कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी अकादमी, दिल्ली द्वारा आयोजित ‘बाल-उत्सव’ सम्पन्न

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सी एम पपनैं

नई दिल्ली। कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा, 3 से 9 जुलाई तक, आईटीओ स्थित प्यारेलाल भवन में आयोजित ‘बाल उत्सव’ का समापन मुख्य अतिथि प्रो.धनंजय जोशी, अकादमी सदस्य पवन मैठानी व राजेश्वर प्रसाद तथा अन्य विशिष्ट प्रबुद्धजनों क्रमशः डाॅ संतोष पटेल, राम प्रसाद भदोला, डाॅ बिहारी लाल जलन्धरी, के एन पांडे, भगवंत मनराल, गीता गुसाई, रमेश चंद्र घिल्डियाल, उत्तराखंड के संस्कृतिकर्मियों, भाषाविदों, समाज सेवियों व पत्रकारों की उपस्थिति में गढ़वाली बोली में मंचित उत्तराखंड की सुप्रसिद्ध लोकगाथा ‘रामी बौराणी’ नाटक के मंचन के साथ सम्पन्न हुआ।

समापन के इस अवसर पर दिनेश रावत की छोलिया टीम द्वारा मशकबीन, ढोल, दमाऊ वाद्ययंत्रों पर लोकगीत ‘बेडू पाको’ लोकधुन व सुंदरियाल मांगल ग्रुप द्वारा उत्तराखंड के मांगल गीतों का प्रभावशाली गायन किया गया। अकादमी पदाधिकारियों द्वारा मुख्य अतिथि के कर कमलों मंचित नाटक के निर्देशकों भाषाविद तथा बाल कलाकारों सहित, मांगल वाद्य व मांगल ग्रूप सदस्यों को पुष्पगुच्छ व प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।

आयोजन समापन पर अकादमी सचिव डाॅ जीतराम भट्ट द्वारा आमन्त्रित सभी अतिथियों व सभागार मे उपस्थित सभी दर्शकों, रंगकर्मियों, प्रबुद्ध भाषाविदों व पत्रकारों का हार्दिक स्वागत अभिनंदन किया गया। ‘बाल-उत्सव’ को सफल बनाने में सभी बाल कलाकारों, निर्देशको व भाषाविदो द्वारा दिए गए सहयोग व योगदान पर, आभार व्यक्त किया गया।

3 जुलाई से आरंभ आयोजित ‘बाल-उत्सव’ के अंतर्गत कुल 13 नाटकों मे 5 गढ़वाली, 5 कुमाउनी और 3 जौनसारी नाटकों का मंचन किया गया। आयोजकों द्वारा दी गई सूचना के मुताबिक मंचित नाटकों मे करीब चालीस फीसद अन्य बोली-भाषाओं के बाल कलाकारों द्वारा प्रतिभाग किया गया।

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3 जुलाई से, 8 जुलाई तक क्रमश प्रतिदिन दो-दो नाटकों का मंचन नाटक निर्देशक, डाॅ सुवर्ण रावत/ भुवन गोस्वामी, अखिलेश भट्ट, चंद्र कला नेगी/ ऋतु पंत, हिम्मत सिंह नेगी/ निशांत रौथाण, लक्ष्मी रावत/पूजा बडोला, राजेन्द्र तोमर/ तिलक राम शर्मा, भगवंत मनराल/रेखा पाटनी, नरेंद्र पान्थरी/उमेद सिंह नेगी, एन पाण्डेय ‘खिमदा’/संगीता सुयाल, बिपिन देव/ब्रज मोहन वेदवाल, संयोगिता ध्यानी/दर्शन सिंह रावत, मंजूषा जोशी/तारा दत्त जोशी तथा भाषाविद् क्रमश: रमेश चंद्र घिल्डियाल, पूरन चंद्र कांडपाल, सुनील जोशी, जगदीश नोडियाल, मदन मोहन डुकलान, रमेश चन्द्र जोशी, नीरज बवाडी, डाॅ बिहारी लाल जलंधरी, रमेश हितैषी, रघुवर दत्त शर्मा, रणीराम गढ़वाली, खजान दत्त शर्मा तथा 9 जुलाई समापन दिवस पर, भाषाविद पृथ्वीसिंह केदारखंडी, आलेखित नाटक ‘रामी बौराणी’ का मंचन किया गया। नाटक निर्देशन, आशीष शर्मा तथा सह निर्देशन, गढ़वाल के प्रख्यात रंगकर्मी, रमेश ठंगरियाल द्वारा किया गया।

एक सप्ताह तक मंचित सभी तेरह नाटकों के बाल कलाकारों, निर्देशकों व भाषाविदों को, अकादमी सचिव व अन्य आमन्त्रित गणमान्य अतिथियों के कर कमलों द्वारा नाटक मंचन के दिन ही प्रमाण पत्र भेंट किए गएऔर पुष्प गुच्छ भेंट कर सम्मानित किया गया था।

2019 मे गठित कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी अकादमी दिल्ली द्वारा पहली बार इस वर्ष एक सप्ताह तक ‘बाल-उत्सव’ का आयोजन किया गया। उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों मे प्रवासरत प्रवासी बाल कलाकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बाल-रंगमंच कार्यशाला के इस आयोजन को उत्तराखंड के प्रवासी जनों द्वारा सराहा गया। बढ़-चढ़ कर दिल्ली के विभिन्न स्कूलों के बाल कलाकारों द्वारा कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी बोलियों मे मंचित नाटक, श्रोताओं द्वारा पसंद किए गए, सराहे गए। बडी संख्या में श्रोतागणों द्वारा सभागार में उपस्थिति होकर बाल कलाकारों का उत्साह व उत्साहवर्धन किया गया।

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समापन के अवसर पर, अकादमी सचिव द्वारा, 2019 मे गठित अकादमी के, 2022 तक किए गए कार्यो व मिली सफलता तथा भविष्य की योजनाओ पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया। कहा गया ग्रीष्मकालीन अवकाश मे प्रवासी उत्तराखंडी, कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी, 8 से 16 वर्ष के नौनिहालों के लिए, दस जून से दिल्ली के विभिन्न तेरह जगहों पर बोली-भाषा के नाटकों के मंचन के लिए आनन-फानन में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व अकादमी चेयरमैन व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की पहल पर बाल-उत्सव आयोजन से पूर्व कार्यशालाओं का आयोजन किया गया था। चुने हुए कुमांउनी, गढ़वाली व जौनसारी बोली-भाषा के इन लोकनाट्यों तथा लोक परंपराओं पर आधारित नाटकों का मंचन हेतु चयन किया गया। कहा गया कि विगत वर्षों में अकादमी द्वारा, दिल्ली प्रवास मे भाषाई चेतना जागृत की गई है। कला व संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के क्षेत्र मे लोक उत्सव, संगोष्ठियाँ व भाषा यात्रा जैसे आयोजन किए गए हैं। दिल्ली प्रवास मे अन्य समाजों की संस्कृति, परंपराओ, बोली-भाषा के मध्य, उत्तराखंड की बोली-भाषाओं का संरक्षण कैसे किया जाए,इस सोच के तहत गठित अकादमी उक्त आयोजनों पर ध्यान केन्द्रित कर, अकादमी सदस्यों के साथ मिल बैठकर, दीर्घकालीन योजनाऐ बना रही है। समय-समय पर विभिन्न प्रकार के आयोजन कर रही है। आयोजित ‘बाल-उत्सव’ भी उसी संवर्धन की एक कड़ी है।

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कहा गया कि उत्तराखंड से दिल्ली प्रवास में रोजगार हेतु पलायन हुआ है, साथ ही अंचल की संस्कृति और बोली-भाषा का भी पलायन हुआ है। भाषा संग्रह के माध्यम से भाषाओं को समझना आसान होगा। भाषा के संवर्धन के लिए एक चेन बनाई हुई है। उत्तराखंड प्रवासी बहुल इलाकों में भाषा केन्द्र खोलने की ओर गठित अकादमी अग्रसर है। बच्चों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रवासी लेखकों की किताबे प्रकाशित हो, अकादमी की यह चाहत है। कहा गया कि उत्तराखंड का एक मंडल एक राज्य, एक भाषा हो, इस सोच के तहत, गठित अकादमी द्वारा इस कमी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। अवगत कराया गया जल्दी ही अकादमी उत्तराखंड के अन्य कलाकारों व सांस्कृतिक संस्थाओ के लिए, ‘लोक उत्सव’ आयोजन की योजना बना रही है।
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