रानीखेत मां नंदा-सुनंदा महोत्सव की तैयारियां तेज, टीका चंदन व लाल सफेद वस्त्र बांधकर किया कदली वृक्षों को आमंत्रित
रानीखेत– कदली वृक्षों के चयन व आमंत्रण के साथ रानीखेत में 134वें मां नंदा-सुनंदा महोत्सव की तैयारियां तेज हो गईं। आयोजन समिति के सदस्यों ने माधवकुंज राय इस्टेट जाकर आज पूर्वाह्न समय कदली वृक्षों का टीका चंदन व लाल -सफेद वस्त्र बांधकर अभिषेक कर उन्हें आमंत्रित किया।
यहां बता दें कि कदली को स्वर्ग फल कहा जाता है जो सबसे शुद्ध पेड़ माना जाता है। इसीलिए आराध्य देवी की प्रतिमा बनाने में इसी वृक्ष के तनों व पत्तों का इस्तेमाल होता आ रहा है। पिछले कुछ वर्षों से रानीखेत में मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमा स्थापना के लिए माधवकुंज राय इस्टेट निवासी विमल भट्ट के निवास परिसर से कदली वृक्ष लाए जाते रहे हैं। शुक्रवार को मां नन्दा -सुनंदा महोत्सव समिति सदस्यों ने माधवकुंज राय इस्टेट पहुंचकर कदली वृक्षों को विधि विधान से आमंत्रित किया। 8सितम्बर की प्रातः पूजा अनुष्ठान और शोभा यात्रा के साथ आमंत्रित कदली वृक्षों को मां नन्दा देवी परिसर में लाया जाएगा और प्रतिमा निर्माण का कार्य शुरू होगा। 11सितम्बर नंदाष्टमी के दिन प्रातः काल शुभ मुहूर्त में मां की प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। कदली वृक्ष चयन एवं आमंत्रण हेतु मां नंदा-सुनंदा महोत्सव समिति संरक्षक हरीश लाल साह, अध्यक्ष अंशुल साह , भुवन चंद्र साह, प्रमोद कांडपाल, मुकेश साह,किरन लाल साह, अनिल वर्मा,मोहन नेगी, विमल सती,विमल भट्ट मौजूद रहे।
ध्यातव्य है स्वर्गफल’ कदली जिसका वृक्ष देवभूमि की आराध्य मां नंदा एवं सुनंदा के लिए अर्पण को तत्पर रहता है। खास बात है मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमा के लिए योग्य वृक्ष के चयन की प्रक्रिया बड़ी अद्भुत व आध्यात्म पर आधारित है। केले के बागान (किंवाड़ी) में शुभ मुहूर्त में पुरोहित अभिमंत्रित चावल फेंकते हैं। तभी मां को अर्पित किए जाने योग्य कदली वृक्ष का तना व उसकी पत्तियां अप्रत्याशित रूप से हिल कर संकेत दे देता है। पंडित या शास्त्री एवं यजमान उसी वृक्ष का चयन कर गंगा जल से स्नान करा तिलक-चंदन एवं लाल व सफेद वस्त्र बांधते हैं। उसे काटे जाने तक बाकायदा नियमित पूजन किया जाता है। मुहूर्त के अनुरूप पेड़ का चुनाव कर गंगा जल स्नान, टीका-चंदन व लाल व सफेद वस्त्र बांध अभिषेक किया जाता है।