विरासत में मिली गीत-संगीत व वाद्य विधा का संरक्षण व संवर्धन कर ख्याति अर्जित कर रही हैं उत्तराखंड की गायिका मधुबेरिया साह

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सी एम पपनैं

नई दिल्ली। उत्तराखंड की नारी को किसी भी क्षेत्र मे कम कर, नही आंका जा सकता है। महिला सशक्तिकरण का परिचय दे, विभिन्न काल खंडो व विभिन्न क्षेत्रों में, अंचल की अनेकों महिलाओं द्वारा, प्रेरणा जनक कार्य कर, भविष्य की पीढी को प्रेरित करने का कार्य कर, अमिट छाप छोडी है। अंचल की वर्तमान पीढी की जागरूक नारिया चाहे वे अंचल मे निवासरत हों या अन्यत्र कही प्रवास मे, अपने प्रेरणाजनक कार्यो व विभिन्न विधाओ के बल, जनसमाज के प्रेरणाश्रोत बन, उत्तराखंड का नाम रोशन कर रही हैं।

गीत-संगीत के इस आधुनिक, तकनीकी दौर में, उत्तराखंड की परंपरागत लोकगायन विधा के क्षय के साथ-साथ, अंचल के पारंपरिक लोकवाद्यो की विलुप्ति, धीरे-धीरे होती दिख रही है। फिर भी, दिल्ली एनसीआर मे रच बस गए, उत्तराखंडी प्रवासी बन्धुओ के कुछ परिजन, जिन्हे गीत-संगीत व वाद्य विधा का पारंपरिक ज्ञान, अपने बाप-दादाओ व माताओ से विरासत मे मिला है, अंचल की उस समृद्ध गीत-गायन व संगीत विधा की परिपाठी को, संजोये हुए हैं, समृद्ध कर रहे हैं।

गीत-संगीत व लोकवाद्यों के ज्ञान की विरासत से जुड़े तथा उक्त विधा का संरक्षण व संवर्धन कर रहे, इन्ही नामो मे एक नाम उभर कर आता है, मधुबेरिया साह का। उत्तराखंड की पारंपरिक लोकगायन शैली, जिसमे अंचल के लोकगीतो तथा विश्व विख्यात रागों पर आधारित, गेय शैली की रामलीला व होली के साथ-साथ, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गीत-गायन विधा की बारीकियों का समावेश है, उक्त विधा का यह गायिका, सम्पूर्ण ज्ञान रखती हैं। एक विशेषज्ञ के नाते, चार दशकों से, अपना स्थान सुनिश्चित करती नजर आती हैं। विभिन्न मंचों पर अपनी कर्णप्रिय आवाज व सधे संगीत के जादू से, श्रोताओं के मध्य अपनी गीत-संगीत विधा के ज्ञान की विशेष छाप छोड़, एक खास पहचान बना, जो ख्याति इस गायिका ने अर्जित की है, अद्भुत व प्रेरणाजनक तथा उत्तराखंड के पारंपरिक लोकगायन व शास्त्रीय गीत-संगीत मे रुचि रखने वाले रसिको के लिए, सुखद व प्रेरणा जनक कहा जा सकता है।

धरातल पर अवलोकन कर, दृष्टिगत होता है, उत्तराखंड की पावन भूमि मे जन्मे, गीतकारों व रचनाधर्मियों मे, स्थानीय प्रकृति और जनजीवन का असर सीधा पड़ता व कुछ उत्तराखंडी परिवारों मे, उक्त कला का संवर्धन, पीढ़ी दर पीढी, पारंपरिक तौर पर, आगे बढ़ता देखा गया है, जिसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण, मधुबेरिया साह को विरासत मे मिली, विधा के रूप में, देखा-परखा जा सकता है।

लखनऊ मे जन्मी, मधुबेरिया साह को शास्त्रीय गायन तथा उत्तराखंड के पारंपरिक गीत-संगीत व विभिन्न वाद्यों की विधा का ज्ञान, विरासत मे अर्जित हुआ है। दादा लक्ष्मण बेरिया, नैनीताल के जाने-माने लोक जागर गायन के ज्ञाता थे। पिता नागेन्द्र बेरिया, सु-विख्यात भजन गायक, अनूप जलोटा के पिता, पुरुषोत्तम लाल जलोटा के साथ, तबला बजाने के साथ-साथ, एक कुशल आर्चिटैक्ट, लेखक व संगीतकार भी थे। अधिकतर भारतीय पारंपरिक वाद्ययंत्रों को बजाने की महारत रखते थे। भारतीय रेल के विकास पर उनके द्वारा रचित व संगीतबद्ध, अनेको गीत-संगीत के विज्ञापन, राष्ट्रीय फलक पर वृहद तौर पर प्रचारित-प्रसारित हुए थे, जिनका महत्व, भारतीय रेल विभाग के लिए, आज भी बना हुआ है। मधुबेरिया साह की माता सुशीला साह, सितार मे देहरादून से, ग्रेज्युएट तथा अल्मोडा के तारा प्रसाद पण्डित व लहरी दादा से, सितार विधा की बारीकियो के गुर सीखी हुई थी। रंगकर्म से जुडे रहे, नाना बृजेन्द्र लाल साह व बृजमोहन साह क्रमश: गीत एव नाटक प्रभाग, भारत सरकार तथा नेशनल स्कूल आफ ड्रामा मे निर्देशक पदों पर काबिज होकर, राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर पहचान बनाने मे समर्थ हुए थे।

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उक्त तथ्यों की पड़ताल व अवलोकन कर, ज्ञात होता है, मधुबेरिया साह को शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ, अन्य गीत-संगीत व वाद्य विधा का ज्ञान, विरासत में जरूर मिला था, परंतु दिल्ली प्रवास मे, इस पारंपरिक विधा को संजो कर रखना, उसका संवर्धन करना, उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं रहा। समय-समय पर वे उक्त विधा का, विभिन्न मंचों पर प्रदर्शन कर, उसका संरक्षण व संवर्धन करती नजर आती रही हैं। गीत-संगीत रसिको की प्रेरणाश्रोत बनी रही हैं। श्रोताओं के मध्य, ख्याति अर्जित करती रही हैं।

स्कूली जीवन से ही, मधुबेरिया साह को, विरासत में मिले गीत-संगीत के सु-परिणाम मिलने आरंभ हो गए थे। 1977 दिल्ली मे आयोजित, अखिल भारतीय स्कूल गायन प्रतियोगिता मे, सोलह वर्ष की उम्र मे, शास्त्रीय गायन के तहत, राग जौनपुरी मे गायन कर, पहला स्थान हासिल कर, इस गायिका ने अपना नाम रोशन करना आरंभ कर दिया था।

गीत-संगीत के क्षेत्र मे, कुछ कर गुजरने की चाहत मे, ग्रेज्युएशन की डिग्री मिरांडा हाउस दिल्ली से प्राप्त करने के बाद, मधुबेरिया साह ने, संगीत मे म्युजिक आनर्स किया। दिल्ली घराने के जहूर अहमद खान व इकबाल अहमद खान, श्रीराम भारतीय कला केन्द्र मे, मनी प्रसाद तथा फैक्ल्टी दिल्ली विश्वविद्यालय से, विधिवत संगीत की तालीम ली। देश के नामी संगीतज्ञो मे सुमार, देबु चौधरी, सुमित मुटाटकर, एल के पण्डित, बसंत ठकार, रमेश चंद्र चमोली तथा किशोरी अमोलकर के सानिध्य में, शास्त्रीय व अन्य गीत-संगीत विधा की बारीकियों को सीख, ज्ञान अर्जित किया। 1980 मे ‘मीरा’ बैले मे गायन किया, जिसमे अभिनेत्री आशा जुल्का नृत्यांगना थी। कथक केन्द्र दिल्ली के सु-विख्यात गुरु रहे, बिरजू महाराज, गुलाम अली, नृत्यांगना शोभना नारायण, गीतांजलि लाल, सरोजा वैद्यनाथन इत्यादि के नृत्य नाटकों व नृत्यों मे प्रभावशाली, क्लासिकल गायन करने का सौभाग्य, इस गायिका को प्राप्त हुआ।

उत्तराखंड के सु-विख्यात लोकगीत रचनाकार, बृजेन्द्रलाल साह व सु-विख्यात रंगमंच नाट्य निर्देशक बृजमोहन साह, नानाओ की चाहत पर, 1980 मे, मधुबेरिया साह ने उत्तराखंड की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था, ‘पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली’ से जुड़ कर, रंगकर्म के क्षेत्र मे जाने-माने संगीत निर्देशक मोहन उप्रेती के संगीत निर्देशन मे, उत्तराखंड की सु-प्रसिद्ध प्रेमगाथा ‘राजुला मालूशाही’ गीतनाट्य मे, लोकगीत गायन व अभिनय कर, ख्याति अर्जित की। गीत-संगीत विधा की गहराई मे जाकर, प्राप्त ज्ञान का ही प्रतिफल रहा, 1982 मे, भारतीय रेल मंत्रालय के सांस्कृतिक कोटे के तहत, पहली कलाकार चयन का, सौभाग्य मधुबेरिया साह को प्राप्त हुआ।

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1983 मे, गढ़वाल के सु-प्रसिद्ध लोकगायक, चंद्रसिंह राही के साथ, व्यवसायिक कैसिटो के लिए गाने गाए। तीन गढ़वाली गानो का कोलकता से एलपी रिकार्ड जारी हुआ। जो गढ़वाली गीत रसिको के मध्य, बहुत प्रसिद्ध हुए, गायिका मधुबेरिया साह को, अंचल के गीत गायन के क्षेत्र मे, ख्याति अर्जित हुई।

26 जनवरी 1984, गणतंत्र दिवस के अवसर पर, भारतीय रेल विभाग की झांकी मे, मेघालयी वेषभूषा मे, कलाकार के नाते, प्रतिभाग किया। उक्त अवसर पर, भारत सरकार के रेल मंत्रालय द्वारा, राष्ट्रीय फलक पर जारी, ‘अतुल्य भारत’ के पोस्टर में, भारतीय रेल के विकास के क्रम को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए, मधुबेरिया साह को चुना गया, राष्ट्रीय फलक पर मधुबेरिया साह का पोस्टर, जारी किया गया। चार दशक बीत जाने के बाद भी, देश के लगभग रेलवे स्टेशनों पर, उक्त पोस्टर, आज भी, अपनी महत्ता बना कर, भारतीय रेल के चरणबद्ध विकास की गाथा व्यक्त करता नजर आता है।

उत्तराखंड की बैठकी व खड़ी होली, सांस्कृतिक विशेषता के तहत, पूरे देश व वैश्विक फलक पर जानी जाती है। विभिन्न रागों पर आधारित, शास्त्रीय गायन होली परंपरा की परिपाठी हो या उत्तराखंड की रागों पर आधारित रामलीला के गायन की परिपाठी, या अन्य गीत-संगीत की अंचलीय विधा की परिपाठी, उक्त प्रत्येक विधा के क्षेत्र मे, अपने कर्णप्रिय गायन के साथ-साथ, तबला, नाल, ढोलक, हुड़का, थाली, कैसिनो, आक्टोपैड व हार्मोनियम जैसे वाद्ययन्त्रो को बजाने की कला मे निपुण, मधुबेरिया साह को, 1998 मे, हिंदुस्तानी गीत-संगीत पर आधारित, ‘शंकराचार्य’ नामक बैले कम्पोज करने का अवसर मिला, जिसके सफल मंचन ने इस गायिका को एक संगीतज्ञ के रूप में ख्याति प्रदान की। 2012 तक इंटर डीवीजन गायन प्रतियोगीताओ मे, निरंतर प्रतिभाग करने का तथा ‘थोकदार’ गढ़वाली फिल्म मे, गाना गाने का अवसर प्राप्त हुआ। अनेकों बार, दिल्ली सरकार के स्कूलों मे आयोजित गीत-संगीत के कार्यक्रमो मे निर्णायक की भूमिका, निर्वहन करने का अवसर मिला, जो क्रम निरंतर, 2019 तक जारी रहा।

वर्ष 2020 मे, भारतीय रेल मंत्रालय के चीफ आफिस सुप्रिन्टेनडैंट के पद से अवकाश प्राप्ति के बाद, पारंपरिक गीत-संगीत व विभिन्न वाद्यों की विधाओ के क्षेत्र मे, विलक्षण प्रतिभा की धनी, विभिन्न बोली-भाषाओ, भोजपुरी, राजस्थानी, उडिया, कुमांऊनी व गढ़वाली के लोकगीत गायन के साथ-साथ, भजन व गजल गायन विधा मे माहिर, मधुबेरिया साह के कर्णप्रिय गायन मे, गजब का सम्मोहन व पहाड़ के लोक की ठसक साफ तौर पर दिखलाई देने तथा गीत-संगीत के क्षेत्र मे, पांच दशकों के अनुभव को देख, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर, ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था, ‘पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली’ द्वारा, मधुबेरिया साह को संस्था के गीत-संगीत विभाग के प्रभारी पद पर नवाजा गया है। ‘उत्तराखंड फिल्म एव नाट्य संस्थान’ द्वारा, सांस्कृतिक सचिव पद पर सुशोभित होने का अवसर प्रदान किया गया है। उक्त सांस्कृतिक संस्थाओ के साथ जुड़ कर, इस गायिका द्वारा, विरासत में मिली पारंपरिक गीत-संगीत व वाद्य विधा का संरक्षण व संवर्धन करने का जो बीड़ा उठाया गया है, सराहनीय, प्रशंसनीय व अतुलनीय है।

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विगत 10 अप्रेल, 2022 को, संगीत नाटक अकादमी, सम्मान समारोह के अंर्तरगत, अकादमी सम्मान प्राप्त दीवान सिंह बजेली के एक व्याख्यान समारोह में, मधुबेरिया साह द्वारा, ‘पर्वतीय कला केन्द्र’ दिल्ली की बहुप्रतिष्ठित गायिका के नाते, उत्तराखंड की लोकगाथाओ पर आधारित, गीत-संगीत का मंचन कर, संगीत नाटक अकादमी जूरी का ध्यान आकर्षित कर, अपनी प्रतिभा का कौशल दिखाने मे, सफल रही हैं।

दिल्ली में, उत्तराखंड की प्रवासी सांस्कृतिक संस्थाओ के साथ जुड कर, शास्त्रीय संगीत, भजन व उत्तराखंड के पारंपरिक वाद्यों इत्यादि में, परफारमैंस देने तथा अपने स्व.पिता नागेन्द्र बेरिया द्वारा, उत्तराखंड के परिवेश में रचित गीतों की वीडियो बनाने की कार्ययोजना भी, मधुबेरिया साह के जेहन मे है। उक्त तथ्यों व भविष्य की कार्य योजनाओ से समझा जा सकता है, इस गायिका के जेहन मे, अपने बाप-दादाओ के समय से चली आ रही, पारंपरिक गीत-गायन व विभिन्न वाद्यों को बजाने की परिपाठी के प्रति, कितनी निष्ठा, सम्मोहन व समर्पण है, जिस क्रम को वे आजीवन, निरंतर जारी रख, उक्त कला के संरक्षण व संवर्धन पर, निष्ठापूर्वक कार्य जारी रखना चाहती हैं।

जब एक नारी बखूबी, विरासत में मिली कला-संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन पर निष्ठा व समर्पण से कार्य कर रही हो, उसे मंजिल तक पहुचा रही हो, तो वह नारी, गुमनाम क्यों रहे? क्यों न, उस मातृशक्ति को, जो अपने कार्यो व निष्ठा के बल, समाज में ख्याति अर्जित किए हुए है। उस नारी को एक सम्मान का अधिकारी बना, सशक्त क्यों न किया जाए? अपनी कर्णप्रिय गायन प्रतिभा व पारंपरिक वाद्यों पर प्रस्तुत मधुर संगीत के बल, गीत-संगीत रसिको को दीवाना बना कर रखने वाली, मधुबेरिया साह, जिस आत्मविश्वास के साथ, विरासत में मिली, उत्तराखंड की समृद्ध लोकगायन व संगीत विधा के साथ-साथ, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का, विगत पांच दशको से संवर्धन व संरक्षण करती नजर आ रही हैं, निश्चय ही, यह मातृशक्ति, सम्मान की अधिकारी है। ऐसी विशेषज्ञ, निपुण व विलक्षण प्रतिभा की धनी को, मान-सम्मान मिलना चाहिए, पारंपरिक लोककला को विलुप्ति व हास से बचाने तथा उसके संवर्धन के क्रम को बनाए रखने के लिए।
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