंट्री ब्रिगेड के आधीन इनकी पलटन को मनव्वर तावी नदी के ऊपर झंडा चौकी की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया जो पाकिस्तानी सेना के सीधे निशाने पर थी क्योंकि बिना इस पोस्ट को फतह किए शत्रु की सेना आगे नहीं बढ़ सकती थी। 3 दिसंबर,1971 की शाम को पाकिस्तान की ब्रिगेड जबर्दस्त हमला बोल दिया। उसके पास उच्च श्रेणी की शरमन टैंक थे और निरंतर गोले बरसा रहे थे। लेफ्टीनेंट खाती के गोरखा सैनिकों ने भी बचाव में लाइट मशीन गनों तथा रिकॉइल लैस गनों से डटकर जवाबी हमला किया।इनकी मदद के लिए 39 आर्टिलरी रेजिमेंट भी आ गईं जिनके तोपचियों ने बेहद सटीक प्रहार किए। 7 दिसंबर तक दोनों तरफ से ज़बरदस्त युद्ध हुआ लेकिन पाकिस्तानी सेना अपने अधिक सैन्य बल तथा बेहतर हथियारों के बावजूद एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाई। नज़दीक की चौकियों में तैनात असम रेजिमेंट तथा सिख रेजिमेंट के कई अफसर और जवान मारे गए लेकिन गोरखा राइफल्स के जवान डटे रहे। शत्रु के अनेक टैंकों और तोपों को नष्ट कर
दिया गया। उनके भी अनेक अफसर और जवान खेत रहे। एक टैंक कमांडर कैप्टन सैय्यद हसन ज़हीर को पाकिस्तान सरकार ने मरणोपरांत अपने सर्वोच्च वीरता पुरस्कार “सितारा ए जुर्रत” ( भारत के परम वीर चक्र के समकक्ष) से नवाज़ा ।इसका उल्लेख एक वरिष्ठ पाकिस्तानी अफसर मेजर जनरल सैयद अली हामिद ने अपने एक लेख में किया है। 4/1गोरखा राइफल्स की बहादुरी से पाकिस्तानी सेना छंब की झंडा और मनव्वर चौकियां जीतने में सफल नहीं हो पाई और उसके बढ़ते कदम वहीं रुक गए।इस पराक्रम के लिए लेफ्टीनेंट प्रकाश सिंह खाती को वीर चक्र से पुरस्कृत किया गया । छंब की ये विजय गाथा आज भारतीय सेना के अफसरों और सैनिकों के पाठ्यक्रम का एक अहम हिस्सा है। उन्हें इसका डेमो दिया जाता है।
आगे चलकर इस योग्य अफसर ने और भी उपलब्धियां अर्जित की। श्री लंका में कंपनी कमांडर के रूप में लिट्टे से मुक़ाबला किया।सियाचिन की बर्फीली ऊंचाइयों में अपनी ही बटालियन को कमांड किया। एक ब्रिगेडियर के रूप में कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ़ ऑपरेशन सर्वनाश का नेतृत्व किया जिसके लिए इन्हें सेना मेडल प्राप्त हुआ। और फिर उसी क्षेत्र में एक इन्फेंट्री डिवीजन का नेतृत्व किया।
मजखाली स्थित निवास में मेजर जनरल खाती के साथ लेखक
सेना से अवकाश प्राप्ति के उपरांत जनरल खाती मजखाली में बस गए हैं।इनके पुत्र लेफ्टीनेंट कर्नल प्रशांत खाती भी अपने पिता की ही बटालियन 4/1 गोरखा राइफल्स में सेवारत हैं। कैसा सुखद संयोग है कि 1971की विजय की पचासवीं वर्षगांठ पर 11 दिसंबर,2021 आईएमए, देहरादून में हुई पासिंग आउट परेड में रानीखेत की जरूरी बाजार के एक युवक अनुभव पांडे को इसी बटालियन में कमीशन प्राप्त हुआ है।
छम्ब स्मारक