जिले को लेकर डीडीहाट में बेमियादी आमरण अनशन, रानीखेत में कोई उत्साह नहीं,धरना चंद घंटों में सिमटा

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डीडीहाट: डीडीहाट जिले के गठन को लेकर निर्णायक आंदोलन के संकल्प के साथ संयुक्त मोर्चा जिला बनाओ संघर्ष समिति के आह्वाहन पर आंदोलन कारी रामलीला मैदान में अनिश्चितकालीन आमरण अनशन पर बैठ गए हैं। वहीं रानीखेत में नागरिकों ने जिले को लेकर अपना संघर्षदो घंटे का धरना देकर निपटा लिया जिसमें क्षेत्रीय विधायक भी शामिल रहे।

शुक्रवार को रामलीला मैदान में डीडीहाट जिले के मांग को लेकर आंदोलनकारी लवि कफलिया और दीवान सिंह देउपा ने आमरण अनशन शुरू कर दिया।संघर्ष समिति के संरक्षक मोहन सिंह मर्तोलिया एवं दुष्यंत सिंह पांगती ने आंदोलनकारियों को माल्यार्पण कर आमरण अनशन पर बैठाया।
इस दौरान आंदोलनकारियों ने कहा कि 15 अगस्त 2011 को घोषित डीडीहाट जिले को 10 साल के बाद भी अस्तित्व में नहीं आ पाया है। उन्होंने सरकार से जिलों के पुनर्गठन को लेकर बनाए आयोग को भंग कर विधानसभा चुनाव से पहले जिलों का गजट नोटिफिकेशन जारी करने की मांग की।

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राज्य आंदोलनकारी और कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष दिनेश गुरूरानी ने डीडीहाट जिले की लड़ाई राज्य आंदोलन के तर्ज पर लड़ने की बात कही। साथ ही चेतावनी दी है कि डीडीहाट को अगर जल्द जिला घोषित नहीं किया गया तो आगामी चुनाव में सरकार को भारी खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

इधर रानीखेत में चार घोषित जिलों की संघर्ष समिति के आह्वान पर शुक्रवार को एक दिवसीय धरना रखा गया जो चंद घंटों में सिमट गया।धरने में क्षेत्रीय विधायक करन माहरा,क्षेत्र प्रमुख हीरा रावत भी शामिल हुए।धरने को लेकर नागरिकों के अनुत्साह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि धरने में बामुश्किल दो दर्जन लोग इकट्ठा हुए।धरने के दौरान भी आंदोलन को धार देने के लिए कोई विशेष योजना नहीं बन पाई।आंदोलन को आगे कौन ,कब कैसे चलाएगा इस बात को लेकर संशय बना रहा। धरना दो-चार भाषणों के बाद यह कहकर समेट लिया गया कि बंद कमरे में कोर कमेटी के नाम पर चंद लोग रानीखेत जिला आंदोलन पर फैसला लेंगे।दरअसल पिछले कुछ वक्त से रानीखेत जिला बनाओ संघर्ष समिति अशक्त व असहाय सी हो गई है और इसके बैनर को समय -समय पर सियासी दल हाईजैक करते रहे हैं।यह विडम्बना ही है जब कांग्रेस सत्ता में होती है तो जिला आंदोलन में भाजपाई सक्रिय हो जाते हैं और जब भाजपा सत्ता में होती है तो आंदोलन की दरी पर कब्जा कांग्रेसियों का रहता है और भाजपाई सिरे से गायब नजर आते हैं। दोनों दल भले ही बाहरी तौर पर आंदोलन को गैर राजनैतिक रखने की करते रहे हों लेकिन सच्चाई यही है कि बिना आम जनता की भागीदारी से आंदोलन गैर राजनैतिक नहीं बन सकता।और जनता राजनैतिक दलों के हाथों इतनी बार छली जा चुकी है कि उनकी हताशा,निराशा उन्हें आंदोलन में शामिल नहीं होने देती।

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