प्रबलता के साथ उठ रही ‘मानस खंड मंदिर माला मिशन’ में कुमाऊं के प्राचीन मंदिरों को शामिल कर धाम घोषित करने की मांग

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सी एम पपनैं

नई दिल्ली। धर्मग्रंथों मे वर्णित भारत के चार धामों बद्रीनाथ, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी व द्वारका के अतिरिक्त हिंदू धर्म मे हिमालय पर्वतों में स्थित छोटा चार धाम पवित्रतम तीर्थ परिपंथों मे से एक है। बीसवीं शताब्दी मध्य हिमालय की गोद में बसे इस परिपंथ के चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री को छोटा धाम विशेषण दिया गया, जो आज भी यहां के इन देवस्थानों को परिभाषित करते हैं। ये प्राचीन चार मंदिर चार पवित्र नदियों के आध्यात्मिक स्त्रोत को भी चिंहित करते हैं। जिनमे यमुनोत्री, गंगोत्री, मंदाकिनी और अलकनंदा के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड के गढ़वाल मण्डल के उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों में ये चार धाम स्थित हैं। उक्त चार धामों मे बद्रीनाथ धाम मध्य हिमालय उत्तराखंड की गोद में बसे इस परिपंथ के चार धामों के साथ-साथ, भारत के चार धामों का भी उत्तरी धाम है।

कुमाऊं मंडल मे एक भी धाम न होने व धार्मिक पर्यटन को गढ़वाल मण्डल के साथ-साथ कुमाऊं मंडल से जोड़ने व विस्तार देने के उद्देश्य से मानस खंड कुमाऊं के प्रमुख मंदिरों को चार धाम की तर्ज पर विकसित किये जाने, मंदिरों का जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण करने की योजना शासन स्तर पर की जा रही है। प्राचीन मंदिरों को भव्य बनाने के लिए वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर धामी द्वारा 17 जुलाई, 2022 जागेश्वर धाम श्रावणी मेले में जागनाथ मंदिर मे पूजा अर्चना व मेले के उद्घाटन के अवसर पर, ‘मानस खंड मंदिर माला मिशन’ की घोषणा की गई थी तथा व्यक्त किया गया था कि जागेश्वर धाम उत्तराखंड का पांचवा धाम है। मास्टर प्लान तैयार कर जागेश्वर धाम का विकास और सौंदर्यीकरण, मानस खंड मंदिर माला मिशन के तहत किया जायेगा। उक्त मिशन के तहत मुख्यमंत्री पुष्कर धामी द्वारा कुमाऊं के अन्य प्राचीन मंदिरों में, आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित हाट कालिका मंदिर, स्कंद पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर के साथ-साथ, विश्व प्रसिद्ध कल्यानिका कनरा डोल आश्रम को भी मंदिर माला मिशन के तहत शामिल किया गया है।

मानस खंड मंदिर माला मिशन से कुमाऊं के कुल 29 पौराणिक मंदिरों को जोड़ने की योजना के साथ-साथ मानस खंड कॉरिडोर के तहत करीब 21 रोपवे बनाने की भी योजना है। जिस हेतु लोक निर्माण और पर्यटन विभाग उक्त मिशन के तहत मंदिरों व पर्यटन स्थलों को रोपवे कन्क्टविटी की संभावना तलाश रहे हैं। मुख्यमंत्री द्वारा घोषित यह मिशन विकास की दृष्टि से मील का पत्थर माना जा रहा है। अरबों रुपयों की योजना के अंतर्गत सड़कों का जाल बिछाने की योजना है। एक लेन की सड़क दो लेन व दो लेन वाली सड़क चार लेन किये जाने की योजना है।

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा जागेश्वर धाम को उत्तराखंड का पांचवा धाम घोषित करने के पीछे, उनके धार्मिक ज्ञान को प्रमुखता दी जा सकती है। शिवपुराण व स्कंद पुराण में जागेश्वर धाम की महत्ता के उल्लेख अनुसार शिवलिंग की पूजा की शुरुआत जागेश्वर से हुई थी। पृथ्वीलोक मे सर्वप्रथम जागेश्वर के पवित्र पावन धाम पर शिव के पतित होने के कारण इसे प्रथम ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।

पूर्व राज्यपाल डाॅ के के पाल द्वारा 18-20 अप्रैल 2018 को कुमाऊं मंडल स्थित, विश्व के सबसे बडे़ एवं भारी अष्टधातु से निर्मित 1670 किलो के संयंत्र स्थापना के अवसर पर, विश्व प्रसिद्ध कल्यानिका कनरा डोल आश्रम को उत्तराखंड का पांचवा धाम घोषित किया गया था। ज्ञात सूत्रों के मुताबिक उक्त आश्रम को धाम बनाऐ जाने के सम्बंध मे प्रशासनिक स्तर पर बडी प्रगति हो चुकी है।

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी अल्मोड़ा के पत्र 2/5/2022 के मुताबिक उक्त डोल धाम को पांचवें धाम के रूप में मान्यता प्रदान करने सम्बंधी पत्र व्यवहार से अवगत होता है, उक्त डोल धाम पुरातत्व विभाग के अधीन आने वाले राज्य के संरक्षित स्मारक स्थलों की श्रेणी में नहीं है। सम्बंधित विभाग को पांचवें धाम के रूप मे डोल आश्रम को मान्यता दिए जाने हेतु आपत्ति नहीं है।

‘मानस खंड मंदिर माला मिशन’ के तहत सूचीबद्ध, स्कंद पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर, जिसमे स्वयं महादेव शिव विराजमान रहते थे और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहां आते थे। इस पाताल गुफा मंदिर की खोज कलियुग मे आदि शंकराचार्य ने आठवीं शदी मे की थी। भूमि से 90 फिट नीचे, 160 वर्ग मीटर मे विस्तृत, चूना पत्थर की प्राकृतिक गुफा, पाताल भुवनेश्वर मंदिर, जिसकी खोज त्रेतायुग मे अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्णा ने की थी। पौराणिक कथाओंनुसार पाताल गुफा मंदिर के चार द्वारों रणद्वार, पापद्वार, धर्मद्वार और मोक्षद्वार के बावत माना जाता है, रावण की मृत्यु के बाद पापद्वार, कुरुक्षेत्र की लडाई के बाद रणद्वार बंद हो गए थे। मान्यता है इस मंदिर में भगवान गणेश के कटे हुए सिर को स्थापित किया गया था। उक्त पाताल गुफा मंदिर मे प्रकृति द्वारा निर्मित अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हतप्रभ करने वाली कलाकृतियां मौजूद हैं।

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आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित, लोकप्रिय शक्ति देवी मां काली के रूप में पूज्य, हाट कालिका शक्तिपीठ मंदिर गंगोलीहाट (पिथौरागढ़), मानस खंड मंदिर माला मिशन के तहत सूचीबद्ध किया गया है। मान्यतानुसार महाकाली माता ने पश्चिम बंगाल से इस जगह को अपने घर से स्थांतरित कर दिया गया था। शक्ति के रूप मे मां काली को इस मंदिर में पूजा जाता है।

स्कन्द पुराण के मानस खंड में दारुकावन (गंगोलीहाट) देवी का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस मंदिर का पुराना नाम शैल शिखर पर्वत था। छठी सदी के अंत में भगवान शिव का अवतार माने जाने वाले जगतगुरु शंकराचार्य महाराज ने कुर्मांचल (कुमांऊ) भ्रमण के दौरान, हाट कालिका की पुनरस्थापना की थी। प्राचीन काल से ही इस मंदिर स्थल पर एक सतत पवित्र अग्नि प्रज्वलित होती आ रही है।

जागनाथ मंदिर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा तथा डोल आश्रम को पूर्व राज्यपाल डाॅ के के पाल द्वारा पांचवा धाम घोषित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2019 लोकसभा चुनाव प्रचार में, बढ़-चढ़ कर उत्तराखंड मे सैनिक धाम को पांचवां धाम घोषित किया गया था। उत्तराखंड सहित देश का जनमानस किसे पांचवां धाम मानेगा, दिलचस्प व्यथा-कथा है।

धर्म और आस्था से जुड़े सभी तीर्थ स्थान अपने आप मे दिव्य शक्ति और शांति की अनुभूति कराते हैं। प्राचीन मंदिरों का निर्माण वास्तु के अनुसार ऐसे स्थानों पर निर्मित हैं, जहां का प्राकृतिक वातावरण स्वास्थ के लिए लाभदायक होता है। सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव सदा बना रहता है। नकारात्मक विचार नष्ट और सकारात्मकता आती है। तीर्थ स्थलो को ऊर्जा का केन्द्र माना जाता है, जो ऊर्जा यहां होती है और कही नहीं होती। जो आत्मिक शांति, सकुन और मन की स्थिरता यहां मिलती है वह कहीं और नहीं मिलती है।

हिंदू धर्म मे तीर्थ करना पुण्य कर्म माना जाता है। धर्म और दान पुण्य से जोड़कर देखा जाता है। हमारे धर्मग्रंथों मे वर्णन है, जो पुण्य आत्मा चार धामों का दर्शन करने मे सफल होते हैं, उनका न केवल इस जनम मे पाप धुल जाते हैं, वरन वे जीवन-मरण के बंधन से भी मुक्त हो जाते हैं। चारधाम यात्रा से जुड़े इन चार पवित्र धामों के मंदिरों को जो भारत के चार दिशाओं की परिधि मे स्थापित चार पवित्र मंदिरों का समूह है, आठवीं शदी मे शंकराचार्य द्वारा एक सूत्र में पिरोया गया था। मध्य हिमालय उत्तराखंड में स्थित छोटा चार धाम जिसके अंतरगत बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री को बीसवीं शताब्दी मे छोटा धाम विशेषण दिया गया। चारधाम यात्रा की उत्पत्ति के सम्बंध मे कोई निश्चित मान्यता या साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। मध्य हिमालय उत्तराखंड मे स्थापित बद्रीनाथ धाम सदैव सबसे अधिक तीर्थयात्रियों द्वारा दर्शन करने वाले मंदिर मे स्थानरत रहा है।

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कुमाऊं मंडल मे ‘मानस खंड मंदिर माला मिशन’ के तहत सूचीबद्ध किए गए 29 मंदिरों में पाताल भुवनेश्वर व गंगोलीहाट काली मंदिर को धाम घोषित करने के साथ-साथ रानीखेत, दूनागिरी, सौनी (बिनसर) इत्यादि स्थित कुछ अन्य प्राचीन मंदिरों को भी ‘मानस खंड मंदिर माला मिशन’ के तहत सूचीबद्ध करने की मांग बढ़-चढ़ कर की जा रही है। अल्मोड़ा जिले के मात्र छह प्राचीन मंदिरों को मंदिर माला मिशन के तहत सूचीबद्ध किया गया है।

मानसखंड स्थित कुछ प्राचीन मंदिरों को धाम व कुछ अन्य छूट गए मंदिरों को ‘मानस खंड मंदिर माला मिशन’ के तहत सूचीबद्ध करने हेतु, प्रमुख रूप से आवाज उठाने वालों में रानीखेत निवासी पूर्व कुमाऊं मंडल विकास निगम निदेशक व सामाजिक कार्यकर्ता डी एन बड़ोला द्वारा एक भेंट में अवगत कराया गया कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मानस खंड कुमांऊ में डोल आश्रम, जागनाथ मंदिर, हाट कालिका गंगोलीहाट व पाताल भुवनेश्वर को धाम घोषित किया जाना चाहिए। साथ ही कुमाऊं मंडल के कुछ और प्राचीन मंदिरों को शासन स्तर पर मानस खंड मंदिर माला मिशन से जोड़ा जाना चाहिए। कुमाऊं में कई अन्य और भी ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर हैं, जहां तीर्थाटन और पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।

समाज सेवी डी एन बड़ोला द्वारा अवगत कराया गयाकि गढ़वाल में प्राचीन मंदिरों की लम्बी श्रृंखला है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हरिद्वार व ऋषिकेश। कुमाऊं के किसी मंदिर को धाम की मान्यता नहीं दी गई है। पर्यटक हरिद्वार, ऋषिकेश व चार धामों की यात्रा व दर्शन कर वापस चले जाते हैं। अगर कुमाऊं के प्राचीन मंदिरों को भी धाम की मान्यता दे दी जाए, धार्मिक पर्यटन को कुमाऊं से भी जोड़ दिया जाए तो यह ऐतिहासिक फैसला स्थापित सरकार के हित में मील का पत्थर साबित होगा।मुख्यमंत्री द्वारा घोषित ‘मानस खंड मंदिर माला मिशन’ एक सफल व ऐतिहासिक मिशन के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी उत्तराखंड के लोगों द्वारा याद किया जाता रहेगा न सिर्फ धार्मिक पर्यटन बल्कि रोजगार व व्यवसाय की दृष्टि से भी।
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