फिर मांगी रक्षा मंत्रालय ने भूमि कानून को लेकर आपत्तियां,क्या छावनियों के बाशिंदों को मिल पाएगी राहत?
रानीखेत:-रक्षा मंत्रालय ने छावनियों में लागू भूमि प्रबंधन अधिनियम 1937 में संशोधन के प्रयास एक बार फिर शुरू कर दिए हैं,इसके लिए नागरिकों से 23जुलाई 2021तक सुझाव एवं आपत्तियां देने को कहा गया है।
उल्लेखनीय है कि छावनी परिषद के बासिंदे लम्बे समय से भूमि अधिनियम में संशोधन की मांग करते आ रहे हैं।नागरिकों का मानना है कि देश की 62 छावनियों में छावनी अधिनियम और भूमि प्रबंधन अधिनियम 1937को अंग्रेजों ने अपने हित पोषण के लिए लागू किया और स्थानीय लोगों से ही भूमि खरीद उन्हें ही लीज पर आवंटित कर दिया।आज ब्रिटिश हुकूमत के बनाए सख्त लीज एवं भूमि कानून के प्रावधानों का खामियाजा छावनियों के नागरिक भुगत रहे हैं।स्वतंत्रता के 73वर्ष बाद भी नागरिक 1937 में बनाए गए भू अधिनियम के नीचे दबे रहने को विवश है।
इस बीच रक्षा मंत्रालय भारत सरकार ने उपर्युक्त अधिनियमों में संशोधन हेतु एक बार फिर से आम नागरिकों व विभिन्न संगठनों से सुझाव व आपत्तियां मांगी हैं जो 23जुलाई तक प्रेषित की जानी हैं।लेकिन छावनी कानूनों के जानकार अधिनियम के नए प्रस्तावित ड्राफ्ट को भी शंका से देख रहे हैं उनके अनुसार रक्षा मंत्रालय भारत सरकार द्वारा छावनी भूमि प्रबंधन कानून 1937का नया प्रस्तावित ड्राफ्ट भी नागरिकों के लिए राहत से अधिक दुश्वारियों का सबब बन सकता है। इस नए प्रस्तावित ड्राफ्ट में नागरिकों को भूमि लीज पर देने का कानूनी प्रावधान तो रखा गया है लेकिन दस वर्ष तक और इसके बाद भूमि किन नियम व शर्तों में होगी यह स्पष्ट नहीं है।
इस मामले में रविवार को दोपहर शिव मंदिर सभागार में बैठक आहूत की गई है जिसमें नागरिकों के सुझाव व आपत्तियां ली जाएंगी।छावनी परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष,मोहननेगी व संजय पंत ने नागरिकों से पहुंचने को कहा है।