सरकार गांव को केंद्र में रखकर करे नीति निर्धारण:तिवारी

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विधि आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष दिनेश तिवारी एडवोकेट ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से माँग की है कि नीति निर्धारण के केंद्र में गाँव को शामिल करें। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड गाँव प्रधान होने के बावजूद केंद्र और राज्यों के नीति निर्धारण के केंद्र में नहीं है कहा कि शहर और मध्यवर्ग पर आधारित नीति योजनाओं ने गाँवों से पलायन की रफ़्तार को भी अबाध गति से बढ़ा दिया है।

श्री तिवारी ने कहा कि २०११ की जनगणना के अनुसार क़रीब ६७ प्रतिशत आबादी गाँवों में ही रहती है और कोरोना काल में यह आँकड़ा ७३प्रतिशत से अधिक हो गया है क्योंकि शहरों में मज़दूरी और छोटी नौकरियाँ करने वाला एक बड़ा तबक़ा गाँव वापस आ गया है।उन्होंने कहा कि कोरोना के पहले दौर में गाँव वापस लौटे इन प्रवासी मज़दूरों और छोटे नौकरी पेशा लोगों के पुनर्वास की तमाम घोषणाएँ अन्य घोषणाओं की तरह ही झूठी और छलने वाली साबित हुई हैं।उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी ग्रामीण उत्तराखंड की यह उपेक्षा प्रमुखता से सामने आयी है ।श्री तिवारी ने आरोप लगाया कि scientists कि इस चेतावनी के बावजूद कि शहरों के बाद कोरोना का असली तांडव गाँवों में दिखेगा केंद्र और राज्य सरकार ने गाँवों का स्वास्थ्य ढाँचा और सप्लाय चेन मज़बूत नहीं की।उन्होंने कहा कि कोरोना के दोनों दौर में गाँव ऑक्सिजन टेस्टिंग और दवाइयों की भारी क़िल्लत से जूझते रहे और मरते हुए लोगों की सुध किसी ने भी नहीं ली।

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श्री तिवारी ने कहा कि माननीय सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों में भी जो जनहित या अन्य याचिकाएँ दाख़िल की गयीं उनमें भी ग्रामीण भारत पहाड़ की चिंता शामिल नहीं थी कहा कि यह तथ्य दुखद है कि तंत्र के किसी भी हिस्से ने आज तक नीति निर्धारण के केंद्र में गाँव को लाने का संकल्प नहीं दिखाया।उन्होंने आरोप लगाया कि मीडिया सरकार और न्यायपालिका किसी ने भी तबाह होते और दुःख में पड़े गाँवों की ख़बर नहीं ली, कहा कि शहर आधारित नीति निर्धारण ने विकास और अवसरों की उपलब्धता के मामले में गाँवों को बहुत पीछे छोड़ दिया है ,जिसके कारण सदियों पुरानी ग्रामीण सभ्यता भारी संकट का सामना कर रही है. कहा कि शहरी आबादी की ही चिंता करने से और पूरे तंत्र को महानगरीय बना देने से असंतुलन पैदा हो रहा है कहा कि देश की आंतरिक सुरक्षा का मामला हो या सीमाओं पर सुरक्षा का या फिर अन्य क्षेत्रों में योगदान का ग्रामीण समाज इसका ७८/ प्रतिशत अकेले पूरा करता है कहा कि इसी लिये वह प्रदेश और देश के सांसदों विधायकों वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्रियों से अनुरोध कर रहे हैं कि वह अपने स्तर से यह प्रयास करें कि भारत का नीति निर्धारण गाँव आधारित हो और नीतियों में गाँव को मूल इकाई माना जाय।