बाॅलीवुड फिल्म शैली से प्रेरित उत्तराखंड की बोली-भाषा में निर्मित फीचर फिल्म ‘माटी पछ्याण’ 23 सितंबर को होगी रिलीज

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सी एम पपनैं

नई दिल्ली। उत्तराखंड पर्वतीय अंचल को त्रस्त कर रहे, पलायन के उग्र मुद्दे को संबोधित करती, महिला सशक्तिकरण को बल देने के साथ-साथ, उत्तराखंड की लोक संस्कृति व गीत-संगीत पर आधारित, बाॅलीवुड फिल्म शैली के उच्च आयामों से ओतप्रोत, आंचलिक कुमांऊनी बोली-भाषा मे निर्मित फीचर फिल्म, ‘माटी पछ्याण’ उत्तराखंड के विभिन्न कस्बो व नगरों सहित दिल्ली (एनसीआर), मुंबई, लखनऊ इत्यादि नगरों व महानगरों मे 23 सितंबर को प्रदर्शित होने जा रही है।

निर्मित फिल्म पटकथा मनमोहन चौधरी तथा निर्माता फराज शेर हैं। निर्देशक व सहायक निर्देशक क्रमशः अजय बेर व जितेंद्र नागर तथा निर्मित फिल्म के संगीत निर्देशक राजन बजेली हैं। फिल्म का प्रभावशाली शीर्षक गीत, ‘ये माटी मेरी मां छू…।’ मशहूर वालीवुड पाश्रर्व गायक सुदेश भोंसले द्वारा गाया गया है। उक्त आंचलिक फिल्म का कला निर्देशन, प्रतीक सिंह राजपूत, वेशभूषा इंदु शर्मा तथा डायरेक्टर आफ फोटोग्राफी फारुख खान द्वारा उच्च तकनीक से की गई है।

‘माटी पछ्याण’ नामक उत्तराखंड की इस आंचलिक कुमांऊनी फीचर फिल्म का अधिकारिक ट्रेलर, विगत 3 सितंबर को, ग्राफिक एरा हिल विश्वविद्यालय प्रेक्षागृह, देहरादून में, मुख्य अतिथि उत्तराखंड पर्यटन व संस्कृति कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज द्वारा, विशिष्ट अतिथि ग्राफिक एरा एजुकेशन ग्रुप अध्यक्ष, डाॅ कमल घनशाला के सानिध्य तथा फिल्म यूनिट तकनीशियनों, कलाकारों व प्रबुद्धजनो की उपस्थिति के मध्य, फार्च्युन टाकीज मोशन पिक्चर्स के यूट्यूब चैनल पर जारी किया गया था। फिल्म के उक्त ट्रेलर से पूर्व, फिल्म निर्माता फराज शेर तथा कार्यकारी निर्माता प्रज्ञा तिवारी द्वारा, निर्मित फीचर फिल्म मे फिल्माए गए गीतों के तीन टीजर, अलग-अलग समय पर, माह अगस्त व सितंबर में रिलीज कर दिये गए थे। जो दर्शकों को प्रभावित करते नजर आए हैं।

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निर्मित उत्तराखंडी फीचर फिल्म की मुख्य अभिनेत्री, अंकिता परिहार की मां की भूमिका निभा रही, चंद्रा बिष्ट द्वारा एक भैंट में, अवगत कराया गया, उत्तराखंड की सच्ची घटनाओ पर फिल्म निर्मित है। एक छोटे से गांव की पहचान, समुदाय, भाषा और प्रेम के जटिल मुद्दों को फिल्म मे फिल्माया गया है। शूटिंग उत्तराखंड के कोटाबाग (नैनीताल) व भीमताल की खूबसूरत वादी में एक माह तक हुई है। फिल्म कुमांऊनी बोली-भाषा के प्रभावशाली व ध्यान आकर्षित करने वाले ठोस संवादो से परिपूर्ण है। फिल्म पहाडी अंचल से निरंतर हो रहे पलायन के दर्द व अंचल में बाहरी लोगों की घुस पैठ से बढ़ रही अशांति को बयां करती है, उस पर चोट करती है। फिल्म के माध्यम से बताया गया है, कोई भी व्यक्ति पहाडी़ अंचल से पलायन नहीं करना चाहता है। लेकिन अपने बच्चों के भावी भविष्य के लिए उसे कठिन निर्णय लेने को मजबूर होना पड़ता है। अंचल के रोजमर्रा के मुद्दों के साथ-साथ, बेटी के हक की बात भी फिल्म में प्रभावी तरीके से बयां की गई है। पहाड़ी अंचल की लड़की का, पहाड़ जैसा साहस दिखाया गया है। प्रेमगाथा व रोमांश के पुट फिल्म को प्रभावी तौर पर आगे बढाते हैं।

फिल्म के संवाद, अभिनय व फिल्म का परिवेश उत्तराखंड पर्वतीय अंचल का है। किरदारों के संवाद कुमांऊनी में हैं, जिन्हे गढ़वाली जानने व बोलने वाले भी आसानी से समझ-बूझ सकते हैं। कुमांऊनी व गढ़वाली दोनों बोली-भाषा के शब्दों का बखूबी चयन, व्यक्त संवादो में किया गया है।

फिल्म अदाकारा चंद्रा बिष्ट द्वारा अवगत कराया गया, फिल्म मनोरंजन से भरपूर है। फिल्म मे छह गीत हैं। कुल 12 कलाकारों ने किरदार निभाए हैं। फिल्म निर्माता फराज शेर उत्तर प्रदेश मूल के हैं। उनके द्वारा उत्तराखंड के कलाकारों को एक प्रभावशाली मंच प्रदान किया गया है, जो सराहनीय सोच कही जा सकती है। चंद्रा बिष्ट द्वारा व्यक्त किया गया, उत्तराखंड सरकार इस फिल्म को कितना बढ़ावा देती है, देखना होगा। क्यों कि फिल्म चलने व प्रचार-प्रसार के लिए आम जन के साथ-साथ, सरकार का साथ चाहिए होता है। व्यक्त किया गया, राज्य सरकार कैबिनेट संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज द्वारा फिल्म को टैक्स फ्री का वायदा किया गया है। अगर फीचर फिल्म सफल होती है तो, उत्तराखंड के अन्य फिल्म निर्माताओं को भी बल व साहस की प्राप्ति होगी। राज्य का फिल्म उद्योग प्रगति करता है तो, कई लोगों को उत्तराखंड में रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। उत्तराखंड के कलाकारों मे एक आस जगेगी, उनका भावी भविष्य उज्ज्वल होगा।

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निर्मित फीचर फिल्म मे करण गोस्वामी मुख्य अभिनेता व अंकिता परिहार मुख्य अभिनेत्री की भूमिका में हैं। अन्य प्रमुख किरदारों मे, गढ़वाल, सतपुली के ग्राम रिंगवाड के मूल निवासी पदमिंदर रावत जो वर्तमान, दिल्ली पुलिस मे इंस्पेक्टर के पद पर हैं। वान्या जोशी मूल रूप से नैनीताल निवासी हैं। वर्तमान मे मुंबई व गुड़गांव मे रहती हैं। चंद्रा बिष्ट मूल रूप से उत्तराखंड के गांव ज्योडे-पीपली रानीखेत निवासी हैं। स्थाई रूप से दिल्ली में प्रवासरत हैं। उक्त तीनो दिग्गज कलाकार रंगमंच, टैली फिल्म व टीवी धारावाहिकों के मजे हुए अभिनेता व अभिनेत्रियों के साथ-साथ, उत्तराखंड की दिल्ली प्रवास मे गठित, सु-विख्यात राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था ‘पर्वतीय कला केन्द्र’ दिल्ली से, विगत चार दशकों से जुड़े नियमित कलाकार रहे हैं। उक्त तीनों दिग्गज कलाकारों द्वारा, ‘पर्वतीय कला केन्द्र’ दिल्ली के दल के साथ, विश्व के अनेको देशों का भ्रमण, भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद, भारत सरकार के सौजन्य से कई बार किया है।

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रामलाल आनंद कालेज दिल्ली विश्व विद्यालय से स्नातक, दिल्ली रंगमंच, टीवी धारावाहिक व टैली फिल्मों की जानीमानी अदाकारा चन्द्रा बिष्ट द्वारा अनेकों सु-प्रसिद्ध नाट्य व संगीत निर्देशको, मोहन उप्रेती, बी एम शाह, एम के रैना, बंशी कौल, सोनार चांद, सुभाष उद्दगाता, प्रेम मटियानी, लोकेन्द्र त्रिवेदी, पंचानन पाठक इत्यादि इत्यादि के निर्देशन मे, दर्जनों गीत व नृत्य नाट्यो तथा नाटकों में अपने अभिनय की गहरी छाप छोड़, राष्ट्रीय रंगमंच पटल पर ख्याति अर्जित की है।

दिल्ली दूरदर्शन द्वारा निर्मित टीवी सीरियलों, ‘क्योकि जीना इसी का नाम है’, ‘खलीफा हारूंन’, ‘जिंदगी इस पल, जिंदगी उस पल’, ‘बंगले वाले’ व ‘सबरंग’ तथा निर्मित टैली फिल्मों, ‘एक छोटी सी भूल’, ‘सीमा’, ‘तीसरा रास्ता’, ‘कोशिश’, ‘जागृति’, ‘पापा जी’ तथा ‘अंगीला में, मुख्य किरदार की भूमिका का निर्वाह कर, चंद्रा बिष्ट द्वारा ख्याति अर्जित की गई है।

उत्तराखंड के परिवेश तथा पलायन जैसे उग्र मुद्दों को संबोधित करती, निर्मित कुमाउनी फीचर फिल्म, ‘माटी पछ्याण’ में पदमिंदर रावत, वान्या जोशी व चंद्रा बिष्ट इत्यादि जैसे दिग्गज अदाकारों की उपस्थिति के साथ-साथ, फिल्म से जुड़े रहे तकनीशियनों व विभिन्न विधाओं के निर्देशकों के गूढ़ अनुभवों व किए कार्यों का अवलोकन कर, कयास लगाया जा सकता है, उक्त निर्मित फीचर फिल्म, उत्तराखंड की पहली ऐसी फीचर फिल्म साबित हो सकती है, जो दर्शकों के मध्य दीर्घ अवधि तक छाप छोड़ने व अच्छा व्यवसाय करने मे सफलता हासिल कर सकती है। फिल्म निर्माता फराज शेर के लिए यह फिल्म, भविष्य के बहुत बडे़ फिल्म व्यवसाय का जरिया बन सकती है। ऐसा सोचा जा सकता है, कयास लगाया जा सकता है।
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