भर्ती घोटाले के राजनीतिक आकाओं तक पहुंच पाएगी जांच?
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे’, उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान बच्चे से लेकर बूढ़ों तक की जुबां पर यह नारा आम था। लेकिन, राज्य गठन के22 वर्षों बाद प्रदेश में कोदा-झंगोरा मिलना किस कदर मुश्किल हो चला है, कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे’, उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान बच्चे से लेकर बूढ़ों तक की जुबां पर यह नारा आम था।उत्तराखंड राज्य आंदोलन में गिर्दा के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उनके गीतों ने आंदोलन को ऐसी धार दी थी कि गीतों और कविताओं को सुन घरों में बैठे लोग भी सड़कों पर उतरने को मजबूर हो जाते थे। ‘हम लड़ते रैंया भुला हम लड़ते रूंला’ गीत आज भी राज्य के लोगों को एकजुट करता है उत्तराखंड आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 में राज्य गठित किया गया. राज्य गठन के बाद सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री कार्यकाल में पटवारी भर्ती घोटाला सामने आया. इस घोटाले में कुछ अधिकारियों पर कार्रवाई तो हुई, लेकिन किसी भी राजनेता को इस मामले में कोई सजा नहीं हुई. पहाड़ी हमेशा ही ठगे गए. जब हम उत्तर प्रदेश में थे, उस वक़्त अलग राज्य बनने के लिए हमने मार खाई. हमारी मां-बहनों से बेइज्जती की गई. कई लोगों की जान चली गई. उस वक़्त कई तरह की उम्मीदें रही. विधानसभा बैक डोर भर्ती मामला, सचिवालय दल रक्षक भर्ती अनियमिमता मामले को लेकर बवाल मचा हुआ है. भर्ती में हुई इन अनिमितताओं के कारण उत्तराखंड सोशल मीडिया से लेकर समाचार पत्रों की सुर्खियों में है. वहीं, राज्य में सरकारी नौकरियों में हुई धांधली को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी हल्ला मचा हुआ है. जहां विपक्ष इन सब मामलों पर आक्रामक हैं, वहीं राज्य सरकार इसे लेकर बैकफुट पर नजर आ रही है. मगर ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में इस तरह की धांधली या घोटाले की खबर पहली बार सामने आई है, इससे पहले भी कई विभागों में भी इस तरह की अनियमितताएं सामने आई हैं. विधानसभा अध्यक्ष के विशेषाधिकार के नाम पर वहां मनमानी भर्तियां हो रही हैं, कुछ को खास लोगों की सिफारिश पर रखा जा रहा था, तो कई बड़ी कीमत देकर पद हासिल कर रहे थे। पद भी ऐसे जो लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करने के बाद ही प्राप्त होते हैं। यह क्रम राज्य बनने के साथ ही शुरू हो गया था, यह बात आम थी, हर कोई जानता था और मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच इस पर चर्चा भी होती रहती थी। पिछली और वर्तमान सरकार में सहकारिता विभाग में भर्ती के नाम पर जो खेल खेला जा रहा था, वह भी पब्लिक डोमेन में मौजूद था। लोक सेवा आयोग से लेकर शिक्षा विभाग तथा अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में हो रही भर्तियों में गड़बड़ियां हो रही हैं, यही भी सभी लोग जानते थे। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियों में एक के बाद एक पेपर लीक हो रहे हैं, उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों में भर्ती घोटालों में सक्रिय भूमिका निभाने वाला गैंग उत्तराखंड में अंदर तक घुस चुका है, यह बहुत कम लोगों को पता था। स्नातक लेबल भर्ती का पर्चा आउट होने का मामला जब सामने आया तो एक के बाद एक सभी घोटाले बेपर्दा होने लगे। अब हालात इस कदर खराब हो गए हैं कि सभी परीक्षाओं में गड़बड़ियां पूरी तरह बेपर्दा हो गई हैं। इसलिए राज्य सरकार को एक के बाद एक परीक्षाओं का परीक्षण कराने पर विवश होना पड़ रहा है। अब सरकार पर यह जिम्मेदारी आ गई है कि जनता के मन में भर्तियों को लेकर जो अविश्वास घर कर गया है, उसे कैसे समाप्त किया जाए? जनता में बढ़ रहे आक्रोश से हालात इस कदर खराब होने लगे हैं कि राज्य में एक नया संकट खड़ा हो सकता है।अधीनस्थ सेवा चयन आयोग पेपर लीक मामले ने 22 साल के उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों की किस तरह बंदरबांट हो रही थी, इसे खोलकर रख दिया। इस भर्ती घोटाले के बाद परत दर परत नए नए भर्ती घोटाले सामने आ रहे हैं। यह साफ हो गया है कि सरकार में बैठे लोग किस तरह अधिकारों का दुरूपयोग कर अपनों को रेवड़ियां बांट रहे थे और व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर रहे थे। भर्ती घोटाले में अब तक क्या-क्या बातें सामने आई हैं, इस पर एक नजर डालते हैं।दिसंबर 2021 में 13 विभागों के 916 पदों के लिए स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा का आयोजन किया गया। इस परीक्षा में दो लाख 16 हजार अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था और 1 लाख 46 हजार से अधिक परीक्षा में शामिल हुए थे। लखनउ की आरएमएस साल्यूशन्स प्रा.लि. ने इस परीक्षा का पेपर पिं्रट किया। एसटीएफ के अनुसार पेपर लीक करने में इस प्रिंटिंग प्रेस की भूमिका रही। प्रेस के मालिक राजेश चौहान ने पेपर आउट कर धामपुर के दलाल को मुहैया कराया। केंद्रपाल ने इसे हाकम सिंह रावत को दिया, जहां से पेपर विभिन्न अन्य दलालों से होते हुए परीक्षा देने वालों तक पहुंचा। प्रेस का मालिक राजेश चौहान गिरफ्तार हो चुका है, जांच की शुरूआत में कंपनी के दो कर्मचारी एसटीएफ के हाथ लग चुके थे।एसटीएफ के अनुसार दलाल केंद्रपाल ने हाकम सिंह के जरिये पेपर लीक करने के बदले धन जुटाया, जिसमें से करोडों रुपये़ प्रेस के मालिक को भेजे गए। यह धन किसी बैंकिंग सिस्टम जरिये भी नहीं भेजा गया और न ही इसके लिए हवाला का उपयोग हुआ, बल्कि राजेश चौहान के धामपुर के संपर्क सूत्रों के हाथों यह धनराशि हाथों-हाथ नकद लखनउ पहुंचाई गई।स्नातक स्तरीय परीक्षा के पेपर लीक का मामला सामने आते ही एक-एक कर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा आयोजित की गई परीक्षाओं के साथ अन्य परीक्षाओं की भी परतें खुलने लगी।अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के परिसर में आयोग की एक प्रेस लगाई गई है। जिसमें छोटी परीक्षाओं के लिए पेपर छापा जा सकता है। कोरोनाकाल में यह प्रेस आयोग ने लगाई थी। इस प्रेस में पहला पेपर सचिवालय रक्षक भर्ती परीक्षा का छपा, जिसमें करीब 26 हजार उम्मीदवार शामिल हुए थे। यह पेपर भी लीक हो गया था।अब तक एसटीएफ इस प्रकरण में 33 गिरफ्तारियां कर चुका है। संभव है कि इस लेख के प्रकाशित होने तक कुछ और गिरफ्तारियां हो जाएं। भर्ती घोटाले पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने बड़ा फैसला लेते हुये जिन परीक्षाओं में गड़बड़ी के साक्ष्य मिले हैं उन्हें निरस्त कर नए सिरे से चयन प्रक्रिया शुरु की जाएगी. मुख्यमंत्री ने एक फेसबुक पोस्ट के माध्यम से यह भी बताया कि भर्ती घोटाले में में दोषियों को चिन्हित कर उनकी गिरफ्तारी, अवैध संपत्ति को ज़ब्त करने और गैंगस्टर एक्ट व पीएमएलए में कार्यवाही की जाएगी. भर्ती घोटाले में उत्तराखंड के बड़े-बड़े नेताओं के शामिल होने की बात कही जा रही है. पूर्व भाजपा सरकार में हुये इस घोटाले में आरोप है कि भर्ती घोटाले में कई विधायक और राज्य कर्मचारी भी शामिल हैं.अब तक हुई जांच में कई बड़े-बड़े नामों पर उँगलियाँ उठी हैं हालांकि सभी ने अपना दामन बचाए रखा है. आरोप था कि भर्ती घोटाले में बड़ी मछलियों को पकड़ने के बजाय छोटी मछलियों को पकड़ खानापूर्ति की जा रही है. मुख्यमंत्री की इस घोषणा के बाद यह तय है कि सरकार ने साफ नियत से जांच शुरु करने की ओर पहला कदम तो बढ़ा ही दिया है. अभ्यर्थियों की बात लगभग गायब हो गयी है. पहले से ही कहा जाता था कि एक अभ्यर्थी का उत्तराखंड में किसी सरकारी नौकरी की तैयारी में जुटना मतलब पंचवर्षीय योजना में अपना रजिस्ट्रेशन कराने जैसा है. इस पूरे समय में जिस मानसिक प्रताड़ना से वह गुजरते हैं उसपर भी कहीं कोई बात नहीं है. एक अभ्यर्थी जो अपनी मेहनत के बल पर एक परीक्षा पास करता है और परिणाम आने के छः महीने बाद भर्ती ही निरस्त कर दी जाती. उत्तराखंड में सरकारी नौकरी प्राप्त करने की प्रक्रिया को सांप-सीढ़ी का खेल बना दिया गया है नीति पर सवालिया निशान लगाती नजर आती है।