उत्तराखंड की बोली-भाषाओं को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलवाने हेतु प्रभावशाली गोष्ठी सम्पन्न
सी एम पपनैं
नई दिल्ली (एनसीआर) फरीदाबाद। कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति नई दिल्ली द्वारा 18 सितंबर की सायं 4 से रात्रि 8 बजे तक तीन सत्रों में कुमाउनी भाषा गोष्ठी, कवि सम्मेलन तथा जनकवि स्व.हीरा सिंह राणा पर केन्द्रित पुस्तक ‘लस्का कमर बांधा’ पर चर्चा का आयोजन डीएवी सेटेनरी कालेज फरीदाबाद में प्रोफेसर देवी प्रसाद भारद्वाज की अध्यक्षता, डीएवी सेटेनरी कालेज प्रधानाचार्य डाॅ सरिता भगत व प्रोफेसर अरुण भगत के सानिध्य और उत्तराखण्ड के प्रवासी कुमाउनी वरिष्ठ कवियों व साहित्यकारों में प्रमुख पूरनचंद्र कांडपाल, रमेश हितैशी, ओम प्रकाश आर्य व गिरीश चंद्र बिष्ट ‘हंसमुख’ तथा उत्तराखंड के प्रवासी समाजसेवियों, संस्कृति कर्मियों व पत्रकारों की उपस्थिति में आयोजित किया गया।
आयोजन का श्रीगणेश मुख्य व विशिष्ट अतिथियों के कर कमलों द्वारा दीप प्रज्वलित व मेधा जोशी द्वारा कुमाउनी बोली में प्रस्तुत सरस्वती वंदना से किया गया। संस्था अध्यक्ष डाॅ मनोज उप्रेती द्वारा आयोजन में उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनों का करते हुए कहा गया कि गठित संस्था से उत्तराखण्ड सहित विभिन्न आठ राज्यों में प्रवासरत उत्तराखंड के प्रवासी जन बड़ी संख्या में जुडे़ हुए हैं, जो उत्तराखण्ड की तीनों बोली-भाषाओं को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची मे स्थान दिलवाने के लिए संघर्षरत हैं।
संस्था अध्यक्ष ने उत्तराखंड के सभी प्रबुद्ध जनों से आह्वान किया कि वे जहां भी रहें, उत्तराखंड की बोली-भाषा को अपने घर, बाल- बच्चों व अपने समाज के मध्य पहली प्राथमिकता दें। अपनी दूधबोली का संरक्षण व संवर्धन करें, क्योंकि हमारी लोक संस्कृति से हमारी बोली-भाषा जुड़ी हुई है, उसका महत्व है।
संस्था उपाध्यक्ष सुरेन्द्र हालसी द्वारा 12 जून 2022 को हिंदी भवन दिल्ली में गठित संस्था के उद्देश्यों पर विस्तार पूर्वक प्रकाश डालते हुए कहा गया कि संस्था गठन कुमाउनी बोली-भाषा के संवर्धन, बोली-भाषा में कवि सम्मेलन आयोजित कर युवा कवियों को प्रोत्साहन देने अन्य गठित संस्थाओं के साथ तालमेल बना उत्तराखंड की तीनों प्रमुख बोली-भाषाओं के संवर्धन व मान-सम्मान के लिए संघर्ष करने के मुख्य उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ रहा है। कहा कि संस्था गठन से अभी तक संस्था के बैनर तले अनेक आनलाइन बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं। विस्तृत दायरे में डिजिटल व अन्य माध्यमों से उत्तराखंड के लोगों से संपर्क साध बोली-भाषा के संवर्धन के लिए कार्य योजनाएं बनाई जा रही हैं और उन्हें धरातल पर उतारा जा रहा है।
आयोजन के पहले सत्र में जनकवि व लोकगायक स्व.हीरा सिंह राणा पर केन्द्रित चारु तिवारी द्वारा छह भागो में लिखित पुस्तक ‘लस्का कमर बांधा’ पर डाॅ प्रकाश उप्रेती व मनोज चंदोला द्वारा स्व.हीरासिंह राणा की जीवन गाथा रचित गीतों, कविताओं व उनके गायन पर विस्तृत प्रकाश डाला गया। गायक प्रकाश आर्या द्वारा स्व.हीरासिंह राणा द्वारा रचित व स्व. लोकगायक की आवाज में, सु-प्रसिद्ध लोकगीत ‘पूरबी को दिन, पश्चिम न्है गोछ…।’ का प्रभावशाली गायन किया गया।
आयोजन के दूसरे सत्र कुमांऊनी भाषा गोष्ठी में आचार्य प्रकाश चंद्र फुलोरिया व चारु तिवारी द्वारा कुमाउनी बोली-भाषा के इतिहास, विभिन्न कालखंडों में हुई बोली-भाषा की उन्नति व हुए ह्रास तथा वर्तमान में बोली-भाषा की दशा व दिशा पर ज्ञान वर्धक प्रकाश डाला गया। कुमाउनी बोली-भाषा का अन्य भाषाओं से सम्बंध व कुमाउनी शब्द संपदा पर पड़े प्रभाव पर उदाहरण देकर बोली-भाषा के महत्व व महत्ता पर रुचि पूर्ण प्रकाश डाला गया। कहा गया कि भाषा और साहित्य तभी है, जब हमारे सरोकार हों । बोली-भाषा के संवर्धन के लिए सरोकार जरूरी हैं। कुमाउनी, गढ़वाली व जौनसारी सभी से संवाद जरूरी है। हर संस्कृति से संवाद जरूरी है। सब स्थान सुंदर हैं। सभी समाजों की संस्कृतियां सुंदर हैं।
वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान में आज की युवा पीढ़ी द्वारा उत्तराखंड की बोली-भाषा के गीत-संगीत व साहित्य पर काम करना बोली-भाषा के उत्थान के लिए शुभ संकेत हैं। कहा कि भाषा की मूल अभिव्यक्ति, लोक अभिव्यक्ति है। जब तक हमारी प्रकृति, नदियां, गांव, मेले-ठेले जिंदा रहेगें, बोली-भाषा जिंदा रहेगी। जब तक लोक रहेगा समाज रहेगा, बोली-भाषा जिंदा रहेगी। वक्ताओं द्वारा आह्वान किया गया कि सब लोग गठित कुमांऊनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति नई दिल्ली से बोली-भाषा के उत्थान के लिए जुड़ें।
आयोजन के तीसरे सत्र, कवि सम्मेलन में शैलेजा उप्रेती, मीना पांडे, आशा नेगी, डाॅ पुष्पा जोशी, राजू पांडे, डाॅ प्रकाश जोशी, दिनेश छिमवाल, रघुवर दत्त शर्मा, रमेश उप्रेती, नीरज बवाडी़, कमला काकडी़, जगदीश नेगी, संतोष जोशी द्वारा कुमांऊनी बोली-भाषा मे प्रकृति, भू-कानून, रोजमर्रा की समस्याओं, पलायन, बेरोजगारी व व्याप्त भ्रष्टाचार पर बेबाक, प्रभावशाली कविताओं का वाचन किया गया।
दिनेश छिमवाल की कविता ‘ठंडी हवा ठंड पाणी….।’ मीना पांडे की प्रकृति व उत्तराखंड की समस्याओं से जुडी कविता तथा कविता जगत में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों से जुड़ी रही व सम्मान प्राप्त डाॅ पुष्पा जोशी की सन्देश परक कुमाउनी कविता, ‘भाषा कै बणाओ सरस्वतीक वास….।’ प्रभावशाली कविताओं में प्रमुख रही। आशा नेगी द्वारा प्रस्तुत कुमाउनी न्योली ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध तथा नाचने-झूमने को मजबूर किया।
इस अवसर पर, अल्मोड़ ‘पहरू’ संस्था द्वारा 2016 में आचार्य प्रकाश चंद्र फुलोरिया को कुमाउनी साहित्य सृजन हेतु घोषित सम्मान पहरू संस्था से जुड़े गिरीश बिष्ट ‘हंसमुख’ द्वारा प्रदान किया गया।
कुमाऊनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति नई दिल्ली पदाधिकारियों द्वारा इस अवसर पर, सभी मुख्य वक्ताओं, कुमाउनी कवियों के साथ-साथ आयोजन की अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर देवी प्रसाद भारद्वाज, डीएवी सेटेनरी प्रधानाचार्य डाॅ सरिता भगत, प्रोफेसर अरुण भगत, हेमपंत, आनंद सिंह जमवाल, महेंद्र बिष्ट व श्रीमती महेंद्र बिष्ट को शाल ओढ़ाकर व स्मृति चिन्ह प्रदान कर, सम्मानित किया गया।
आयोजित कुमांऊनी भाषा गोष्ठी व पुस्तक ‘लस्का कमर बांधा’ पर हुई चर्चा सत्रों का मंच संचालन, हेमपंत व कुमांऊनी कवि सम्मेलन का मंच संचालन, नीरज बवाडी द्वारा बखूबी, प्रभावशाली अंदाज में किया गया।
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