आपदा के नियमों में व्यापक सुधार की दरकारःतिवारी

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रानीखेत:विधिआयोग के पूर्व उपाध्यक्ष दिनेश तिवारी एडवोकेट ने उतराखंड राज्य में प्राकृतिक आपदाओं के लिए सरकार की ओर से दी जाने वाली आपदा राहत राशि को अपर्याप्त बताया है और प्रदेश के मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि बदली हुई परिस्थिति में आपदा के नियमों में भी व्यापक सुधार किये जाने चाहिए ।
कहा कि मकान के पूर्ण क्षतिग्रस्त होने पर प्रभावित परिवार को दो लाख रुपया और आपदा में मारे जाने पर चार लाख रुपया सहायता दिए जाने का प्रावधान है । कहा कि यह आज के दौर में प्रभावित परिवारों के लिए पर्याप्त नहीं है और इसे बढ़ाया जाना चाहिए ।कहा कि पहाड़ों में भवन निर्माण के लिए भी अलग मानक ज़रूरी हैं कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पहाड़ों में भी भवनों के निर्माण का मानक मैदानी क्षेत्रों की तरह ही तय किया गया है ।कहा कि किसी भी प्राकृतिक आपदा में पहाड़ी ढालों पर ज़्यादा नुक़सान भवनों के ढहने से होता है ।कहा कि पहाड़ों के लिए अपनी अलग भवन निर्माण तकनीकी , मानक तय किए जाने चाहिए ।उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्र में केंद्रीय सड़क व राजमार्ग मंत्रालय का २०१२ का सर्कुलर भी भूस्खलन का बड़ा कारण है । आरोप लगाया कि पहाड़ की संवेदनशील पहाड़ियों पर सड़क की चौड़ाई का मानक मैदानों की तरह बनाये और फिर लागू किए जाने से पहाड़ में भारी विनाश हो रहा है ।
श्री तिवारी ने कहा कि पहाड़ों के लिए मान्य ५.५ या ६ मीटर के स्थान पर ८ या ८.५ मीटर का निर्माण करवाया जा रहा है जो कि पहाड़ों की भूगर्भीय संरचना के ख़िलाफ़ है ।कहा कि सड़क निर्माण के मामले में २३ मार्च २०१८ के नए सर्कुलर को पहाड़ों पर लागू किया जाना चाहिए जिसमें पहाड़ के लिए सड़क की चौड़ाई पाँच – सात मीटर को ही लागू करने की वकालत की गयी है और डबल लेन with पेबड शोल्डेर को ख़ारिज कर दिया गया है ।कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि २३ मार्च २०१८ के सर्कुलर को आज तक लागू नहीं किया गया है कहा कि केदारनाथ आपदा के बाद यह तय किया गया था कि नदी घाटी में २०० मीटर की परिधि में कोई निर्माण नहीं किया जाएगा ।कहा कि प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद नदियों के किनारे निर्माण कार्य निर्वाध रूप से जारी है ।उन्होने कहा कि यह सरकार की विफलता है कि वह उत्तराखंड राज्य की समवेदनशीलता को सही तरीक़े से समझने में विफल रही है ।

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