योगी का जनसंख्या विधेयक:सवाल, समर्थन और आपत्तियां!

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सामयिक लेख

लेखक-दिनेश तिवारी ,एडवोकेट

इस समय उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण स्तरीकरण एवं कल्याण विधेयक का प्रारूप राष्ट्रीय बहस के केंद्र में है।विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर रविवार को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य की बढ़ती आबादी और शिशु एवं माताओं की मृत्यु दर को नियंत्रित करने तथा सकल प्रजनन दर को 2026 तक 2.1 और 2030 तक 1.9 प्रतिशत तक लाने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश जनसंख्या नीति 2021 डेस्क 2030 की घोषणा की है उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने इसे ड्राफ्ट कर 19 जुलाई तक इस विधेयक के प्रारूप पर जनता की राय मांगी है ।
जाहिर है राष्ट्रीय महत्व के इस विषय पर पक्ष और विपक्ष की अपनी अपनी अलग-अलग लाइन है ।इस प्रस्तावित विधेयक की टाइमिंग से लेकर विदेशी अंतर्वस्तु पर भी विशेषज्ञों से लेकर प्रमुख राजनीतिक संगठनों समूह में मतभेद है ।पर इस मत विभाजन के बावजूद यह आम राय है कि बढ़ती हुई जनसंख्या न केवल देश की बल्कि विश्व की एक बड़ी समस्या है ।संसाधनों की सीमित उपलब्धता के तर्क के कारण यह योजनाकारों ,नीति आयोग के लिए ही नहीं आम जन समूह के लिए भी चिंता का सबब है ,पर वास्तव में सच क्या है इसकी चर्चा होना भी जरूरी है।

भारत दुनिया का अकेला और पहला ऐसा देश है जिसने 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम को स्वीकार और लागू किया तत्कालीन नेहरू सरकार ने बढ़ती हुई जनसंख्या की दैनिक जरूरतों को पूरा करने में राज्य की बढ़ती असमर्थता को सैद्धांतिक रूप से स्वीकार करते हुए प्रथम पंचवर्षीय योजना में ही बढ़ती हुई जनसंख्या को विकास में बाधक कारक के रूप में चिन्हित किया और अब हर पंचवर्षीय योजना में जनसंख्या नियंत्रण के लिए आवश्यक वित्तीय प्रबंध किए जाते हैं ।जनसंख्या नीति बनाने का सुझाव 1960 में तत्कालीन नेहरू सरकार द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समूह ने दिया था 1976 में इंदिरा गांधी की सरकार ने देश की पहली जनसंख्या नीति की घोषणा की थी और इसे शक्ति से लागू करने के प्रावधान किए थे लेकिन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा परिवार नियोजन कार्यक्रम के द्वारा जिस धनात्मक तरीके से जनसंख्या को नियंत्रित करने का काम किया गया था उसे आवाम और पृथक पूरे तंत्र में गहरी नाराजगी देखी गई ।यह इतिहास का विवादित और अप्रिय विषय है लेकिन यह सच है किस धनात्मक कार्रवाई कार्य व्यवहार से यह सीख सामने आई कि बिना व्यापक जागरूकता व्यापक शिक्षा के जनसंख्या नियंत्रण की कोशिश आवाम के विरोध में आक्रोश को भी जन्म दे सकती है ।यह हुआ और इंदिरा जी को अपनी सत्ता से 1977 में हाथ धोना पड़ा ।देश में पहली बार इमरजेंसी लगाने का दाग इंदिरा जी के प्रखर व्यक्तित्व पर कलंक की तरह हमेशा के लिए अंकित हो गया ।1980 में केंद्र में इंदिरा जी की वापसी हुई और 1981 में सरकार ने जनसंख्या नीति में कुछ संशोधनों के साथ इसे लागू किया। 1996 में इस नीति में फिर कुछ बदलाव किए गए और सिद्धांततःयह माना गया कि भारत में शिक्षा जागरूकता और जनता के व्यापक सहयोग से ही बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है यह जानना दिलचस्प होगा कि दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी जनसंख्या नियंत्रण के लिए काहिरा मॉडल को अपनाया गया है इस मॉडल के तहत आबादी घटाने के लिए आम जनता पर किसी प्रकार का दबाव प्रभाव नहीं डाला जाता है बल्कि शिक्षा के राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग पेज 6 माध्यम से उनमें छोटे परिवार के लिए एहसास जगाया और प्रेरित किया जाता है ।जनसंख्या नियंत्रण को लेकर देश के उच्च व सर्वोच्च न्यायालय में अनेक याचिकाएं लंबित हैं उनका सार भी यही है कि देश की बेरोजगारी भूख अपराध प्रदूषण बढ़ने का मूल कारण बढ़ती जनसंख्या है ।स्टेट आफ वर्ल्ड पापुलेशन रिपोर्ट 2019 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2010 से 2019 के बीच भारत की आबादी औसतन 1.2 फ़ीसदी बढ़ी है जो चीन की सालाना वृद्धि दर से दोगुने से भी ज्यादा है स्वास्थ्य नीति का प्रमुख देश प्रजनन तथा शिशु स्वास्थ्य की देखभाल के लिए बेहतर सेवा तंत्र की स्थापना तथा गर्भनिरोधक और स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे की आवश्यकताएं पूरी करना है ।यह आम धारणा है कि जनसंख्या विस्फोट के कारण बेरोजगारी खाद्य समस्या कुपोषण प्रति व्यक्ति निम्न आई निर्धनता में वृद्धि कीमतों में वृद्धि जैसी दिक्कतें पैदा हो रही है इसके अलावा कृषि विकास में बाधा बचत तथा पूंजी निर्माण में कमी जनउपयोगी सेवाओं पर अधिक भाई अपराधों में वृद्धि पलायन और सारी समस्याओं में वृद्धि जैसी दूसरी विकट समस्याएं भी पैदा हुई है इनमें सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की बताई जाती है और कहा जाता है कि देश में पूंजीगत साधनों की कमी के कारण रोजगार मिलने में मुश्किल पैदा हो रही है ।
यदि चीन से तुलना करें तो भारत का क्षेत्रफल चीन का लगभग एक तिहाई है और जनसंख्या वृद्धि की दर चीन से 3 गुना अधिक है चीन में प्रति मिनट 11 बच्चे और भारत में प्रति मिनट 33 बच्चे पैदा होते हैं भारत में जनसांख्यिकीय लाभ सबसे चर्चित शब्द है जिसका मतलब है एक देश की कुल आबादी में कामकाजी उम्र की आबादी का अनुपात ज्यादा है यह लोग आर्थिक विकास में व्यापक योगदान कर सकते हैं ।
2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की करीब आधी आबादी ऐसी है जिसकी उम्र 25 साल से कम है ऐसे में भारत को इस बड़ी आबादी से लाभ मिलता रहा है मानव संसाधन भारत की सबसे बड़ी पूंजी है भारत को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को मानव संसाधनों की बढ़ोत्तरी और उसके बेहतर इस्तेमाल से आर्थिक तौर पर बेहतरीन नतीजे हासिल हुए हैं ।कुशल श्रम ,मानव संसाधन का निर्यात ,सस्ता लेबर जैसे कारकों का फायदा उठाया गया है ।यह भी सच है की ज्यादा जनसंख्या के कारण भारत न केवल देसी बाजार के लिए बल्कि विश्व बाजार के लिए भी बहुत ही अनुकूल देश है जहां उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक एक ही एक ही छत के नीचे मिल जाते हैं ।विशाल मानव संसाधन के कारण भारत एक शक्तिशाली सेना का मालिक है। जनसंख्या के मामले में भारत भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। बढ़ती हुई जनसंख्या को नियंत्रित करने के मामले में चीन को दुनिया का रोल मॉडल माना जाता है। एक समय में चीन की तेजी से बढ़ती आबादी को आर्थिक विकास के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा माना गया था इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए चीन ने शिक्षा सामाजिक जागरूकता उच्च स्तरीय स्वास्थ्य प्रबंध एवं जन कल्याणकारी योजनाओं के जरिए नियंत्रित किया ।सन 1979 में चीनी सरकार की तरफ से संवेदनशील वन चाइल्ड पॉलिसी को देश में लागू कर दिया गया था ।इसके साथ ही बर्थ कंट्रोल प्रोग्राम भी लाए गए कई दशकों बाद जनसंख्या को नियंत्रित करने के बाद बदली हुई परिस्थितियों में चीन ने साल 2016 में वन चाइल्ड पॉलिसी को समाप्त कर दिया चीन में युवा मानव संसाधनों की भारी कमी के कारण यह कदम उठाना पड़ा ।बूढ़ों की अब हो अभूतपूर्व तरीके से बढ़ती बढ़ती हुई जनसंख्या युवा और प्रोफेशनल की लगातार हो रही गिरावट के कारण चीन की सरकार को दो बच्चों को पैदा करने की नीति पर जोर देना पड़ा। हालिया जनसंख्या नीति में संशोधन करते हुए चीन ने अब शादीशुदा लोगों के लिए तीन बच्चों को पैदा करने की नीति पर जोर दिया है ।यह जानना जरूरी है की यूनाइटेड नेशंस यूएन की मई में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है की जनसंख्या के लिहाज से साल 2027 में भारत चीन को भी पीछे छोड़ देगा ।अभी आबादी के मामले में चीन पहले नंबर पर है ।चीन ने बहुत मुश्किल से बढ़ती आबादी पर लगाम लगाई थी और अब भारत को भी वैसा ही करने की जरूरत है। यूएन की साल 2019 में आई रिपोर्ट के मुताबिक चीन की जनसंख्या 1.43 बिलियन है और भारत की आबादी इस समय 1.37 बिलियन है ।साल 2050 तक भारत की आबादी में कई मिलियन लोग और जुड़ने का अनुमान है ।प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून का सबसे विवादित पहलू 2 से अधिक बच्चों वाले लोगों को स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देना है दो बच्चों के होने तक ही सरकारी सुविधाओं का लाभ और एक बच्चा होने पर कई प्रोत्साहन इस विधेयक की विशेषता है। 2 से अधिक बच्चों के पैदा होने पर कई परेशानियां हो सकती हैं ।दो से अधिक बच्चे पैदा करने वाले लोग स्थानीय निकाय के चुनाव लड़ने में अयोग्य तो होंगे ही सरकारी नौकरी में प्रमोशन तथा अन्य लाभ से भी वंचित कर दिए जाएंगे ।अगर यह विधेयक विधायकों पर भी लागू कर दिया जाए तो आधे से अधिक विधायक विधानसभा चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएंगे। जनसंख्या का अध्ययन समय-समय पर बदलता रहता है और इसके मानकों में भी इसी के अनुरूप बदलाव भी होते रहे हैं यह कहना गलत है की इस समय भारत जनसंख्या विस्फोट के मुहाने पर है क्योंकि पिछले दो दशकों से जनसंख्या ग्रोथ रेट लगातार घट रहा है। विशेषज्ञों की राय है यह ग्रोथ रेट 2.8 से नीचे नहीं जाना चाहिए अगर ऐसा हुआ तो हमारी स्थिति चीन की तरह हो जाएगी भारत में 1991 के बाद जनसंख्या वृद्धि दर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है ।इसलिए 2030 तक भारत स्थिर जनसंख्या वाला देश हो जाएगा ।यह जानना बहुत जरूरी है कि भारत में जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए 1952 से ही लगातार कोशिशें हो रही हैं ।योगी सरकार के द्वारा प्रस्तावित विधेयक कोई नया नहीं है। हां ,इसके कुछ प्रावधान अलग से ड्राफ्ट किए गए हैं। फरवरी 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 की घोषणा की गई थी यह जनसंख्या नीति डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित एक विशेषज्ञ दल की संस्तुतियों पर आधारित है इस जनसंख्या नीति के तहत जन्म दर तथा जनसंख्या वृद्धि में कमी लाना विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि करना, परिवार परिवार नियोजन को प्रोत्साहित करना और महिला शिक्षा पर विशेष जोर देने का लक्ष्य रखा गया था शायद यह जानना भी उपयोगी होगा की एक याचिका के जवाब में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र की मोदी सरकार ने अपने जवाब में कहा था की भारत जनसंख्या नियंत्रण के स्वैच्छिक उपायों के आधार पर 2.1 की प्रजनन दर से रिप्लेसमेंट लेबल के स्तर पर आ गया है यानी देश में प्रति महिला भी औसतन 2.1 बच्चे पैदा कर रही है जो वर्तमान आबादी में स्थिरता के नजरिए से सही है मोटे तौर पर माना जाए तो इस प्रजनन दर से ना आबादी बढ़ेगी और घटेगी जनगणना कार्यालय के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच पिछले 10 वर्षों में पहला दशक ऐसा रहा है जब भारत में पिछले दशक के अनुपात में आबादी कम रफ्तार से बढ़ी है बढ़ती हुई जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है और यह एक राज्य का विषय न होकर राष्ट्र का विषय है और इस पर एक राष्ट्रीय नीति और सहमति बनाई जानी आवश्यक है लेकिन कोई भी धारणा बनाने से पहले हमें कुछ तथ्यों पर निरपेक्ष रूप से ध्यान जरूर देना चाहिए जैसे कि अगर हम सरकार के आंकड़ों को देखें तो भारत में हिंदू और मुसलमान दोनों के ही ग्रोथ रेट में गिरावट अंकित की गई है 2001 से 2011 तक हिंदू का हिंदू की ग्रोथ रेट 3.5 प्रतिशत गिरी है तो मुसलमान की 4.9 फ़ीसदी गिरी है यह सरकार का ही आंकड़ा है कि हिंदू महिला 2.13 बच्चे पैदा करती है तो एक मुस्लिम महिला 2 पॉइंट 61 प्रतिशत बच्चे पैदा करती है जहां एक हिंदू महिला के 209 बच्चे जीवित बचते हैं तो एक मुसलमान महिला 214 बच्चों को जीवित बचाने में कामयाब रहती है सबसे अधिक l मृत्यु दर दलितों के बीच में देखी गई है सरकारी आंकड़े के अनुसार 3% से ज्यादा दलित समाज के बच्चों की मृत्यु नोटिस की गई है जाहिर सी बात है जनसंख्या वृद्धि का कारण अशिक्षा अज्ञान गरीबी बेरोजगारी और एक पिछड़ा समाज मैं अंतर्निहित है राष्ट्रीय जनसंख्या नीति को बनाने को लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय से लेकर कई उच्च न्यायालय में तक याचिकाएं लंबित हैं भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा द्वारा भी एक निजी विधेयक इसी संदर्भ में पेश किया गया है जिस पर आगामी सत्र में चर्चा की संभावना है यह सही है की इस इस प्रस्तावित विधेयक पर अनेक आपत्तियां हैं और इसके औचित्य पर भी सवाल उठाए गए हैं पर राजनीतिक रूप से देखा जाए तो योगी सरकार ने अपने घोषित एजेंडे के तहत आगामी विधानसभा चुनाव को फतह करने के लिहाज से लीड ले ली है ।