पहले सांसद और विधायकों के चुनाव में लगाओ दो बच्चों का कानून ,पंचायतों को निशाना बनाने का होगा विरोध,29 जनवरी को देहरादून में होगी इस पर चर्चा

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पिथौरागढ़– त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव के लिए दो बच्चों की बाध्यता को कैबिनेट में पास करने पर सीमांत के पंचायत प्रतिनिधि भड़क गए है। उन्होंने कहा कि हम इस नियम स्वागत करते है, लेकिन सांसद और विधायकों पर पहले यह लागू हो।

उन्होंने एक देश में दो विधान लागू करने की इस परंपरा पर रोक लगाने की मांग की। पंचायत प्रतिनिधियों ने सांसद तथा विधायकों से भी दो बच्चों के मामले में अपनी राय सार्वजनिक करने की मांग की है।
उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत संगठन की संयोजक तथा सीमांत के जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया ने कहा कि वर्ष 2019 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए दो बच्चों की बाध्यता का नियम अचानक थोप दिया गया।इसके खिलाफ न्यायालय से लेकर सरकार और शासन तक पत्राचार किया गया।
उन्होंने बताया कि बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक से उम्मीद थी कि सरकार इस बाध्यता को समाप्त करेगी। लेकिन सरकार ने जुड़वे बच्चों के मामले में कैबिनेट में आए प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए यह स्पष्ट कर दिया है, कि वह दो बच्चे वालों को पंचायतों में नहीं देखना चाहती है। उन्होंने कहा कि इसके विरोध में दिए गए पत्रों का संज्ञान नहीं लिया जाना गंभीर विषय है । पंचायती राज विभाग उत्तराखंड द्वारा तैयार की किए गए प्रस्ताव पर पंचायत प्रतिनिधियों की राय नहीं ली गई। इस सूचना के मिलते ही त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधियों में उत्तराखंड भर में आक्रोश व्याप्त है।
उन्होंने कहा कि 29 जनवरी को देहरादून में होने वाली गढ़वाल मंडल की महापंचायत में इस मुद्दे पर भी बातचीत की जाएगी।
उन्होंने स्पष्ट किया कि पंचायतों के चुनाव में दो बच्चों की बाध्यता को लागू करने से पहले सांसद तथा विधायकों के चुनाव में भी इसे लागू किया जाए।
उन्होंने कहा कि लोकसभा के चुनाव होने वाले है। पहले इस चुनाव में इस नियम को लागू किया जाना चाहिए। अगर देश की जनसंख्या बढ़ रही है तो क पंचायत तथा शहरी निकायों के अलावा विधानसभा और लोकसभा के सदस्यों को भी इसमें अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि विधायी व्यवस्था केवल पंचायतों को ही अपना निशाना बना रही है। अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि देश की बढ़ती जनसंख्या के नियंत्रण के लिए पूरे देश के हर नागरिक को अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
केवल त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधियों पर काले कानून थोप कर जनसंख्या नियंत्रण नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने इस मुद्दे पर सांसद और विधायकों को भी सार्वजनिक बयान दिए जाने की मांग की। आम जनता उच्च सदन में बैठे अपने इन जनप्रतिनिधियों की राय भी जानना चाहती है।