चंद्रयान -3 की सफलता के जश्न के बीच सैन्य अधिकारी से अंतरिक्ष वैज्ञानिक बने ले.कर्नल नीलाम्बर पंत के योगदान को कैसे भुलाया जा सकता है!

ख़बर शेयर करें -

आज जब पूरा देश चंद्रयान की सफलता से गदगद है,एक नज़र उत्तराखण्ड के एक ऐसे अनमोल रत्न पर जिनके द्वारा वर्षों पहले किए अंतरिक्ष अनुसंधान के बिना ये उपलब्धि संभव नहीं थी ।

1931 में अल्मोड़ा में जन्मे नीलाम्बर पंत के पूर्वज गंगोलीहाट के ग्राम चिट्गल से आकर अल्मोड़ा के चंपानौला मोहल्ले में बस गये थे।इनके पिता पद्मादत्त पंत शिक्षा विभाग में उच्चाधिकारी थे।

अल्मोड़ा से इंटरमीडियट कॉलेज शिक्षा को पूरा करने के उपरांत उन्होंने 1948 में लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश किया और 1952 में, भौतिकी के विशेष विषय (वायरलैस) में स्नातकोत्तर का डिग्री प्राप्त की। मई 1965 में, वे भारत के प्रथम प्रायोगिक उपग्रह संचार भू-स्टेशन (ई.एस.सी.ई.एस.) के अहमदाबाद में स्थापना कर्म को सौंपी टीम के साथ जुडे़ । वे देश में शुरु से ही उपग्रह आधारित संचार और प्रसारण के क्रियाकलापों में शामिल थे। वे 1971 में स्थापित भारत के प्रथम वाणिज्यिक भू-स्टेशन अरवी पुणे के मुख्य प्रणाली अभियंता थे । उन्होंने इस स्टेशन की स्थापना के लिए विशेष तकनीकी और प्रबंधकीय योगदान दिए। 1974-75 में उनके निर्देशन में अहमदाबाद, दिल्ली और अमृतसर भू-स्टेशनों में उपग्रह अनुदेशीय दूरदर्शन प्रयोग (एस.आई.टी.ई.) के लिए मुख्य भू-स्टेशन उप-प्रणाली/उपस्कर को सफलतापूर्वक विकसित और स्थापित किया गया। श्री पंत प्रायोगिक उपग्रह संचार भू-स्टेशन के निदेशक और संचार क्षेत्र के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। निदेशक, शार के कार्यकाल के दौरान उपग्रहों के प्रमोचन के लिए आवश्यक विभिन्न सुविधाएँ स्थापित की गई। मई 1990 में उन्हें इसरो उपाध्यक्ष, नियुक्त किया गया और वे इसरो के विभिन्न केन्द्रों में चल रहे और भविष्य की कई परियोजनाओं में पूर्ण रूप से शामिल थे।

ले कर्नल पंत 1985 से 1990 तक यू.आर.एस.सी. के निदेशक रहे। उनके समर्थ नेतृत्व में चार मुख्य उपग्रह परियोजनाएँ स्रॉस-1, आई.आर.एस.-1ए, स्रॉस-2 एवं इन्सैट-1 सी. कार्यान्वित हुई। रोहिणी उपग्रह विस्तृत श्रृंखला की प्रथम उपग्रह स्रॉस-1 को प्रथम विकसित ए.एस.एल.वी. डारा प्रमोचित किया गया। इसी प्रकार स्वदेश में उन्नत सुदूर संवेदी उपग्रह आई.आर.एस.-1ए के अनुप्रयोग का प्रदर्शित किया गया । स्वर्गीय प्रो. यू.आर. राव अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं, उन्होंने भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास तथा प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र में संचार एवं सुदूर संवेदन के विस्तृत अनुप्रयोग के लिये मौलिक योगदान दिया । वे यू.आर.एस.सी. के प्रथम निदेशक थे। 1976 से 1984 तक केन्द्र के निदेशक के रुप में अपने कार्यकाल में, वे देश में उपग्रह प्रौद्योगिकी के विकास में अग्रणी पथ प्रदर्शक रहे। द्रुत विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग की अनिवार्य आवश्यकता की जरूरत को समझकर, प्रो. राव ने 1972 में भारत में उपग्रह प्रौद्योगिकी की स्थापना के लिये ज़िम्मेदारी ली। उनके मार्गदर्शन में, 1975 में प्रथम भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ संचार, सुदूर संवेदन तथा मौसम विज्ञान सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए 18 से भी ज़्यादा उपग्रहों की अभिकल्पना एवं प्रमोचित की गई।

1991 में अवकाश प्राप्त करने के बाद कर्नल नीलाम्बर पंत अहमदाबाद के Sterling City में नवनिर्मित रिहायशी काॅलोनी में बस गये.
सेवानिवृत्ति के बाद भी वे ISRO का मार्गदर्शन करते रहे.
उल्लास के इस अवसर पर उन्हें स्मरण करना अपना कर्तव्य समझता हूं.
हां इतना अफ़सोस अवश्य है कि चंपानौला में माल रोड से सटा उनका भव्य पैतृक निवास (जिसकी अनेक यादें आज भी मन में बसी हैं) अब इतिहास बन चुका है.वहां अब जीवन पैलेस नामक एक होटल मानो मुंह चिढ़ाता हुआ सा खड़ा है ।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदानों के लिए उन्होंने कई पुरस्कार प्राप्त किये हैं, जिसमें शामिल हैं :-

  • उपग्रह संचारों के क्षेत्र में उपलब्धियों के लिए 1984 में भारत सरकार द्वारा “पद्म श्री”
  • भारतीय एस्ट्रोनॉटिकल सोसाईटी द्वारा 1985 में डॉ. बीरेन रॉय अंतरिक्ष पुरस्कार
  • भारतीय एस्ट्रोनॉटिकल सोसाईटी द्वारा 1995 में आर्यभट्ट पुरस्कार
  • जनवरी 2005 में आयोजित 92 वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान के लिए “विक्रम साराभाई स्मरण पुरस्कार” स्वर्ण पदक शामिल हैं।
  • भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता में अनुकरणीय योगदान को स्वीकारते हुए इसरो द्वारा वर्ष 2006 के लिये ” उत्कृष्टता प्रदशनि पुरस्कार ” ।