बीस साल के नौजवां राज्य के गांवों का दुर्भाग्य, बीमार ग्रामीणों का सहारा आज भी “डोली एंबुलैंस”

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आजादी के 73साल बाद भी यातायात सुविधा के अभाव में उत्तराखंड के कई गांव आज भी आदिम युग सा जीवन जीने को विवश हैं।आज भी इन गांवों के ग्रामीण पगडंडियों के सहारे चलते डोली या कहें डंडी कंडी के जरिए मीलों का सफर तय कर शहरी अस्पतालों तक बीमारों,घायलों और गर्भवती महिलाओं को लाने के लिए विवश हैं। ऐसे दो मामले दो दिन में पुनः सामने आए हैं एक चमोली जनपद का है तो एक चम्पावत का।
भले ही देशवासियों की आंखों में बुलेट ट्रेन चलाने का सपना बोया जा रहा हो , बीस साल का नौजवां राज्य कलैंडर की तरह बदले जा रहे मुख्यमंत्रियों,नेताओं के सियासी जश्न में डूबता उतराता रहा हो,लेकिन जयकारा लगाने वाले चेले अपने इन रहनुमाओं से आजतक एक सवाल नहीं पूछ पाए कि आखिर इन बीस सालों में राज्य के अभागे गांव आज भी वनवासियों सा जीवन जीने को क्यों अभिशप्त हैं? आखिर क्यों आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी बीमारों,गर्भवती महिलाओं को आज भी कंधों पर मीलों सफर करना पड़ता है। ऐसे में कई बार उन्हें रास्ते में ही प्राण गवाने पड़ते हैं।

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पहला मामला चमोली से सामने आया है जहां जंगल में घास काटने गई नारायणबगड़ ब्लॉक के तुनेड़ा गांव की एक महिला सोमवार को चट्टान से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गई। फारकोट-नलगांव सड़क बंद होने के कारण लोगों ने महिला को डंडी में बैठाकर 15 किलोमीटर पैदल नलगांव तक लाए और उसके बाद वाहन से रुद्रप्रयाग स्थित अस्पताल ले गए जहां उसका इलाज चल रहा है। बताया जा रहा है कि गांव की रहने वाली महिला सोमवार सुबह दीपा देवी (32) पत्नी धीरेंद्र सिंह घास लेने फारकोट के जंगल गई थी। इसी दौरान 50 मीटर खाई में गिरकर घायल हो गई। अन्य महिलाओं ने दीपा के कराहने की आवाज सुनी तो वे दूसरे रास्ते से खाई में उतरीं। महिलाओं ने तुरंत गांव वालों को फोन किया और खुद दीपा देवी को पीठ पर लादकर बाहर निकाला। इसके ग्रामीण महिला को डंडे के सहारे 15 किलोमीटर पैदल सड़क मार्ग तक ले गए जहां रुद्रप्रयाग अस्पताल में भर्ती कराया गया चट्टान से गिरने से महिला काफी जख्मी हो गई है।

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बगेडी़ गांव में कुर्सी की डोली बनाकर बीमार को दस किमी चलकर सड़क मार्ग तक लाते ग्रामीण


इसी तरह का मामला चम्पावत जिला मुख्यालय से महज 30 किमी की दूरी पर स्थित करीब बारह सौ की आबादी वाली बगेड़ी ग्राम पंचायत में देखने को मिला ।यहां भी सड़क और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण गांव के लोगों को मामूली बुखार के इलाज के लिए भी जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। बुधवार को भी गांव मे एक बुजुर्ग की तबीयत बिगडने पर ग्रामीणों को बुजुर्ग को कुर्सी की डोली के सहारे जिला अस्पताल तक पहुंचाना पडा़।
बगेड़ी के ग्राम प्रधान के पिता रतन राम (58) के पेट में गंभीर दर्द उठने पर ग्रामीणों ने उन्हें कुर्सी की डोली के सहारे करीब दस किमी दूर आगर नामक स्थान तक पहुंचाया। जहां से निजी वाहन के माध्यम से उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती किया गया। ग्रामीणों ने बताया कि गांव के लिए विधायक निधि से कच्ची सड़क बनाई गई थी, लेकिन वह वाहनों के चलने लायक नहीं रह गई है। दो दिन पूर्व भी गांव की एक गरीब महिला महेश्वरी देवी पत्नी जोगा दत्त के हाथ पैर भी अचानक सुन्न पड़ गए थे, उन्हें भी इसी तरह डोली बनाकर चंपावत जिला अस्पताल इलाज के लिए लाया गया था।
दरअसल चमोली और चम्पावत जिलों के उपर्युक्त ताजे मामले ही नहीं अपितु ऐसे हजारों मामले आजतक मीडिया की सुर्खियां बन चुके हैं।जिस तरह पर्वतीय क्षेत्र की सड़क और स्वास्थ्य सुविधाएं लचर बनी पडी़ हैं ये बीस साल में अदल-बदल कर सत्तासुख भोगते आ रहे सियासी दलों के मुंह पर गहरा तमाचा है। आप कितनी ही 108 एंबुलेंस पक्की सड़कों पर दौडा़ लीजिए,लेकिन सड़कों से वंचित गांव आज कंधों के सहारे हैं या कहिए डोली,डंडी कंडी ही उनकी मानव एंबुलैंस है।