यूरोपियन देशों में पसंद की जा रही चम्पावत की चाय

ख़बर शेयर करें -


डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
चंद राजाओं की राजधानी रही चम्पावत की चाय अब यूरोपियन देशों के लोगों की पसंद बन रही है। वह यहां की जैविक चाय की चुस्की से अपने को तरोताजा महसूस करने लगे हैं। पिछले दो सालों में यहां 34,300 किलो का उत्पादन हुआ। 17 ग्राम पंचायतों के 161 हेक्टेयर में चाय की खेती लहलहाने लगी है। जिससे ग्रामीणों की आय बढऩे के साथ ही हर दिन चार सौ श्रमिकों को भी रोजगार मिल रहा है।उल्लेखनीय है कि दो सौ साल पहले जब अंग्रेज चम्पावत आए थे। उस समय उन्होंने चाय की खेती शुरु करवायी। लेकिन वह सीमित स्थानों पर ही हो सकी। आजादी के बाद यह बागान भी रखरखाव के अभाव में उजड़ गए। टी बोर्ड के गठन के बाद वर्ष 1995-96 से पुन: पर्वतीय क्षेत्रों में चाय विकास योजना को लागू करने के प्रयास हुए। चम्पावत जनपद में वन पंचायत सिलंगटाक में चाय बागान की शुरुआत हुई। लेकिन वर्ष 1997 में न्यायालय के एक फैसले के बाद वन पंचायतों में इसके रोपण पर गतिरोध आ गया। 2004 में फिर चाय की खेती को बढ़ावा देने के लिए ग्राम पंचायतों में काश्तकारों की भूमि पर इसे लगाने की पहल हुई। 2007 में छीड़ापानी में नर्सरी बनाकर इसके रोपण में तेजी आ गयी। अभी तक जनपद की सिलंगटाक, छीड़ापानी, मुडिय़ानी, मौराड़ी, मझेड़ा, चौकी, च्यूरा खर्क, भगाना भंडारी, नरसिंह डांडा, कालूखाण, गोसनी, फुंगर, लमाई, चौड़ा राजपुर, खेतीगाड़, बलाई आदि ग्राम पंचायतों की 161 हेक्टेयर भूमि में चाय की पौंध लहलहाने लगी है। टी बोर्ड के स्थानीय मैनेजर डैसमेंड बताते हैं कि चाय के पौधों की नर्सरी यहां तैयार होने से करीब चार सौ परिवारों को प्रतिदिन रोजगार मिल रहा है। ग्राम पंचायतों में मनरेगा योजना के तहत भी इस खेती को प्रोत्साहित करने से अब कई काश्तकार सामने आने लगे हैं। चम्पावत की जैविक चाय की मार्केटिंग कोलकाता में होती है। पैरा माउंट मार्केटिंग कंपनी द्वारा इस चाय को खरीदा जाता है, जहां से इसे जर्मनी इग्लैंड सहित यूरोपियन देशों में भेजा जा रहा है। वर्तमान में चाय की बिक्री दर प्रति किलो 350 से 400 रूपए है। टी बोर्ड की पहल पर जिला मुख्यालय में चाय फैक्ट्री स्थापित की गई है। कुमाऊं मंडल विकास निगम की लंबे समय से बंद पड़ी लीसा फैक्ट्री में इसे संचालित किया जा रहा है। पिछले वर्ष जून से बकायदा इसमें चाय की प्रोसेसिंग और पैकिंग होने लगी है। जिसमें उत्तरांचल टी नाम से उत्पाद बनकर तैयार हो रहा है। वर्ष 2013 से पूर्व प्रोसेसिंग और पैकिंग के लिए छीड़ापानी की निजी चाय फैक्ट्री से यह कार्य करवाया जाता था।  जिले में पर्यटन क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधाओं को बढ़ाए जाने हेतु अनेक विकास कार्य प्रगति पर हैं, ताकि यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने के साथ ही उन्हें आवश्यक सुविधाएं भी मिल सकें। इसी क्रम में मुख्यमंत्री घोषणा के अनुरूप जनपद मुख्यालय के सिलिंगटाक चाय बगान क्षेत्र जो पर्यटन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान हैं, जहां पर्यटकों की संख्या निरंतर बढ़ रही है, इस क्षेत्र में विभिन्न पर्यटन अवस्थापना सुविधाओं को बढ़ाए जाने हेतु सरकार द्वारा प्राथमिकता से कार्य किए जा रहे हैं। इस क्षेत्र में पर्यटन सुदृढीकरण एवं विभिन्न निर्माण कार्य किये जा रहे हैं। जिसका मुख्य उद्वेश्य पर्यटन को बढ़ावा देना है। जनपद चम्पावत का सिलिंगटाक प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण स्थान है। यह स्थल प्राकृतिक सौन्दर्य, चाय, बांज एवं देवदार के वन एवं हिमाच्छादित हिमालय तथा स्थलाकृति इत्यादि से परिपूर्ण है। उत्तराखण्ड चाय विकास बोर्ड के द्वारा वर्ष 2004 में वन पंचायत की भूमि पर चाय बगान विकसित करने का कार्य प्रारम्भ किया गया, जो वर्तमान में पूूर्ण रूप से विकसित होकर स्थानीय जनता के साथ-साथ पर्यटकों के मुख्य आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। सिलिंगटाक के मनमोहक दृश्य से अभिभूत होने के लिए वर्ष भर पर्यटक एवं स्थानीय लोगों का तांता लगा रहता है।इस संबंध में कार्यदाई संस्था ग्रामीण निर्माण विभाग के अधिशासी द्वारा अवगत कराया कि मुख्यमन्त्री घोषणा के अन्तर्गत सिलिंगटाक चाय बगान के सुदृढीकरण एवं विभिन्न निर्माण कार्य हेतु रू0 105.50 लाख प्राप्त हुआ। जिसके अन्तर्गत टूरिज्म हट की मरम्मत, दरवाजे एवं खिड़कियों को बदलना एवं रंग-रोगन, शौचालय का सुदृढीकरण, सेप्टिक टैंक एवं शोख पिट का निर्माण, पर्यटकों हेतु नये शौचालयों का निर्माण, व्यू प्वाइंट का कार्य, सैल्फी प्वाईट एवं टिकट काउण्टर का कार्य, चाय बागान स्थित रोड के किनारे जानवरों के बचाब हेतु चैन लिंक फैन्सिंग का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। साथ ही वर्तमान में कैफेटएरिया में रंग रोगन का कार्य प्रगति पर है और आगामी माह में कार्य को पूर्ण करते हुए इसे भी पर्यटकों के लिए खोल दिया जायेगा। उत्तराखंड के इतिहास में 181 सालों बाद ऐसा हो रहा है। उत्तराखंड में लगभग 200 सालों से चाय की खेती हो रही है। टी बोर्ड के मुताबिक अंग्रेजों ने सबसे पहले चंपावत क्षेत्र में चाय की खेती शुरू की थी। जब देश आजाद हुआ तब भी यहां के लोकल निवासियों को उत्तराखंड की चाय नसीब नहीं होती थी।आने वाले वर्षों में निश्चित रूप से उत्तराखंड को देश का आदर्श राज्य बनाएंगे.

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।