लो जी, भरोसे लाल बागी हो गया

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व्यंग्य

लो जी , भरोसे लाल भी बागी हो गया।नेताजी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बता रहे थे उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि जिसे उंगली पकड़कर राजनीति का ककहरा सिखाया वो यूं हाथ झटक कर चला जाएगा ।भरोसे लाल पर इतना भरोसा था कि जितना शायद कभी अपने बीवी बच्चों पर भी ना रहा होगा ।मगर भरोसे लाल को इन सब बातों से क्या ?उसे तो बस… विधायक बनना है। आखिर नेताजी की विधायकी से लेकर मंत्री तक के विलासित जिंदगी के हमराज रहे भरोसे लाल के अंतस में नेताजी की लंबी कारों की सवारी, बंगले, फ्लैट्स ,शराब से लेकर खनन तक के कारोबार में हिस्सेदारी जहां जाएं जयकारे, आदि पाने की आकांक्षा ने विधायकी की मचलन काफी समय से पैदा की हुई थी। भरोसे लाल को भरोसा था कि इस बार नेताजी विधायकी का टिकट दिला कर वर्षों की चरण सेवा का प्रसाद अवश्य देंगे लेकिन दगा हो गया । इसलिए भरोसे लाल वर्षों तक नेता जी के चरणों में गिर पड़ कर जितनी खुरचन बटोर पाया उससे उसने इस बार विधायकी का चुनाव लड़ने का साहस संजो ही लिया। क्योंकि एक और उम्र पर चढ़ाई करती बालों की सफेदी और दूसरी ओर बीवी बच्चों का ‘चमचा ही बने रहियो’का दैनंदिन ताना उसे परेशान किए हुए था। यही कारण रहा कि बढ़ती उम्र में राजनीति से ‘नमस्ते’ हो जाने का डर और परिवार के उलाहने ने भरोसे लाल को पार्टी अनुशासन की चिन्दी उडा़ने को को मजबूर कर दिया ।
अलां पार्टी को अलविदा कहकर भरोसे लाल फलां पार्टी के दफ्तर में फूल माला और फलां पार्टी का अंगवस्त्रम पहने कैमरों की चमक के बीच खींसेे निपोरते हुए दिखाई दिया मगर दूसरे दिन फलां पार्टी के उम्मीदवारों की लिस्ट में भी उसका नाम नदारद मिला। भरोसे लाल का फलां पार्टी पर भी भरोसा जवाब दे गया उसका बागीपन जोर मारने लगा और उसने कुल जमा समर्थकों की टोली के साथ निर्दलीय चुनाव लड़ने की ठान ली। अब भरोसे लाल मैदान में है जिस पार्टी को नेताजी के साथ उसकी बेहतर केमिस्ट्री थी उसकी मैथ्स बिगाड़ने में लगा है। भरोसे लाल की मान मनोव्वल करने कई बड़े नेता भी आ चुके हैं ,पद प्रतिष्ठा दिलाने का प्रलोभन भी परोसा जा चुका है ,मगर इस परोसे में भी भरोसे को अब इतना भरोसा नहीं जितना खुद पर है ।भरोसे लाल ने दो- टूक कह डाला है ‘मौकापरस्त जरूर हूं, समझौता परस्त नहीं’। भरोसे लाल भले ही कल तक छुटभैया नेता की श्रेणी में गिना जाता रहा हो लेकिन आज उसकी मुख्य पार्टी उम्मीदवारों से अधिक चर्चा है। चाय -पान की दुकानों से लेकर सरकारी कार्यालयों तक की चर्चा में भरोसे लाल ही तैर रहे हैं कि आखिर ये भरोसे लाल किस मुख्य उम्मीदवार की फसल सुखाएगा। यानी हर तरफ भरोसे लाल की चर्चा ‘वोट कटुवा’ के रूप में हो रही है ।ये चर्चा भी भरोसे लाल की सबसे बड़ी जीत है चाहे चुनाव तक ही सही, नेताजी की चमचागिरी करते ये मुकाम शायद ही हासिल हो पाता।
भरोसे लाल का अपना कोई चुनावी एजेंडा नहीं है और ना ही कोई घोषणा पत्र। जनता के मध्य जाकर एक सूत्रीय कार्यक्रम दोहराया जा रहा है कि अलां पार्टी की वर्षों की सेवा का प्रतिफल धोखे के रूप में मिला है। भरोसे लाल की बात पर जनता मुंह दबाकर हंस रही है उसके लिए यह घिसी पिटी सी बात हो चली है ।क्योंकि अलां फलां पार्टी से उसे भी वोट देने का प्रतिफल धोखे के रूप में मिलता रहा है। भरोसे लाल गली-गली जनता का भरोसा जीतने निकल पडा़ है।बामुश्किल,भरोसे लाल के भीतर इस बार अपनी अलग राह चुनने का साहस पैदा हुआ है इस आजादी को वह गंवाना नहीं चाहता बल्कि उसका पूरा लुत्फ लेना चाहता है ।उसके भीतर बडे़ नेताओं सा एटिट्यूड भी घर कर गया है। भरोसे का बोलचाल,पोशाक चरणवंदन का ढंग,माहौल देखकर मतदाताओं के मध्य हंसने -रोने का नाटकीय अंदाज सबकुछ निराला है।एक गांव में तो भरोसे लाल महिलाओं के बीच जोर से रो दिया।महिलाओं की आंखे भी सजल हो गई।एक जानने वाले ने बताया कि भरोसे अपने पिता के देहांत पर भी इतना नहीं रोया ।भरोसे लाल के पास चंगु-मंगुओं की फौज भी बढ़ने लगी है जिनमें मुफ्त के सलाहकार भी हैं। जो उसे बता रहे हैं कि वोट किस तरह हासिल किए जा सकते हैं।इनमें मुख्य पार्टियों के अंसतोषी भी हैं जो क्षेत्र में अपने पाॅकेट वोट बताकर भरोसे लाल की पाॅकेट मारने की फिराक में हैं।भरोसे लाल द्वारा वर्षों नेताजी के चरणों में रहकर कमाई खुरचन पर इन सबकी नजर है।इस खुरचन का कमाल भरोसे लाल नामांकन का भीड़ महोत्सव आयोजित कर दिखा चुका है बाकी दावतों का सिलसिला अनवरत जारी है।इन सबकी कोचिंग भरोसे लाल अलां पार्टी से लेकर आया है।
चंगुए-मंगुए दावतें उडा़ रहे हैं दावतों के मध्य ही नारे हवा में शोर का गुबार बन उड़ रहे हैं’उत्तराखंड का एक ही लाल, भरोसे लाल,भरोसे लाल।’

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ऐसे समवेत नारे अलां-फलां पार्टी का खून सुखा रहें हैं ऐसी रिपोर्ट मिलने पर भरोसे लाल ने दावतों की सीरीज बढ़ा दी है चिपक चप्पूओं में उसे अपना अतीत दिखता है और फिर बीवी बच्चों का ताना ‘चमचे की बने रहियों’उसके अंतस में चुभने लगता है ।भरोसे लाल बुदबुदाने लगता है कि खुरचन की खर्चन से उसे क्या !उसे तो बस.. विधायक बनना है। पूरे राज्य में बहुतेरे भरोसे लाल चुनाव लड़ रहे हैं।अलां और फलां पार्टियां सीएम -पीएम के भरोसे हैं अकेले भरोसे लाल ही है जो भगवान भरोसे है और जनता के भरोसे पर कौन है ये तो मार्च की 10 तारीख की कोख में है।
C विमल सती