कुमाऊं, गढ़वाल व जौनसार के प्रमुख प्रवासी व्यवसायी, शिक्षा व कलाविद् करेंगे अंचल की लोककलाओं को समृद्ध

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नई दिल्ली (प्रकृतलोक ब्यूरो)। उत्तराखंड सदन चाणक्यपुरी में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था ‘पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली’ द्वारा, संस्था अध्यक्ष सी एम पपनैं की अध्यक्षता में 29 सितंबर को आयोजित आमसभा मे, संस्था कार्यकारिणी व साधारण सदस्यों सहित आमन्त्रित उत्तराखंड कुमांऊ, गढ़वाल व जौनसार के प्रमुख व्यवसायियों, सेवानिवृत नौकरशाहों, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय व्यवसायों से जुड़े चयनकर्ताओं, समाजसेवियों व मुख्यमंत्री उत्तराखंड पुष्कर धामी से जुड़े प्रतिनिधियों की उपस्थिति में आमसभा के प्रमुख विषयों पर चर्चा कर, उत्तराखंड की सम्पूर्ण लोककलाओं के संरक्षण, संवर्धन, प्रदर्शन व मंचन पर गहन विचार विमर्श तथा सर्वसम्मति से महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।

पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा 17 अक्टूबर को मनाये जा रहे 55वें स्थापना दिवस पर पूर्ण सहयोग तथा कुमाऊं, गढ़वाल व जौनसार की विभिन्न लोककलाओं के संरक्षण व संवर्धन पर प्रभावी व दीर्घ वृहद योजनाएं बना बढ़-चढ़ कर कार्य करने पर आम सहमति जताई गई।

आमसभा के इस अवसर पर पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली के सदस्यों द्वारा सर्व सम्मति से संस्था के पूर्व संरक्षक संगीत नाटक अकादमी सम्मान 2019 प्राप्त दिवान सिंह बजेली के साथ-साथ, कुमाऊं, गढ़वाल व जौनसार के प्रमुख व्यवसायियों, सेवानिवृत् नौकरशाहों, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय व्यवसायों से जुड़े चयनकर्ताओं, शिक्षा व कलाविदों व प्रमुख समाज सेवियों रमा उप्रेती, टी सी उप्रेती, नरेन्द्र सिंह लड़वाल, सुरेश पांडे, महेश चंद्रा, सुल्तान तोमर, डाॅ बी एस नेगी, जी एस रावत, रमेश सुंदरियाल, विनोद पांडे, जगदीश पांडे, पूरन चंद्र नैलवाल, गोपाल उप्रेती तथा पी सी नैनवाल को संस्था संरक्षक मण्डल तथा के सी पांडे को संस्था का मुख्य सलाहकार नामित करने का प्रस्ताव, उक्त नामित सदस्यों की सहमति के बाद पास किया गया।

पर्वतीय कला केन्द्र महासचिव एम एस लटवाल तथा अध्यक्ष सी एम पपनैं द्वारा केन्द्र की पूर्व व आगामी गतिविधियों पर विस्तार पूर्वक प्रकाश डाला गया। संस्था के 55वें स्थापना दिवस पर उत्तराखंड के लोकगीत, संगीत, नृत्य व लोकगाथा अंशों के मंचन के बावत अवगत कराया गया।
संस्था कार्यकारिणी सदस्यों द्वारा सभी संस्था नामित संरक्षकों को पुष्पगुच्छ भेंट सम्मानित किया गया।

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सन् 1968, दिल्ली प्रवास में उत्तराखंड के नामी लोकगायक व संगीतकार प्रो.मोहन उप्रेती के सानिध्य में उत्तराखंड के प्रमुख प्रवासी प्रबुद्ध बंधुओं द्वारा पर्वतीय कला केन्द्र की स्थापना अंचल के लोकगीत, संगीत व नृत्यों के संरक्षण व संवर्धन हेतु की गई थी। देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी द्वारा, आइफैक्स सभागार में संस्था का विधिवत उद्घाटन किया गया था।

विदेशी अतिथियों के सम्मान, विभिन्न मान्य संगठनों व संस्थाओं द्वारा आयोजित आयोजनों में केन्द्र के कलाकारों द्वारा अंचल के गीत-संगीत व नृत्यों की अनेक प्रस्तुतियों का मंचन निरंतर किया जाता रहा। 1971 में, भारत सरकार द्वारा, पर्वतीय कला केन्द्र के 16 कलाकारों के सांस्कृतिक दल को, सिक्किम (गंगटोक), भारत का प्रतिनिधित्व करने हेतु भेजा गया था।

तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद, द्वारा कमानी सभागार मे केन्द्र द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में, मुख्य अतिथि के रूप मे शिरकत कर, अंचल के लोकगायक मोहन सिंह ‘रीठागाड़ी’ व लोक ढोल वादक कलीराम को सम्मानित गया था। कुमाऊं रेजीमेंट तीसरी बटालियन की लालकिला मे आयोजित डायमंड जुबली मे, केन्द्र के गीत-संगीत व नृत्य के कार्यक्रम आयोजित किये गए थे। लोकगायक मोहन उप्रेती द्वारा गाया व संगीत बद्ध लोकगीत, बेडू पाको बारो मासा…। को कुमाऊं रेजीमेंट द्वारा पहली बार अपनी बैंड धुन बना, प्रति वर्ष 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर बजाया जाने लगा था जो क्रम अभी तक निरंतर जारी है। उक्त गीत व इसकी धुन, दशकों से, हर उत्तराखंडी का पसंदीदा लोकगीत बना हुआ है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के भारत आगमन पर, उनके राजकीय स्वागत समारोह में, केन्द्र द्वारा उत्तराखण्ड के गीत-संगीत व नृत्यों के मंचन के साथ-साथ इस संस्था द्वारा, प्रगति मैदान, बिड़ला मिल, गांधी दर्शन, यू एस एस आर कल्चरल सेंटर, तालकटोरा स्टेडियम, तीन मूर्ति, मुंबई, जयपुर, उत्तराखण्ड के कई शहरो इत्यादि में गीत-संगीत व नृत्य के अनगिनत प्रभावशाली कार्यक्रम मंचित किए गए।

उत्तराखण्ड के गीत-संगीत व नृत्यों के साथ-साथ पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा, 1980 से, उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति, रीति-रिवाजों, परंपराओं, प्रेम गाथा, बीर गाथा इत्यादि इत्यादि से जुडी सु-विख्यात लोकगाथाओं, लोक परंपराओं से जुड़ी दंत कथाओं, अंचल के जीवन दर्शन व रामलीला इत्यादि पर गीत नाट्य मंचित कर, देश की एक मात्र ऐसी संस्था के रूप में पहचान बनाई, जो गीत-संगीत विधा में निरंतर ख्याति अर्जित करती चली गई है। देश की एक मात्र ऐसी संस्था बन गई है, जो गीत-संगीत आधारित गीत नाट्यों का मंचन करती है।

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केन्द्र द्वारा मंचित गीत नाट्यों मे, राजुला मालूशाही, अजुबा बफोल, रामलीला, गढ़वाल की पांडव जागर शैली आधारित ‘महाभारत’, रसिक रमोल, जीतू बगडवाल, हिल-जात्रा, भाना गंगनाथ, स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित ‘वंदेमातरम’, रामी, गोरिया, नंदादेवी, कुली बेगार, हरुहित इत्यादि इत्यादि गीत नाट्यों के अनगिनत मंचन, दिल्ली सहित देश के कई शहरो व महानगरों मे मंचित किए गए हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित अनेक महोत्सवों मे पर्वतीय कला केन्द्र को, दिल्ली और उत्तर प्रदेश का तथा कई बार विदेशों मे देश का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है। 1983 मे पर्वतीय कला केन्द्र के 18 कलाकारों को, आईसीसीआर, भारत सरकार द्वारा ट्युनिशिया, जोर्डन, अल्जीरिया, इजिप्ट और सीरिया मे आयोजित, अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोहों में, भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान किया गया था।

1988 में उत्तरी कोरिया में आयोजित, ‘Spring friendship Art Festival’ जिसमे विश्व के 50 देशो द्वारा प्रतिभाग किया गया, आईसीसीआर, भारत सरकार द्वारा, पर्वतीय कला केन्द्र के 24 सदस्यीय कलाकारों के दल को, भारत का प्रतिनिधित्व करने को भेजा गया था। उत्तर कोरिया मे देश का प्रतिनिधित्व कर, यात्रा के अगले पडाव मे, भारतीय दूतावास चीन व थाईलैंड के सहयोग से, भारतीय दूतावास थिएटर, बीजिंग और बैंकाक द्वारा, पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा प्रस्तुत उत्तराखण्ड के गीत-संगीत व नृत्यों के कार्यक्रम, उक्त देशो की राजधानियों के अपार जनसमूह के मध्य मंचित करवाए गए थे।

भारत में आयोजित अनेक अंतरराष्ट्रीय रंगमंच महोत्सवों मे, केन्द्र द्वारा उत्तराखण्ड की अनेको लोकगाथाओ का मंचन तथा, विश्व के सबसे बडे रंगमंच महोत्सव, ‘ओलंपिक थिएटर-2018’ मे पर्वतीय कला केन्द्र को, भारत सरकार, संस्कृति मंत्रालय द्वारा, प्रतिभाग करने का अवसर प्रदान किया गया था। 2020 माह मार्च ‘आज रंग है’ अमीर खुसरो जीवन आधारित गीत नाट्य इस संस्था का अंतिम मंचन रहा है। कोरोना महामारी के कारण इस गीत नाट्य के पांच मे से मात्र तीन शो ही मंचित हो पाए थे।

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1974 से 2016 तक, श्रीराम भारतीय कला केन्द्र द्वारा, प्रतिवर्ष दिल्ली मे आयोजित, एक मात्र राष्ट्रीय होली महोत्सव मे, पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा, खडी होली का मंचन निरंतर किया गया। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निवास पर, अटल सरकार की कैबिनेट व विपक्ष के प्रमुख लीडरो की उपस्थिति मे, पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा खडी होली का मंचन किया गया था।

उत्तराखण्ड के लोकगीत, संगीत, नृत्य विधा, लोकगाथाओ, रीति-रिवाजो, परंपराओ व लोक संस्कृति से जुडी अन्य विधाओ के संरक्षण व संवर्धन पर पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली, दिल्ली प्रवास मे, उत्तराखण्ड के प्रवासियो की एक मात्र, वैश्विक फलक पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था है, जो विगत, 55 वर्षों से निरंतर, राष्ट्रीय व अंतर राष्ट्रीय फलक पर कार्य कर रही है।

1968 से 2022 तक पर्वतीय कला केन्द्र के अध्यक्ष पदों पर, स्व.मोहन उप्रेती, स्व.नईमा खान उप्रेती, स्व.भगवत उप्रेती, स्व. प्रेम मटियानी तथा सी डी तिवारी विराजमान रहे हैं। वर्तमान में सी एम पपनैं इस अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्था के अध्यक्ष व महेंद्र लटवाल संस्था महासचिव हैं।

उत्तराखंड कुमाऊं, गढ़वाल व जौनसार के प्रमुख व्यवसायियों, सेवानिवृत्त नौकरशाहों, शिक्षा व कलाविदों तथा समाज सेवियों के ‘पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली’ से जुड़ने से कयास लगाया जा सकता है, भविष्य में न सिर्फ इस ख्याति प्राप्त संस्था बल्कि अंचल की अन्य लोकसंस्कृति से जुड़े कलाकारों व उनकी कला विधाओं का भी सम्मान होगा, कलाकारों को बडे़ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान व प्रोत्साहन मिलेगा। उत्तराखंड की लोक संस्कृति व लोक कलाओं का संवर्धन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर निरंतर होता चला जायेगा।
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