उतराखंड विधान सभा सचिवालय सेवा ( भर्ती तथा सेवा की शर्तें) (संशोधन) नियमावली २०१६ में संशोधन किए जाने की ज़रूरत
विधि आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष दिनेश तिवारी एडवोकेट ने विधान सभा सचिवालय में कार्मिकों की भर्तियों के विवाद के बीच उत्तराखंड विधान सभा सचिवालय सेवा ( भर्ती तथा सेवा की शर्तें) ( संशोधन) नियमावली २०१६ में संशोधन किए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है । कहा है कि यह नियमावली अध्यक्ष विधान सभा को विधान सभा सचिवालय में कार्य संचालन के लिए नियुक्तियाँ करने का निरंकुश अधिकार प्रदान करती है । कहा कि संविधान के अनुच्छेद २०८ में प्राविधान है कि प्रत्येक विधानमंडल अपने कार्य संचालन के लिए नियमावली सृजित करेगा । कहा कि उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद उत्तराखंड विधान सभा के कार्य के संचालन के लिए नियमावली सृजित किए जाने तक उत्तरप्रदेश विधान सभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली १९५८ को आनुषांगिक संशोधनों के साथ स्वीकार किया गया । कहा कि वर्ष 2011 में भाजपा के कार्यकाल में उत्तराखंड विधान सभा नियमावली बनायी गयी जिसे २०१२ में लागू किया गया । कहा कि इस नियमावली के आधार पर वर्ष २०१६ में तत्कालीन विधान सभा अध्यक्ष श्री गोविंद सिंह कुंजवाल ने १५८ कर्मचारियों की नियुक्तियाँ की । बताया कि इन्हीं नियुक्तियों को माननीय उच्च न्यालय में ‘राजेश चंदोला और अन्य बनाम उत्तराखंड विधान सभा सचिवालय और अन्य के द्वारा एक पीआइएल के ज़रिए चुनौती दी गयी . कहा कि माननीय उच्च न्यायालय ने तदर्थ नियुक्ति पाए कार्मिकों के पक्ष में फ़ैसला देते हुए दिनांक २६.०६ २०१८ को कहा कि विधान सभा सचिवालय के कार्य संचालन के लिए विधान सभा अध्यक्ष द्वारा उत्तराखंड विधान सभा सचिवालय सेवा नियमावली के अंतर्गत की गयीं नियुक्तियों वैध हैं । बताया कि उच्च न्यायालय के इस आदेश को सर्वोच्च न्यालय में चुनौती दी गयी लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट के फ़ैसले को बहाल रखा । कहा कि इसी नियमावली की आड़ में भाजपा सरकार के पिछले कार्यकाल २०२१ में ७२ लोगों को तदर्थ आधार पर विधान सभा में नियुक्तियाँ दी गयी है । कहा कि इस नियमावली से कवर होने के कारण विधान सभा में होने वाली तदर्थ भर्तियों में प्रदेश के बेरोज़गार युवा , महिलाएँ , विकलांग , अनुसूचित जाति , जनजाति , भूतपूर्व सैनिक , अल्पसंख्यक और अन्य श्रेणियों के लोग भागीदारी से वंचित हो गए हैं । कहा कि यह नियमावली संविधान के आर्टिकल १८७ के द्वारा राज्य विधान मंडलों को दिए गए अधिकार के अंतर्गत बनायी गयी है और इसमें राज्य विधान मंडल के संचालन की व्यवस्था बतायी गयी है । कहा कि नियमावली में तदर्थ नियुक्ति और सीधी भर्ती का प्राविधान है और यह ब्यवस्था भी दी गयी है कि पद सृजन होने पर सीधी भर्ती के पदों के लिए परीक्षा आयोजित की जाएगी और तात्कालिक आवश्यकता पड़ने पर छः माह के लिए तदर्थ नियुक्तियाँ की जा सकेंगी । कहा कि तदर्थ रूप से नियुक्त कार्मिकों के नियमितीकरण के लिए विधान सभा अध्यक्ष को एक चयन समिति गठन करने का अधिकार है और इसी समिति को नियमितिकरण की प्रक्रिया को पूर्ण करने , या आगे बढ़ाने का भी अधिकार है । कहा कि ज़ाहिर है अध्यक्ष या चयन समिति जैसा चाहेगी वैसा करेगी । कहा कि न केवल उत्तराखंड राज्य में बल्कि अन्य प्रदेशों में भी संविधान और इसी नियमावली की आड़ में विधान सभा सचिवालय में ‘ अपने लोगों ‘ को नियुक्तियाँ दी गयी हैं । कहा कि विधान सभा मे अभी तक हुई नियुक्तियों की जाँच का फ़ैसला तो ठीक है पर यह मर्ज़ का उपचार नहीं है । कहा कि नियमावली में संशोधन का अधिकार विधान मंडल को है इस लिए अध्यक्ष अगर चाहे तो नियमावली में संशोधन के लिए समिति का गठन कर सकती हैं ।