सी एम पपनैं चुने गए राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर ख्यातिप्राप्त सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली के अध्यक्ष, मूल रुप से रानीखेत निवासी हैं पपनैं
नई दिल्ली। राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर उत्तराखंड की ख्यातिप्राप्त सांस्कृतिक संस्था, ‘पर्वतीय कला केंद्र, दिल्ली’ का चुनाव, 19 सितंबर, 2021 को एलटीजी सभागार, मंडी हाउस, नई दिल्ली मे, चुनाव अधिकारी हिंदी अकादमी दिल्ली सरकार के पूर्व सचिव डा.हरिसुमन बिष्ट व उत्तराखंड की ख्याति प्राप्त प्रतिनिधि संस्था ‘पहाड़’ के दिल्ली प्रभारी चंदन डांगी की देख-रेख मे सम्पन्न हुआ।
‘पर्वतीय कला केंद्र’ के अध्यक्ष पद पर सी एम पपनैं, उपाध्यक्ष पद पर क्रमश: हिमांशु जोशी व दीक्षा उप्रेती, महासचिव महेन्द्र लटवाल, सचिव बबीता पांडे, सह-सचिव क्रमश: गोपाल पांडे, चन्द्रा बिष्ट व हरि सिंह रावत, कोषाध्यक्ष दीपक जोशी व उप-कोषाध्यक्ष अखिलेश भट्ट चुने गए।
11 कार्यकारिणी सदस्यों के चुनाव में प्रेम बल्लभ पाठक, पदमिंदर रावत, हरि खोलिया, लक्ष्मी महतो, नीलम राना, भोपाल सिंह बिष्ट, भुवन रावत, अनुकम्पा बिष्ट, के एस बिष्ट, मधु बेरिया व गोबिंद महतो चुने गए।
‘पर्वतीय कला केन्द्र’ दिल्ली के वरिष्ठ सदस्य, संगीत नाटक अकादमी भारत सरकार, सम्मान से नवाजे गए दीवान सिंह बजेली को सर्वसम्मति से संस्था का संरक्षक मनोनीत किया गया।
1968 दिल्ली प्रवास मे स्थापित प्रख्यात सांस्कृतिक संस्था, ‘पर्वतीय कला केंद्र’ के संस्थापक अध्यक्षों मे, राष्ट्रीय रंगमंच के जानेमाने संगीत निर्देशक व लोकगायक, स्व.मोहन उप्रेती का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी स्व.नईमा खान उप्रेती, स्व.भगवत उप्रेती तथा बाद के वर्षों में स्व.प्रेम मटियानी व सी डी तिवारी अध्यक्ष पदो पर काबिज रहे हैं। सम्पन्न हुए प्रतिष्ठित चुनाव में, सी एम पपनैं केन्द्र के छठे अध्यक्ष चुने गए हैं।
राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय फलक पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था, ‘पर्वतीय कला केंद्र, दिल्ली’, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा सन 1989 से निरंतर 28 वर्षो तक रंगमंडल का दर्जा प्राप्त देश की अव्वल दर्जे की सांस्कृतिक संस्थाओं में शुमार रही है। 2018 भारत में आयोजित ‘ओलंपिक थियेटर’ मे ‘पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली’ द्वारा मंचित गीतनाट्य ‘राजुला-मालूशाही’ के मंचन ने वैश्विक फलक पर बड़ी ख्याति अर्जित की थी। राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर ‘पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली’ द्वारा अनेक राज्यों व देशों का भ्रमण कर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में भागीदारी कर उत्तराखंड के साथ-साथ भारतवर्ष का नाम रोशन किया है।
सन 1968 से 1980 तक इस संस्था द्वारा, उत्तराखंड के लोकनृत्य, गीत व संगीत आधारित कार्यक्रमो को आधुनिक रंगमंच पर मंचित कर न सिर्फ मध्य हिमालय उत्तराखंड की सशक्त पारम्परिक लोकसंस्कृति व लोककला को पहचान दिलवाई, हास की कगार पर खड़ी इस लोकविधा का संरक्षण व संवर्धन भी किया गया। आधुनिक रंगमंच विशेषज्ञयो का ध्यान उत्तराखंड की इस नायाब गीत-संगीत व नृत्यों की ओर आकर्षित किया। 1971 मे केंद्र के दो दर्जन कलाकारों द्वारा, मोहन उप्रेती के नेतृत्व व निर्देशन मे सिक्कम दौरा कर, विदेशी धरती पर उत्तराखंड की लोकसंस्कृति की अलख जगाने की शुरुआत कर डाली थी।
1980 मे ‘पर्वतीय कला केंद्र’ द्वारा, उत्तराखंड की प्रेमगाथा ‘राजुला मालूशाही’ का कुमांऊनी बोली, गीतनाट्य शैली मे मंचन कर, नाट्य जगत के विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित किया था। 1982-83 मे ‘अजुवा बफौल’ उत्तराखंड की सशक्त वीरगाथा व सु-विख्यात गीतनाट्य शैली रामलीला के ‘धनुष यज्ञ’ व ‘सीता बनवास’ का प्रभावशाली मंचन कर, अपार ख्याति अर्जित की थी। 1983 मे भारत सरकार द्वारा प्रायोजित पांच पश्चिमी एशियाई व यूरोपीय देशों का तीन माह का दौरा, 18 कलाकारों के साथ कर भारत का प्रतिनिधित्व किया था। 1988 मे 24 कलाकारों के साथ उत्तरी कोरिया, चीन व थाईलैंड का 18 दिवसीय दौरा किया था। उक्त दोनों दौरे, भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद, भारत सरकार के सौजन्य से, प्रायोजित किए गए थे, जिनका नेतृत्व मोहन उप्रेती ने किया था।
पर्वतीय कला केंद्र द्वारा, उत्तराखंड की कुमाउनी व गढ़वाली लोकबोली मे मंचित अन्य चर्चित लोकगाथाओ मे, महाभारत (गढ़वाल की पांडव जागर पर आधारित लोकगाथा), रसिक रमोल, जीतू बगड़वाल, हिलजात्रा, भाना गंगनाथ, रामी, गोरिया, नंदादेवी, गोरीधना, हरूहित इत्यादि मुख्य रही हैं। लगभग मंचित लोकगाथाओं का आलेख, ब्रजेन्द्र लाल साह, संगीत निर्देशन मोहन उप्रेती व निर्देशन बी एम शाह, प्रेम मटियानी, सुभाष उदगाता, एम के रैना इत्यादि द्वारा किया गया था।
54 वर्षों की पर्वतीय कला केंद्र की सांस्कृतिक यात्रा में अन्य मंचित चर्चित लोकनाट्यों व गाथाओं में, मुख्य रूप से, इंदर सभा, अमीर खुसरो, मेघदूत, आजादी की 40वी वर्षगांठ पर ‘वंदेमातरम’, कुली बेगार, कगार की आग, धरमदास, वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली, पहाड़ नै की काथ, अष्टवक्र, आज रंग है इत्यादि का प्रभावशाली मंचन रहा है। उक्त गीतनाट्यों व नाटकों का आलेख दयानंद अनंत ‘ढोंडियाल’, हिमांशू जोशी इत्यादि तथा नाट्य निर्देशन रमेश बथेजा, लोकेंद्र त्रिवेदी, सोनार चंद, नईमा खान उप्रेती, भगवत उप्रेती, राम जी बाली, अमित सक्सेना, डॉ पुष्पा बग्गा, डॉ गोविंन्द पांडे, सुधीर रिखाडी तथा संगीत निर्देशन मोहन उप्रेती व भगवत उप्रेती द्वारा किया गया।
‘पर्वतीय कला केन्द्र’ की अनेकों लोकगाथाओं व अन्य कार्यक्रमों का राष्ट्रीय प्रसारण दूरदर्शन व आकाशवाणी से भी प्रसारित होता रहा हैं। देश के अनेकों महानगरों, नगरों व कस्बों में भारत सरकार, राज्य सरकारों व स्थानीय प्रबुद्ध संस्थाओं द्वारा आयोजित उत्सवों व समारोहों मे इस संस्था के गीत-संगीत व लोकगाथाओं के कार्यक्रम मंचित होते रहे हैं। वर्तमान में पर्वतीय कला केंद्र देश की एक मात्र प्रमुख सांस्कृतिक संस्था है, जो गीतनाट्य मंचन के क्षेत्र में, अव्वल स्थान रखती है।
—————-