रामपुर तिराहा कांड के दोषी कब होंगे दंडित, उत्तराखंड के स्वाभिमान पर सरकार मौन क्यों?

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विधि आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष व राज्य आंदोलनकारी दिनेश तिवारी एडवोकेट ने १ अक्टूबर ,१९९४ की रात को मुज़फ़्फ़र नगर के रामपुर तिराहे पर उत्तराखंड राज्य की माँग के लिए दिल्ली प्रदर्शन में भागीदारी करने जा रहे राज्य आंदोलनकारी समूहों के साथ राज्य पुलिस द्वारा की गयी बर्बरता को आज़ाद भारत के इतिहास की बेहद शर्मनाक घटनाओं में से एक बताया है । मुज़फ़्फ़रनगर , खटीमा , मसूरी , नैनीताल , देहरादून में पुलिस के असंवैधानिक , ग़ैर क़ानूनी कृत्य के शिकार शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उत्तराखंड के शहीदों को भुला देना उत्तराखंडी समाज की सबसे बड़ी त्रासदियों में शामिल है . कहा कि रामपुर तिराहे पर शहीदों को श्रद्धांजलि अब केवल एक सरकारी रस्म भर रह गयी है . और सरकार शहीदों के सपनों की शिनाख्त करने और जनता का उत्तराखंड राज्य बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में विफल साबित हुई है .। कहा कि मुज़फ़्फ़र नगर कांड के दोषियों को आज तक भी सज़ा नहीं मिल सकी है . और मामला पहले की तरह ही लटका हुआ है . कहा कि १ अक्टूबर ,१९९४ की रात जो दमन , सामूहिक बलात्कार , हत्याएं रामपुर तिराहे पर उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के साथ घटित हुई हैं वह आज़ाद भारत का , लोकतंत्र का काला अध्याय है . कहा कि अपनी क्लोजर रिपोर्ट में सीबीआई ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को बताया था कि मुजफ़्फ़रनगर , खटीमा , मंसूरी , नैनीताल , देहरादून में ०७ सामूहिक दुष्कर्म , १७ महिलाओं से छेड़छाड़ और २६ लोगों की हत्याएं की गयीं । कहा कि इस मामले में १२ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट भी दाख़िल की गयी । लेकिन किसी भी मामले में कोई भी कार्यवाही आज तक अमल में नहीं लायी गयी है . कहा कि परिसंपत्तियों के बँटवारे पर सक्रिय रहने वाली सरकार उत्तराखंड के स्वाभिमान के प्रश्न पर मौन है और इस महत्वपूर्ण मामले पर यूपी सरकार से बात करना तो बहुत दूर मामले का संज्ञान लेना भी ठीक नहीं समझती . कहा कि तत्कालीन पुलिस महानिदेशक बुआ सिंह और मुजफ़्फ़र नगर के तत्कालीन ज़िलाधिकारी अनंत कुमार सिंह की भूमिका पर कई सवाल उठे और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी कई अधिकारियों की भूमिका को अपराध की श्रेणी का माना पर उन्हें सीधे मामले में सीधे दोषी मानकर चार्जशीट नहीं किया गया . कहा कि उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों की शहादत को सही श्रद्धांजलि यही है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री मामले का फिर से संज्ञान लें और मुजफ़्फ़रनगर , खटीमा , मसूरी , नैनीताल , देहरादून की घटनाओं के लिए ज़िम्मेवार पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दंड मिलने का मार्ग प्रशस्त करें ।