उस वीरान गेट का रहस्य

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हर पुरा इमारत अथवा निर्माण का कोई अंश एक कहानी कहता है। एक इतिहास से आपका परिचय कराता है।समय के हाथों बच रह गए अवशेष बताते हैं कि समय किसी का सगा नहीं होता। ऐसा ही एक मजबूत द्वार (गेट) है अपने रानीखेत में, जो वर्षों से स्थानीय नागरिकों और गेट के आगे से गुजरने वाले यात्रियों की जिज्ञासा को खदबदाता रहा है। जी हां, चाइना-व्यू मालरोड से गनियाद्योली जाते वक्त अकसर आम राहगीरों की तरह आपकी नजर भी इस गेट पर पड़ी होगी और सड़क किनारे बनाए गए इस वीरान गेट ने आपके भीतर कौतुहल जरूर जगाया होगा कि आखिर इस निपट अकेले गेट को बनाया किस मकसद से गया होगा?क्योंकि इस गेट के पीछे न कोई इमारत है, और ना ही कोई पार्क अथवा सरकारी संस्थान। अगर है तो केवल ढलान तक फैला नीरव जंगल।
इस पुराने गेट पर घास ऐसे फूट कर बाहर निकल आई है मानों किसी बूढ़े उदास चेहरे पर अनचाही दाढ़ी।शोर शराबे से दूर इस वीरान गेट को देखकर कभी लगता है जैसे अपनी कहानी सुनाने के लिए ये किसी श्रोता के इंतजार में में बैठा हो। भले ही सरपट दौड़ते वाहनों के यात्री उसकी मूक भावना को न समझ पाए हों लेकिन हम आज इस गेट के पीछे का इतिहास आप से साझा करना चाहते हैं।
चंद राजाओं के राज ज्योतिष पांडे परिवार से थे। चंद राजाओं द्वारा आठ गांव पांडे परिवारों को दान दिए गए जिनमें कपीना, पांडेकोटा, पथुली,तोड़ा, सिमोली, शिशुवा, मेहरातल्ला अम्याड़ी आदि शामिल थे, इन गांवों के समूह को तब इंदुगढ़(पांडेकोटा) कहा गया।इसी गांव में कालांतर में उदार, स्वाभिमानी आचार्य कविराज भोलादत्त पांडेय का जन्म हुआ जिनकी ख्याति एक आयुर्वेद उपचारक के रूप में दूर-दूर तक थी। वह नाड़ी परीक्षण से रोग की पहचान करने में सिद्वहस्त थे।उन्होंने आयुर्वेद के जीवन में योगदान पर अध्ययन कार्य किया और डी.एस.सी.एम आर.ए.एस की उपाधि ली।बताते हैं कि वैद्य भोलादत्त पांडेय ने क्षेत्र के करीब 11सौ उपचारकों को अध्ययन कराकर कुशल वैद्य बनाया। भोलादत्त पांडेय उ0प्र0 आयुर्वेद एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे।उ0प्र0 के तत्कालीन राज्यपाल कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी की पत्नी जब बीमार हुई और तमाम चिकित्सकों से इलाज कराने के बाद भी जब कोई लाभ नहीं मिला तो उन्होंने वैद्य भोलादत्त पांडेय से संपर्क किया। भोला दत्त पांडेय के इलाज से राज्यपाल मंुशी की पत्नी को स्वास्थ लाभ मिला।
राज्यपाल मुंशी आचार्य भोला दत्त पांडेय से प्रभावित थे। उन्होंने भोला दत्त पांडेय को वनौषधि उद्यान स्थापित करने की सलाह दी।संवत 2014 में भोला दत्त पांडेय ने क्षेत्र को आयुर्वेद चिकित्सा का लाभ देने के उद्देश्य से वनौषधि उद्यान की स्थापना की पहल की जिसके लिए इस भव्य गेट का निर्माण कराया गया जिसका शुभारम्भ राज्यपाल मुंशी से कराने के बाद उन्हीं के नाम को समर्पित कर दिया गया। इससे पहले की वनौषधि उद्यान पल्लवित हो पाता छावनी परिषद ने अपनी भूमि पर इस तरह के उद्यान की स्थापना को अतिक्रमण बताते हुए भोलादत्त पांडेय पर केस कर दिया। ऐसे में गांव बिरादरी ने भी इस मामले से पल्ला झाड़ लिया और भोला दत्त पांडेय के पक्ष में गवाही देना तक उचित नहीं समझा। गांव बिरादरी की बेरूखी से भोला दत्त पांडेय बेहद आहत हुए कि ऐसी बिरादरी किस काम की जो संकट में साथ न दे। भोला दत्त ने गांव का मार्ग त्याग दिया और रूष्ट होकर ईसाई धर्म अपना लिया।बाद में वह पिलखोली आकर रहने लगे वहीं पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने पत्नी की समाधि बनवाई।भोला दत्त पांडेय आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में काफी योगदान देना चाहते थे लेकिन दुर्भाग्यवश रानीखेत उनकी सेवाओं का लाभ नहीं ले पाया। उनके इरादे वैसे ही मजबूत थे जैसे उनका बनाया यह गेट पूरी मजबूती से आज भी खड़ा है उनकी मंशा का मूक गुणगान करता हुआ। #प्रकृतलोक पिछले अंक से