उत्तराखंड में चिड़ियाघरों के प्रबंधन के लिए बनेगा प्राधिकरण
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
राजधानी देहरादून का चिड़ियाघर पिछले कुछ सालों में बेहतर मैनेजमेंट के चलते पर्यटकों की पहली पसंद बनता हुआ दिखाई दिया है. इस बीच चिड़ियाघर में कई नए पक्षियों से लेकर जंगली जानवरों को भी बढ़ाया गया है. अब चिड़ियाघर प्रशासन आने वाले समय के लिए एनिमल कलेक्शन प्लान तैयार कर चुका है और इसी प्लान के तहत चिड़ियाघर में बाघ समेत कई दूसरे जंगली जानवरों को लाया जाएगा.उत्तराखंड में स्थित सभी चिड़ियाघर, रेसक्यू सेंटर, टाइगर सफारी आने वाले दिनों में प्रबंधन के मद्देनजर एक छतरी के नीचे आएंगे। इसके लिए जू अथारिटी बनाने की तैयारी है। वन विभाग इसका मसौदा तैयार करा रहा है। इसका प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। फिर कैबिनेट की मंजूरी के बाद राज्य की जू अथारिटी अस्तित्व में आएगी।वर्तमान में उत्तराखंड में देहरादून और नैनीताल में चिड़ियाघर, लच्छीवाला में नेचर पार्क और चिड़ियापुर व रानीबाग में रेस्क्यू सेंटर संचालित हैं। प्रबंधन के लिए इनमें कमेटियां गठित की गई हैं। इसके साथ ही अब जल्द ही कार्बेट टाइगर रिजर्व के बफर जोन पाखरो में टाइगर सफारी अस्तित्व में आ जागएी। इसके अलावा हल्द्वानी में चिड़ियाघर व सफारी, कोटद्वार समेत अन्य स्थानों पर रेस्क्यू सेंटर की स्थापना प्रस्तावित है। तय प्रविधानों के चिडिय़ाघरों, नेचर पार्क आदि से पर्यटन के जरिये होने वाली आय का कुछ हिस्सा समितियों के माध्यम से इनके संरक्षण-संवर्द्धन पर व्यय किया जाता है। इसे लेकर अक्सर अंगुलियां भी उठती आई हैं।चिड़ियाघर, सफारी, रेस्क्यू सेंटर, बंदरबाड़ों की स्थापना में वन संरक्षण अधिनियम की बंदिशें अब बाधक नहीं बनेंगी। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इनमें होने वाले सभी कार्यों को वानिकी के अंतर्गत मानते हुए बुधवार को इस बारे में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र भेजा है। इससे उत्तराखंड समेत सभी राज्यों को बड़ी राहत मिल गई है।अब उत्तराखंड में हल्द्वानी चिड़ियाघर, जसपुर टाइगर सफारी के निर्माण और कण्वाश्रम व चिडिय़ापुर रेस्क्यू सेंटर के उच्चीकरण में आ रही अड़चनें दूर हो जाएंगी। उत्तराखंड समेत सभी राज्यों में चिडिय़ाघरों की स्थिति ठीक नहीं है। विशेषकर वन भूमि में बने अथवा प्रस्तावित चिड़ियाघरों में भवन, इंटरप्रिटेशन सेंटर जैसे कार्यों को गैर वानिकी मानते हुए इसके लिए भूमि हस्तांतरण कराना पड़ रहा था। इसे देखते हुए राज्यों की ओर से मांग की जा रही थी कि इन कार्यों को भी वानिकी का ही हिस्सा माना जाना चाहिए। उनका कहना था कि चिडिय़ाघर, रेस्क्यू सेंटर आदि का निर्माण संरक्षण के उद्देश्य से ही किया जा रहा है। पूर्व में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति के समक्ष भी राज्यों की ओर से मांग रखी गई थी कि इन कार्यों को वन संरक्षण अधिनियम की बंदिशों से मुक्त किया जाए। अब वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस संबंध में सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के प्रमुख सचिव वन को पत्र भेजने के साथ ही विस्तृत गाइडलाइन भी जारी की है। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के अनुसार मंत्रालय के निर्णय से बड़ी राहत मिल गई है। अब राज्य में भी प्रस्तावित चिडिय़ाघर, टाइगर सफारी, रेस्क्यू सेंटर, बंदरबाड़ों की स्थापना में तेजी आएगी। मंत्रालय की ओर से भेजी गई गाइडलाइन के अनुसार चिडिय़ाघर, टाइगर सफारी, रेस्क्यू सेंटर, बंदरबाड़े जैसे कार्यों के लिए प्रतिकरात्मक वन रोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण से भी धनराशि मिल सकेगी। मंत्रालय ने यह भी साफ किया है कि चिडिय़ाघर संरक्षित क्षेत्रों में नहीं बनेंगे। यद्यपि कुछ चुनिंदा मामलों में संरक्षित क्षेत्रों से बाहर और वह भी एक कोने में विशेष परिस्थिति में इसकी अनुमति लेनी होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि चिडिय़ाघर का 70 प्रतिशत क्षेत्र प्राकृतिक स्वरूप में हो और उसमें कोई छेड़छाड़ न हो। प्रयास ये होना चाहिए कि चिड़ियाघरों की स्थापना खराब वन भूमि में हो। चिडिय़ाघर, रेस्क्यू सेंटर जैसे कार्यों से वन्यजीवों की आवाजाही में कहीं कोई खलल न पड़े, यह सुनिश्चित करने को भी कहा गया है। अब बेहतर प्रबंधन के मकसद से प्रदेश में जू अथारिटी बनाने पर जोर दिया जा रहा है। इसके तहत सभी चिड़ियाघर, नेचर पार्क, टाइगर सफारी को अथारिटी के दायरे में लाया जाएगा। यह अथारिटी ही इनके प्रबंधन, संरक्षण-संर्द्धधन के लिए बजट की व्यवस्था समेत अन्य व्यवस्था जुटाएगी। साथ ही केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण समेत अन्य संस्थाओं से भी बजट जुटाने की दिशा में कदम बढ़ाएगी। वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक ने बताया कि विभाग के पुनगर्ठन का मसौदा तैयार करने के लिए गठित समिति जू अथारिटी का प्रस्ताव भी तैयार करेगी। सितंबर तक यह प्रस्ताव शासन को भेजने का लक्ष्य रखा गया है। अब बेहतर प्रबंधन के मकसद से प्रदेश में जू अथारिटी बनाने पर जोर दिया जा रहा है। इसके तहत सभी चिड़ियाघर, नेचर पार्क, टाइगर सफारी को अथारिटी के दायरे में लाया जाएगा। यह अथारिटी ही इनके प्रबंधन, संरक्षण-संर्द्धधन के लिए बजट की व्यवस्था समेत अन्य व्यवस्था जुटाएगी। साथ ही केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण समेत अन्य संस्थाओं से भी बजट जुटाने की दिशा में कदम बढ़ाएगी। वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक राजीव भरतरी ने बताया कि विभाग के पुनगर्ठन का मसौदा तैयार करने के लिए गठित समिति जू अथारिटी का प्रस्ताव भी तैयार करेगी। यह प्रस्ताव शासन को भेजने का लक्ष्य रखा गया है। यह सुनिश्चित करना होगा कि चिडिय़ाघर का 70 प्रतिशत क्षेत्र प्राकृतिक स्वरूप में हो और उसमें कोई छेड़छाड़ न हो। प्रयास ये होना चाहिए कि चिड़ियाघरों की स्थापना खराब वन भूमि में हो। चिडिय़ाघर, रेस्क्यू सेंटर जैसे कार्यों से वन्यजीवों की आवाजाही में कहीं कोई खलल न पड़े, यह सुनिश्चित करने को भी कहा गया है। । चिड़ियाघर प्रबंधन की ओर से चलाई गई जानवरों को अंगीकृत (गोद लेने) की योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक ने चिड़ियाघर के दो बंगाल टाइगरों और दो तेंदुओं को गोद लिया है। गोविंद बल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान में 231 वन्य जीव संरक्षित हैं। इनके रखरखाव में हर माह लगभग 20 लाख रुपये खर्च होते हैं। शनिवार को एसबीआई हल्द्वानी के उप महाप्रबंधक देवाशीष मित्रा के नेतृत्व में एसबीआई की टीम ने चिड़ियाघर पहुंचकर एक साल के लिए दो बंगाल टाइगर और दो तेंदुओं को गोद लिया। इन चार जानवरों के भोजन खर्च के लिए बैंक अधिकारियों ने डीएफओ टीआर बीजूलाल को दस लाख रुपये का चेक सौंपा। उप महाप्रबंधक देवाशीष मित्रा ने बताया कि सीएसआर फंड से बीते चार वर्षों से बैंक की ओर से चिड़ियाघर के जीवों को अंगीकृत किया जा रहा है। बताया कि बीते वर्ष बैंक ने भालू को गोद लिया था, जिसके लिए 30 हजार की धनराशि जू प्रबंधन को दी गई थी। उन्होंने बताया कि पहली बार बैंक की ओर से 10 लाख की राशि वन्य जीवों को अंगीकृत करने में खर्च की जा रही है। लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।