उत्तराखंड की विभूति हीरा बल्लभ जोशी को मिला भारत सरकार में उच्च पद भार, बधाइयां मिलीं

ख़बर शेयर करें -

सी एम पपनैं

उत्तराखंड। चम्पावत जनपद स्थित बारी गांव के मूल निवासी हीरा बल्लभ जोशी (आई आर ए एस) भारत सरकार के रेलवे मंत्रालय के उपक्रम डेडीकेटेड बीवी फ्रेट कॉरिडोर कारपोरेशन ऑफ इंडिया (DFCCIL) के प्रबंध निदेशक पद पर पदस्थ किए गए हैं। उक्त महत्वपूर्ण शीर्ष पद पर आसीन होने वाले वे उत्तराखंड की पहली विभूति हैं।

उक्त पदभार ग्रहण करने पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा, राज्य सेतु आयोग उपाध्यक्ष राजशेखर जोशी, विधायक खुशाल सिंह अधिकारी, जिला पंचायत अध्यक्ष ज्योति राय, बाराही मंदिर कमेटी मुख्य संरक्षक लक्ष्मण सिंह लमगड़िया, मंदिर ट्रस्टी व जानेमाने समाजसेवी नरेंद्र लडवाल, बाराही मंदिर कमेटी अध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट समेत देवीधुरा क्षेत्र के चार खाम, सात थोकों से जुड़े दिनेश जोशी इत्यादि इत्यादि द्वारा हीरा बल्लभ जोशी (IRAS) को बधाई प्रेषित की गई है।

बाल्यकाल से वाराही धाम देवीधुरा के परम भक्त रहे हीरा बल्लभ जोशी को भारत सरकार में शीर्ष पद पर नवाजे जाने की खुशी में देवीधूरा क्षेत्र के लोगों द्वारा अपार हर्ष व्यक्त कर अपने गांवों में मिठाई बांट खुशी का इजहार किया गया है।

डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया (DFCCIL) देश की सबसे बड़ी रेल अवसंरचना परियोजना है, विकास और क्रियान्वयन की जिम्मेदारी इस कारपोरेशन के अंतर्गत आती है। कारपोरेशन का मुख्य उद्देश्य भारत में रेल परिवहन परियोजना प्रणाली की दक्षता और क्षमता को बढ़ाना तथा माल परिवहन लागत को कम करना रहा है।

उत्तराखंड की विभूति हीरा बल्लभ जोशी की प्रारंभिक शिक्षा देवीधूरा से हुई है। 1985 में डी. एस. बी. कालेज नैनीताल से स्नातक तथा जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय, नई दिल्ली से स्नातकोत्तर व एम. फिल की उपाधि प्राप्त करने वाले हीरा बल्लभ जोशी द्वारा ‘उत्तराखंड मूवमैंट-ए सोशियोलॉजिकल अनालिसिस’ नामक ग्रंथ की रचना की है। एक स्वतन्त्र पत्रकार के रूप में राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर ज्ञानवर्धक लेख लिखे हैं। सन 1992 में संघ लोक सेवा आयोग से सिविल सर्विस (आई आर ए एस) परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी के रूप में भोपाल, मुंबई आदि अनेक स्थानों में कार्य करने के बाद नई दिल्ली नगर पालिका परिषद में निदेशक (वित्त) पद पर पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में देश के रेल मंत्रालय में शीर्ष प्रशासनिक व वित्त अधिकारी हीरा वल्लभ जोशी (IRAS) को उनकी ईमानदार छवि, कार्यों के प्रति निष्ठा व अभूतपूर्व प्रतिभा के बल पर भारत सरकार के रेलवे मंत्रालय के उपक्रम डेडीकेटेड बीवी फ्रेट कॉरिडोर कारपोरेशन ऑफ इंडिया (DFCCIL) के प्रबंध निदेशक पद पर नियुक्त किया गया है।

यह भी पढ़ें 👉  मुख्यमंत्री धामी ने सैनिक स्कूल घोड़ाखाल का किया दौरा, 'एक पेड़ माँ के नाम' वृक्षारोपणअभियान में लिया भाग

रेलवे समेत देश के अन्य प्रमुख विभागों में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए राष्ट्रपति तथा अन्य विभिन्न मान्य व प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा हीरा बल्लभ जोशी को विभिन्न अवसरों पर भव्य राष्ट्रीय समारोहों व आयोजनो में पुरुस्कृत किया जाता रहा है।

उत्तराखंड चंपावत जनपद के बारी गांव में जन्मे हीरा बल्लभ जोशी के पिता पंडित स्व. केशव जोशी व माता दुर्गा देवी द्वारा अति अभावग्रस्त जीवन जी कर बेटे की शिक्षा को प्राथमिकता देकर अपना जीवन यापन किया गया है। जीवन में कठोर अनुशासन, ईमानदारी, लगन एवं समर्पण के भाव तथा संस्कार हीरा बल्लभ जोशी को अपने संस्कारवान माता-पिता से मिले हैं। उक्त समर्पण और संस्कारों के बल ही उत्तराखंड की इस विभूति को जीवन में उच्च मुकाम तक पहुंचने में मदद मिली है।

हीराबल्लभ जोशी बाल्यकाल से ही ऐतिहासिक वाराही मंदिर देवीधूरा के परम भक्त व समर्पित सेवादारों में रहे हैं। जीवन की हर कठिनाई और विपदा में मां वाराही देवी की कृपा इस भक्त पर बनी रही है। मां वाराही से मिले आशिर्वाद के बल ही आज समर्थ होने पर इस भक्त द्वारा अपना जीवन वाराही धाम को समर्पित किया हुआ है। उक्त मंदिर को देश के धार्मिक मानचित्र पर लाने हेतु प्रतिबद्ध होकर कार्य किया जा रहा है। विगत कई वर्ष पूर्व इस ऐतिहासिक वाराही मन्दिर ट्रस्ट का पहला अध्यक्ष बनने का भी सौभाग्य हीरा बल्लभ जोशी को प्राप्त हुआ है। मंदिर के उत्थान हेतु कई अन्य जिम्मेदारी भी मंदिर के इस परम भक्त को सौंपी गई हैं।

यह भी पढ़ें 👉  रानीखेत विकास संघर्ष समिति ने गांधी पार्क में पुनः तम्बू गाड़ा, पहले भी एक वर्ष तक कर चुके धरना-प्रदर्शन

अंचल की पारंपरिक लोक संस्कृति व लोककला के प्रति असीम लगाव रखने वाले हीरा बल्लभ जोशी द्वारा ‘प्राकृतिक सौंदर्य को निहारती, एक देवी’ “वाराही मन्दिर देवीधूरा” (रंगीली कुमाऊं की अद्भुत झलक) नामक शीर्षक से 2006 में शोध पुस्तक की रचना कर उक्त मन्दिर के ऐतिहासिक और धार्मिक पहलुओं के साथ-साथ अंचल के धार्मिक मेलों, त्योहारों रीति-रिवाजों, लोकगीतों तथा परंपराओं पर ज्ञान वर्धक प्रकाश डाला गया है। उच्च कोटि की सोच और लेखनी का परिचय देते हुए हीरा बल्लभ जोशी द्वारा रचित अन्य पुस्तकों में सनातन धर्म, भारतीय खेल व वित्त तथा मां वाराही आदि मुख्य रही हैं। गरुण पुराण पर संकलित पुस्तक ने काफी लोकप्रियता हासिल की है।

उच्च प्रतिभा के धनी हीरा बल्लभ जोशी की कामना रही है, हिमालय की लम्बी श्रंखलाओं के विहंगम व रमणीक नजारों व शांति से ओतप्रोत रमणीक स्थल पर स्थापित ऐतिहासिक वाराही मन्दिर देवीधूरा अंचल व देश का एक अलौकिक धाम बने। पूर्वजों की विरासत इस मंदिर के पाषाण स्वरूप में किसी भी प्रकार की छेड़-छाड़ किए बिना उक्त मंदिर को उत्तर भारत का एक ऐसा मन्दिर बनाने की सोच पर हीरा बल्लभ जोशी द्वारा कार्य किया जा रहा है। कार्य योजना के मुताबिक़ मंदिर के शीर्ष में श्री बद्रीनाथ मन्दिर शैली के अनुसार पत्थर लगाने की योजना बनाई गई है। मंदिर में शिल्पकला का समावेश नागर, द्रुविड, पिरामिड गुंबद व शिखर शैली के अलावा, नेपाल के पशुपति नाथ मन्दिर की शिल्प शैली के संगम के आधार पर एक ऐसा भव्य और दिव्य अलौकिक मन्दिर बनाने की है जिसमें भगवान सूर्य नारायण की पहली किरण मां बाराही का अभिषेक करती नजर आएगी।

यह भी पढ़ें 👉  मुख्यमंत्री धामी ने सैनिक स्कूल घोड़ाखाल का किया दौरा, 'एक पेड़ माँ के नाम' वृक्षारोपणअभियान में लिया भाग

बनाई गई योजनानुसार मन्दिर में ऐसी दूरबीन भी भविष्य में लगाई जानी है जिससे लोग यहां से हिमालय का चमकता दमकता विहंगम नजारा देख सकेंगे। इस स्थान से हिमालय की इतनी लम्बी श्रृंखलाएं दिखाई देती हैं जितनी अन्य स्थान से संभव नहीं है। उक्त मन्दिर के प्रवेश में 25 मीटर तथा पाश्र्र्व में 37 मीटर तथा 70 फीट ऊंचा यह जागृत मन्दिर क्षेत्रीय लोगों की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करने के साथ-साथ यहां की लोककला, संस्कृति, परंपराओं, मान्यताओं के अलावा मंदिर में संस्कृत के आचार्य भी तैनात किए जाने की योजना बनाई गई है।

अपनी प्रतिभा के बल भारत सरकार के उच्च पद पर पदस्थ हीरा बल्लभ जोशी के अनुभव व सूझ-बूझ भरे कार्यों का अवलोकन कर समझा जा सकता है, कई मायनों में उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल देवीधूरा का यह मन्दिर अपनी विशिष्टता की चमक से देश-विदेश के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता नजर आयेगा। उक्त मंदिर शताब्दियों पूर्व की परंपराओं का ध्वज वाहक बनेगा। भविष्य में उत्तर भारत के लोग ही नहीं अपितु बौद्ध धर्म के लोग भी पूजा अर्चना करने के लिए इस आलौकिक धाम में आते जाते रहेंगे।
—————–

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *