जोशीमठ भू-धंसाव प्रकृति से छेड़छाड़ और विकास के अवैज्ञानिक माडल‌ का परिणाम: तिवारी

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विधि आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष दिनेश तिवारी एडवोकेट ने कहा है कि उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य प्रकृति के नियमों के साथ की गयी छेड़छाड़ के कारण भारी और अपरिवर्तनीय क्षय के दौर से गुज़र रहे हैं . और यहाँ निवास कर रही अमूल्य मानव सम्पदा भूस्खलन , भू धँसाव की अपरिहार्य घटनाओं के निशाने पर आ गयी है।

. यहाँ जोशीमठ से लौटने के बाद श्री तिवारी ने कहा कि जोशीमठ के आपदा प्रभावित लोग अपने जीवन के सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं और उन्हें पहुँचायी जा रही राहत पर्याप्त नहीं है . कहा कि अपने घरों से बेघर हुए लोगों को सरकारी मदद और आवास , भोजन के लिए गुहार करते देखना किसी भी सभ्य और आधुनिक हो रहे समाज के लिए बहुत शर्मनाक है . कहा कि उत्तराखंड राज्य के लिए यह संभव हो जाना चाहिए था कि वह अपने नागरिकों की प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा करने के लिए , आपदाओं से निपटने के लिए और तत्काल सहायता पहुँचाने का प्रभावी तंत्र विकसित कर पाता । कहा कि यह दुर्भाग्य है कि २२ वर्षों का उत्तराखंड राज्य ऐसा कर सकने में विफल साबित हुआ और सरकारें हर साल आने वाली प्राकृतिक आपदाओं का आकलन करने , मुआवज़ा वितरण करने और राहत शिविरों की व्यवस्था करने तक ही सीमित रह गयी हैं . कहा कि प्रदेश सरकार ने पहाड़ की संवेदनशील पारिस्थितिकी के सम्बन्ध में समय -समय पर दी गयी चेतावनियों की अनदेखी की है फिर चाहे मसला वृहद सड़क विस्तार परियोजना ( चारधाम मार्ग ) का हो या जलबिजली परियोजनाओं के निर्माण का, प्रदेश की सभी सरकारों ने वैज्ञानिकों , पर्यावरण विशेषज्ञों की राय को मानने से इंकार किया है . कहा कि आज पहाड़ के सभी प्रमुख शहर अनियोजित विकास , विस्तार के शिकार हैं और पर्यटन के नाम पर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बहुमंज़िला होटेल , रिज़ॉर्ट के निर्माण के लिए दी गयी अनुमति ने पहाड़ों के अस्तित्व के लिए ख़तरा पैदा कर दिया है .
पहाड़ों के लिए कोई भवन नीति नहीं होने की आलोचना करते हुए कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में अत्यधिक संवेदनशील इलाक़ों में बन रही वृहद पनबिजली परियोजनाएँ , बाँध , और विकास का अवैज्ञानिक माडल लगातार आपदाओं को आमंत्रित कर रहा है . कहा कि जोशीमठ जैसे ऐतिहासिक , पौराणिक , धार्मिक पहाड़ी शहरों का हो रहा पतन और मानव जीवन के सामने उत्पन्न संकट पहाड़ों में कारोबारी दुनियाँ की बढ़ रही लूट , खसोट और अनाधिकार हस्तक्षेप का दुखद परिणाम है . कहा कि विस्थापन तात्कालिक समाधान ज़रूर है पर यह बीमारी का इलाज नहीं है । कहा कि प्रदेश सरकार को केंद्रीय गृहमंत्रालय के राष्ट्रीय आपदा संस्थान की २०१३ की आपदा पर तैयार की गयी अध्ययन रिपोर्ट, और वाडिया इंस्टिट्यूट आफ हिमालयन जियोलाजी ( डब्लू आइ एच) के वैज्ञानिकों के इस अध्ययन को पढ़ना और समझना और लागू भी करना चाहिए जिसमें कहा गया है कि पहाड़ों की धारक क्षमता की अनदेखी कर किए जा रहे बेतहाशा निर्माण कार्यों ने भूस्खलन और भूधँसाव की घटनाओं को अपरिहार्य बना दिया है ।
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