भू-कानून के विरोध में पानी में आए ग्रामीण युवा, किया प्रदर्शन,नारेबाजी

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रानीखेत:उत्तराखंड में एक बार फिर भू- कानून का मुद्दा जोर पकड़ गया है। हालांकि यह मुद्दा नया नहीं है लेकिन इन दिनों सरकार द्वारा संशोधन किए जाने से मुद्दे पर अब तक खामोश हो बैठे संगठन एकाएक विरोध में उतर आए है। जगह-जगह आंदोलन की सुगबुगाहट है ऐसे में भू-कानून का विरोध अब दूरस्थ गांवों तक पहुंचने लगा है।यहां सिलोर घाटी के ग्रामीण युवाओं ने गगास नदी में खडे़ होकर भू-कानून के विरूद्ध अनूठे ढंग से विरोध दर्ज किया।


रीठा महादेव के निकट भू-कानून के विरोध में उतरे युवकों ने न केवल गगास नदी के पानी में घंटों खडे़ रहकर इस कानून के खिलाफ नारेबाजी की अपितु ऐलान किया कि भू -कानून को सशक्त बनाने की मांग को लेकर आसपास के गांवों के युवाओं से सम्पर्क कर उन्हें संगठित करके आंदोलन को विस्तार दिया जाएगा।

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आंदोलनकारियों का तर्क था कि भू-कानून को अगर बदले स्वरूप में लागू किया गया तो बाहरी लोगों का प्रदेश की जमीनों पर कब्जा हो जाएगा।आर्थिक रूप से कमजोर स्थानीय लोग बेबस और लाचार होकर अपनी भूमि को बाहरी लोगों के हाथ में जाते हुए देखते रहेंगे।

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प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे कमलेश सती ने कहा कि सरकार को हिमाचल प्रदेश की भांति भू कानून बनाना चाहिए था लेकिन सरकार पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है और उसने उप्र भूमि सुधार कानून 1950में धारा- 156 में प्रावधान कर दिया कि बाहरी व्यक्ति राज्य में तीस साल की लीज पर जमीन ले सकता है ऐसा कानून उत्तराखंड के अलावा कहीं नहीं है।भूमि को अकृषि कराने की प्रक्रिया भी लचर कर दी है।
उन्होंने कहा कि सरकार कानून को सशक्त बनाने के बजाए लचर बनाकर पूंजीपतियों के लिए दरवाजा खोल रही है जिसका पुरजोर विरोध होगा। उन्होंने कहा कि आज का युवा शिक्षित व जागरूक है वह राज्य के पर्वतीय अंचल में सरकार द्वारा पूंजीपतियों को कराए जाने वाली भू-कब्जेदारी का पुरजोर विरोध करेगा।प्रदर्शन में आस -पास के गांव से युवा एकत्र हुए और उन्होंने आगे इस आंदोलन से लोगों को जोड़कर आंदोलन की ताकत बढा़ने का संकल्प लिया।

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भू-कानून का विरोध करते ग्रामीण युवा