वाह! गेरू-बिस्वार के ऐपण से स्कूली बच्चों ने लोक कला ऐपण के पुराने स्वरुप को किया पुनर्जीवित
रानीखेत: उत्तराखंड की लोक कलाएं / चित्र अद्वितीय और विविध हैं। ऐसी ही उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल की एक प्रमुख लोक कला है ऐपण, यानी लेखन या कहें आलेखन। सदियों से चली आई इस लोक कला का प्रत्येक कुमाउनी घर में सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। हमारे हर त्योहारों, शुभ अवसरों, धार्मिक अनुष्ठानों और नामकरण संस्कार, विवाह , जनेऊ आदि जैसे पवित्र समारोहों का एक अभिन्न अंग है ऐपण।
सभी शुभ कार्यों की शुरुआत ऐपण बनाने से की जाती है। लेकिन धीरे-धीरे यह लोककला अपना पुराना स्वरूप खोती जा रही है या कहें अब ऐपण का गेरु-बिस्वार वाला पारंपरिक चित्रण बिला गया है और बाजार इसे अधुनातन रुप में सामने लाया है।
ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के स्कूली बच्चों ने ऐपण के पारम्परिक स्वरूप को पुनर्जीवित करने की न केवल सुखद शुरूआत की अपितु अपनी प्रतिभा का सफल प्रदर्शन कर प्रतिभा दिवस के मायने को भी साकार कर दिखाया है।
जी हां,बात हो रही है ताड़ीखेत विकास खंड अंतर्गत राजकीय जूनियर हाईस्कूल गाड़ी की, जहां आज प्रतिभा दिवस के अवसर पर ऐपण प्रतियोगिता आयोजित की गई। जिसमें प्रतिभागियों ने गेरू और बिस्वार से द्वार आलेखन, लक्ष्मी चौकी, आदि का अपनी अंगुलियों से नायाब चित्रण किया। ऐसे समय में जब कुमाऊं की यह लोक कला स्टीकर और पेंट -ब्रश में जाकर ठहर गई हैं इस कला को नन्हे हाथों के जरिए पुराने पारंपरिक स्वरूप में वापस लाने का प्रयास प्रशंसनीय कहा जाना चाहिए।