इस गुमसुम लड़की को चाहिए प्रोत्साहन के पंख
उस गुमसुम सी लड़की के हिस्से आँसू हैं,वेदना है,भावना है और हैं स्मृतियां,यानि स्मृतियों और दुःखों का असबाब लिए जी रही लड़की के पास कलाकर्म के रुप में उम्मीद की टिमटिमाती रोशनी भी है,नहीं है तो सिर पर लाड़ और स्नेह का हाथ जो उसे पिता की तरह प्रोत्साहित कर सके।वह लड़की तन्हाई में चित्र भाषा में रोती है,अपने मटमैले दुःखों को वह रंगों के संसार में डूबा लेने की भरसक कोशिश करती है।
मेरे मुहल्ले में मेरे घर के ठीक सामने एक पुराने से घर में छिपी वह दूबरगात, उदास लड़की 23 वर्ष की हो चुकी है।बचपन में फ्राॅक पहने आंखों में मोटा काजल लगाए जिस नन्हीं सी गुड़िया को अकसर अपनी पत्थर की सीढ़ी पर बैठे देखा था आज उसी बच्ची के दुःख से उपजते कलाकार को बड़ा होते देख रहा हूँ।मैं यहां बात कर रहा हूँ माबिया हसन की जो कभी-कभार कोई सवाल या सलाह के लिए अपने चाचा यानी मुझसे बेहद धीमी और सधी आवाज में बात करती है और बाकी वक्त इतनी चुप रहती है कि उसकी चुप्पी में भी उसका दुःख बजता दिखाई देता है।
2013 में माबिया जब नौ वर्ष की थी माँ आसमां का आकस्मिक निधन हो गया।माँ के दुलार से वंचित हुए दो साल हुए थे कि 2015 में सिर से पिता शमशुल हसन का साया भी उठ गया। माबिया और उसके छोटे भाई की परवरिश का दायित्व उसके दादा-दादी के ऊपर आ गया।माबिया अपने पापा को अपना प्रेरणापुंज बताते कहती है कि पापा चाहते थे कि वह प्रशासनिक सेवा में जाए लेकिन मेरा कला के प्रति अनुराग बचपन से था।पापा हमेशा मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे पापा के जाने के बाद लगा जीवन मानो तमशून्य हो गया।फिर दादी का निधन हो गया।दादा नरुलहसन ने उन्हें सहयोग किया और पढ़ने के प्रति प्रेरित किया। राजकीय आदर्श बालिका इंटर कालेज रानीखेत से इंटर मीडिएट कर कला के प्रति अनुराग माबिया को अल्मोड़ा ले गया। माबिया ने 2017 में अल्मोड़ा कैम्पस से बी एफ ए किया।विगत वर्ष 2021 में दादा के निधन ने उसे पूरी तरह तोड़ कर रख दिया। वे कहती है कि आर्थिक तंगी ने एक सफल आर्टिस्ट बनने का लक्ष्य ही परिवर्तित कर दिया,अब सोचती हूं कि स्कूल में अध्यापन कार्य से जीवन बसर हो जाए तो भी ठीक है।लेकिन पेंटिग्स मेरा शौक और जीने का सहारा दोनों है इसे मरने नहीं दूंगी।एक कैनवास ही तो है जो उसके दुःखों को सोख लेता है।जब कूंची पकड़ कर कैनवास के आगे बैठती हूं तो लगता है मैं इस दुनिया में हूं ही नहीं ,अपनी खुद की दुनिया में गहरे खो जाती हूं।जीवन में इतना खालीपन और सन्नाटा आ गया है कि पेंटिंग के जरिए खुद को व्यस्त रखना चाहती हूं।
वे बताती है कि घरेलू कार्य निबटाने के बाद देर रात या सुबह जल्दी उठकर और अवकाश के दिन वह पेंटिंग का कार्य करती है। माबिया को पेंटिंग में आयल पेंटिंग(तैल चित्र)वाॅटर कलर,अक्रेलिक,प्रिंट मेकिंग,स्कैचिंग,आउटडोर स्कैचिंग टेक्सचर ,विधाओं पर काम करना पसंद है।
माबिया के कूँची पकड़ते ही मन की कल्पनाओं का संसार जीवित हो उठता है।कुमाउनी लोक संस्कृति के आयाम उसके पसंदीदा विषय हैं जिन्हें वह उन्मुक्त रूपों रंगों और रेखाओं के स्वच्छंद प्रयोग से एक नवीन कलाकृति का सृजन करती है।जब वह तैल चित्र बनाती है तो चित्र मन के अंतस में पल रही वेदनाओं का प्रतिबिम्ब बन कर उभर पड़ता है।माबिया के तैल चित्रों को उसके मन में गुंफित भाव, संवेदनाओं की जीवंत प्रतिक्रिया भी कहा जा सकता है।
माबिया की पेंटिग्स कला उत्सव दिल्ली और अल्मोड़ा कैम्पस में आयोजित कला वीथिका की शोभा बढा़ चुकी हैं।दिल्ली कला उत्सव में उत्तराखंड से माबिया की एक मात्र पेंटिंग लगी थी,इस कल्पना प्रसूत चित्र ने कलानुरागियों की खूब प्रशंसा बटोरी।
माबिया नीदरलैंड के प्रसिद्ध चित्रकार विन्सेंट विलेम वैन गो को अपना आदर्श मानती है।जिन्होंने मानसिक रोगों और दुःखों से लड़ते हुए अपने भीतर के चित्रकार को ज़िंदा रखा।जीवन में उन्हें कोई सम्मान नहीं मिला।बाद में 37वर्ष की अल्पायु में खुद को गोली मार ली।मृत्योपंरात वे दुनिया के महानतम चित्रकारों में गिने गए।
माबिया रानीखेत जैसे छोटे शहर की एक प्रतिभावान कलाकार है।उसका सृजनात्मक कौशल गजब का है।रंगों और रेखाओं का सामंजस्य बैठाकर अपने बोध अपनी स्मृतियों और अपनी कल्पनाओं को रंगों में घोलकर एक नए सौंदर्य के दर्शन कराती है है यह लड़की।आवश्यकता है इसे प्रोत्साहन के पंख लगाने की,ताकी ये अपने मटमैले दुःखों से मुक्त हो कला के सतरंगी व्योम में उड़ान भर सके।