संगीत नाटक अकादमी सम्मान से नवाजे गए प्रख्यात नाट्य समीक्षक दीवान सिंह बजेली का रंगमंच की बारीकियों पर व्याख्यान

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सी एम पपनैं

नई दिल्ली। देश का सबसे प्रतिष्ठित ‘संगीत नाटक अकादमी सम्मान’ 2018 का विशेष अलंकरण समारोह, 9 अप्रेल 2022 विज्ञान भवन, नई दिल्ली मे आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि देश के उप-राष्ट्रपति वैंकय्या नायडु के कर कमलो, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी, उमा नंदूरी अध्यक्ष ललित कला अकादमी तथा संजुगता मुद्गल (संस्कृति मंत्रालय) की उपस्थिति मे, सम्मानित होने वाले कलाकारों को ताम्रपत्र व एक लाख रुपया प्रदान किया गया। उत्तराखंड के ख्याति प्राप्त नाट्य समीक्षक दीवान सिंह बजेली को ‘संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप’ प्रदान की गई। संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित होने वाले, उत्तराखंड के दूसरे कलाकार लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी रहे। हल्द्वानी की कुसुम पांडे को ललित कला अकादमी की ओर से छापा कला मे ’62वी राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी सम्मान’ से मुख्य अतिथि द्वारा नवाजा गया।

गीत-संगीत सहित लोककला की विभिन्न विधाओ पर अद्भुत कार्य कर रहे, देश के अन्य 40 चयनित कलाकारों को भी, उप-राष्ट्रपति के कर कमलो, संगीत नाटक अकादमी सम्मान व ललित कला अकादमी सम्मान 2018 से सम्मानित किया गया।

संगीत नाटक अकादमी मेघदूत सभागार (तीन) मे, 10 अप्रेल को ‘संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप’ प्राप्त नाट्य समीक्षक दीवान सिंह बजेली द्वारा, ‘रंगमंच समीक्षक का उद्यम’ विषय पर व्याख्यान दिया गया। इस अवसर पर सभागार में, संगीत नाटक अकादमी से जुडे, रंगमंच की विविध विधाओ पर अकादमी जूरी, राष्ट्रीय फलक पर ख्याति प्राप्त रंगमंच निर्देशको व समीक्षकों तथा रंगमंच से जुडे कलाकारो की उपस्थिति मुख्य रही।

आयोजित व्याख्यान के इस अवसर पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केन्द्र के कलाकारों बबीता पांडे, मधु बेरिया साह, महेन्द्र लटवाल व भुवन रावत द्वारा उत्तराखंड की सु-प्रसिद्ध लोक गाथाओ राजुला मालूशाही व रसिक रमोल के लोकगीत-संगीत का प्रभावशाली मंचन किया गया।

‘संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप’ प्राप्त नाट्य समीक्षक दीवान सिंह बजेली द्वारा दिए गए व्याख्यान मे, रंगमंच व रंगमंच समीक्षा से जुडे महत्वपूर्ण पहलुओ पर प्रकाश डाला गया।
व्यक्त किया गया, वे रंगमंच मे, सदैव बैक स्टेज आर्टिस्ट रहे हैं, कलाकार नहीं। छुटपुट रूप से नाटकों व फिल्मों की समीक्षा किया करते थे। प्रकाशित समीक्षाओं से प्रभावित होकर, इंडियन एक्सप्रेस के तत्कालीन संपादक सुमन दुबे द्वारा, निरंतर इंडियन एक्सप्रेस के लिए, रंगमंच पर समीक्षा लिखने को कहा गया। तत्कालीन रंगमंच समीक्षको नेमी चंद्र जैन, कविता नागपाल इत्यादि द्वारा भी प्रोत्साहन दिया गया। मिले प्रोत्साहन व प्रकाशित हो रही समीक्षाओ का प्रभाव, दिल्ली से प्रकाशित टाइम्स ऑफ इंडिया, नेशनल हैराल्ड, हिंदुस्तान टाइम्स, पायनियर, इकोनोमिक्स टाइम्स, फाईनैंनशियल एक्सप्रेस तथा हिंदू जैसे अंग्रेजी अखबारों के संपादकों तक भी पहुचा, सभी जगह नाटक, फिल्म व पैंटिंग पर समीक्षाऐ प्रकाशित होने लगी, जो विगत चार दशकों से प्रकाशित होती रही हैं।

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दीवान सिंह बजेली द्वारा, व्यक्त किया गया, प्रभावशाली भाषा-शैली का प्रयोग करना रंगमंच समीक्षा के लिए जरूरी था। देश के ख्याति प्राप्त नाट्य निर्देशको बी एम शाह, भानु भारती, प्रशन्ना सहित अनेको अन्य नाट्य निर्देशको के नाटकों की बारीकियों का अद्ध्ययन मनन किया, ज्ञान प्राप्त किया। उनके द्वारा मंचित नाटकों की समीक्षाऐ की, जो पाठकों व रंगकर्मियों द्वारा सराही गई। एक समीक्षक की क्या भूमिका व समीक्षा होनी चाहिये, इस सबका गहराई से, रंगमंच से जुडी हर विधा का अवलोकन किया, इस विधा के बावत जाना। गीत-संगीत के नाटकों से ज्यादा प्रभावित हुआ। गीत व नृत्य नाटिकाओ मे संगीत के महत्व को पहचाना। बृजेन्द्र लाल साह, मोहन उप्रेती, बी एम शाह के गीत-संगीत आधारित लोकगाथाओ के मंचन, जो ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली द्वारा मंचित किए गए, जो वास्तविक गीत-नाट्य थे, जिन्होंने बहुत प्रभावित किया। हिंदुस्तान के लगभग लोकसंगीत के विभिन्न नाट्य निर्देशको द्वारा मंचित गीत नाट्यो को भी देखा, सुना समीक्षा की। देशी-विदेशी रंगमंच निर्देशको के नाटकों को देखा, नाट्य निर्देशन के अंतर को जाना।

अकादमी सम्मान प्राप्त, दीवान सिंह बजेली द्वारा व्यक्त किया गया, जिस प्रकार नाटकों की समीक्षा करना आसान कार्य नहीं है। उसी प्रकार, ऐतिहासिक नाटक का मंचन करना आसान नहीं है। निर्देशक को उसके इतिहास का ज्ञान होना आवश्यक है। रंगमंच समीक्षको को इन मंचित नाटकों पर मंथन कर ही, समीक्षा करनी होती है। उन्होंने देश के कई नामी रंगमंच निर्देशको के निर्देशन का जिक्र किया, उनके नाटकों के स्तर व समीक्षको द्वारा की गई समीक्षा पर प्रकाश डाला। बर्नार्ड शाह, शैक्सपीयर तथा पीटर ब्रुक के नाटकों का भी जिक्र, समीक्षा के तौर पर, अंतर स्पष्ट करने के लिए किया गया।

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दीवान सिंह बजेली द्वारा व्यक्त किया गया, केशब कोठारी द्वारा व उससे पहले भी, जब रंगमंच के ख्याति प्राप्त लोगों के द्वारा रंगमंच की विभूतियों के मध्य, मेरी सटीक समीक्षाओ के लेखे-जोखे का बखान किया जाता था, तो महसूस हुआ, मैं सही दिशा में जा रहा हूं। रंगमंच समीक्षा की बारीकियो को सीखने का लगाव निरंतर बना रहा। रंगमंच पर मंचित नाटकों को देख ज्ञात हुआ, संगीत समीक्षा व नाटक समीक्षा मे अंतर होता है। सैट डिजाइन, लाइट व साउंड का रंगमंच के परिपेक्ष मे मतलब व महत्व जाना।

व्याख्यान के अंत में दीवान सिंह बजेली द्वारा, व्यक्त किया गया, आर्टकर्मियों, नाटककारों व रंगकर्मियों से हमे प्यार करना चाहिए। प्रभावशाली व्याख्यान की समाप्ति, ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था, ‘पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली’ के कलाकारों द्वारा उत्तराखंड की सु-प्रसिद्ध लोकगाथा, ‘राजुला मालुशाही’ के जागर लोकगीत-
अब झोलि रे चिमटा, पाञ्जी लियो वीरों… अब सुणीयाशौका का कर ड्यूल द्वी चीरा… आदेश आदेश गुरु अलख निरंजन…।
के प्रभावशाली जागर गायन के साथ सम्पन्न हुआ।

आयोजकों द्वारा अकादमी सम्मान प्राप्त दीवान सिंह बजेली व पर्वतीय कला केन्द्र के कलाकारों को साल ओढा कर सम्मानित किया गया। संगीत नाटक अकादमी के अन्य कार्यक्रमो की जानकारी दी गई।

देश के प्रख्यात नाट्य समीक्षक, पिचासी वर्षीय, दिवान सिंह बजेली, दिल्ली मे प्रवासरत हैं। मूल रूप से उत्तराखंड जिला अल्मोडा, पोस्ट मनान, कालिट गांव के निवासी हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए पोलिटिकल साइंस व पत्रकारिता मे डिप्लोमा प्राप्त, दीवान सिंह बजेली, चार दशकों से राष्ट्रीय फलक पर, रंगमंच की विभिन्न नाट्य विधाओ पर, देश के अंग्रेजी अखबारों के लिए नियमित तौर पर समीक्षा करते रहे हैं। उत्तराखंड के लोकसंगीत व नृत्यो पर इण्डिया वीकली लन्दन व द चिल्ड्रन वर्ड मे भी, समीक्षाऐ प्रकाशित होती रही हैं।

दीवान सिंह बजेली उत्तराखंड की सु-विख्यात संस्था ‘पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली’ से विगत पांच दशकों से जुडे रहे हैं, वर्तमान मे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर ख्यातिप्राप्त उक्त सांस्कृतिक संस्था के, संरक्षक तथा साहित्य कला परिषद सहित विभिन्न गठित सरकारी समितियों मे, नामित सदस्य हैं। संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्ति से पूर्व, 2019 मे उत्तराखंड सरकार द्वारा तथा समय-समय पर, देश की विभिन्न सम्मानित सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थाओ द्वारा, अनेको सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं।

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राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तक ‘मोहन उप्रेती द मैन एंड हिज आर्ट’ के बजेली जी रचयिता रहे हैं। 207 पेज की उक्त पुस्तक, देश-विदेशो मे काफी चर्चित रही है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा, अंग्रेजी मे प्रकाशित इस पुस्तक की उपयोगिता, महत्ता व मांग को, देखते हुए 2021 मे पुनरप्रकाशन किया गया है।

उक्त पुस्तक, भारतीय रंगमंच के सु-विख्यात संगीत निर्देशक व उत्तराखंड लोकगीत-संगीत के पुरोधा व लोकगायक रहे, स्व.मोहन उप्रेती के द्वारा, आधुनिक रंगमंच पटल पर, संगीत के क्षेत्र मे दिए गए योगदान पर लिखी गई थी।

दिवान सिंह बजेली द्वारा उक्त पुस्तक की रचना कर, भारतीय रंगमंच पटल व उत्तराखंड लोकसंगीत के सु-विख्यात संगीत निर्देशक तथा लोकगायक स्व.मोहन उप्रेती के द्वारा किए गए कार्यो का मान बढ़ाने के साथ-साथ, उत्तराखंड की लोकसंस्कृति, लोकसंगीत, लोकगाथाओ व लोकबोली के महत्व को उजागर करने का महत्वपूर्ण कार्य किया गया है। आधुनिक रंगमंच संगीत निर्देशको व रंगकर्मियों के लिए प्रेरणाश्रोत दिवानसिंह बजेली की उक्त प्रकाशित पुस्तक, देश-विदेश के रंगमंच जगत से जुडे लोगों के लिए प्रेरणादायी बनी रही है। उक्त प्रकाशित पुस्तक को, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सौजन्य से व्यावसायिक तौर पर, देश-विदेश मे उपलब्ध कराया गया था। पुस्तक को बडे स्तर पर प्रचारित व प्रसारित होने का अवसर मिला था।

‘कुमांऊनी पीपुल एंड फोल्कलोर’ भी दिवान सिंह बजेली की चर्चित अंग्रेजी पुस्तक रही है। ‘द थियेटर ऑफ भानु भारती एंड पर्सपैक्टिभ’ तथा ‘यात्रिक: ए जर्नी इंटू थियेट्रीकल आर्ट’ नामक अन्य प्रकाशित पुस्तके हैं। ‘उत्तराखंड कल्चर इन दिल्ली’ तथा ‘मीरियड ह्युज आफ द हिमालयन आर्ट’ नामक पुस्तके प्रकाशनाधीन हैं।
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