सेहत का खजाना पहाड़ी फल बेडू

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड राज्य में कई प्राकृतिक औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं , जो हमारी सेहत के लिए बहुत ही अधिक फायदेमंद होती हैं। बहुत ही कम लोग खासकर की शहरों में बसने वाले लोगों को इस पहाड़ी फल के बारे में जानकारी नहीं है। बेडू मध्य हिमालयी क्षेत्र के  जंगली फलों में से एक है। समुद्र के स्तर से 1,550 मीटर ऊपर स्थानों पर जंगली अंजीर के पौधे बहुत ही सामान्य होते हैं।  गढ़वाल और कुमाऊँ के क्षेत्रों में इनका सबसे अच्छे से उपयोग किया जाता है। ये पेड़ जंगलों में बहुत कम पाए जाते हैं, लेकिन गाँवों के आसपास, बंजर भूमि, खेतों आदि में उगते हैं। फल लोगों को बहुत पसंद आते हैं।  और इन्हे बिक्री के लिए भी प्रयोग किया जाता है। यह मीठा और रसदार होता है, जिसमें कुछ कसैलापन होता है, इसके समग्र फल की गुणवत्ता उत्कृष्ट है।बेडू फल जून जुलाई में लगता है एक पूर्ण विकसित जंगली अंजीर का पेड़ अनुकूलित मौसम में  25 किलोग्राम के आस पास फल देता है।बीज सहित संपूर्ण फल खाने योग्य  होता है। बेडू के पत्ते जानवरों के लिए चारे का काम करती है यह दुधारू पशुओं के लिए काफी अच्छी मानी जाती हैं  कहा जाता है कि बेडू के पत्ते दुधारू पशुओं को खिलने से दूध में बढोतरी होती है| बेडू पाको बारो मासा, ओ नरणी काफल पाको चौता मेरी छैला/बेडू पाको बारो मासा, ओ नरणी काफल पाको चौता मेरी छैला/अल्मोड़ा की, नंदा देवी, ओ नरणी फूल चढोनो पाती,मेरी छैला। ये लाइनें उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगीत की हैं। ये गीत बेडू के फल की विशेषता बता रहा है। इस फल को केवल सांस्कृतिक महत्व ही नहीं मिला बल्कि यह फल लोगों को स्वस्थ रखने के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इस फल की सब्जी बसंत ऋतु की शुरुआत में बनाई जाती है। उत्तराखंड वनस्पति के मामले में भरपूर है। जंगली पेड़, पौधों से लेकर खानेपीने की चीजों की कमी नहीं है। बेडू का फल खाने से कब्ज, तंत्रिका विकार, जिगर की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। बेडू का फल केवल उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि यह कश्मीर, ईरान, सोमानिया, हिमाचल, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सुडान तथा इथियोपिया में भी पाया जाता है। दुनियाभर में इसकी 800 प्रजातियां पाई जाती हैं। हिमाचल में बेडू फागो नाम से जाना जाता है। इसे फाल्गू या अंजीरी भी कहा जाता है। बेड़ू उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पाया जाने वाला जंगली फल है। जिसे पहाड़ी अंजीर भी कहते हैं। ये फल बारह महीने होने वाला फल है। जिसे स्थानीय प्रशासन की पहल पर विश्व स्तर पर खास पहचान मिलने जा रही है।डीएम पिथौरागढ़ आशीष चौहान की पहल रंग ला रही है जो कि बेड़ू से अलग अलग उत्पाद बनाकर पूरे देश में बेचने की पॉलिसी पर काम कर रहे हैं। लोकल उत्पाद के जरिए बेड़ू से जैम,स्क्वैश, चटनी,जूस आदि उत्पाद बनाया जा रहा है। इन्हें ऑनलाइन बाजार भी उपलब्ध कराया जा रह है। इससे कई फायदे हैं एक तो पहाड़ के फलों को पहचान मिल सके और रोजगार बढ़ाने की दिशा में भी यह पहल कारगर हो। इसके साथ ही स्थानीय किसानों की आय भी इससे कई गुना बढ़ गई है। जिससे पिथौरागढ़ के लोगों के लिए ये योजना काफी फायदेेमंद साबित हो रही है। बेड़ू से अलग अलग उत्पाद बनाकर पूरे देश में बेचने की पॉलिसी पर काम कर रहे हैं। लोकल उत्पाद के जरिए बेड़ू से जैम,स्क्वैश, चटनी,जूस आदि उत्पाद बनाया जा रहा है। इन्हें ऑनलाइन बाजार भी उपलब्ध कराया जा रह है। इससे कई फायदे हैं एक तो पहाड़ के फलों को पहचान मिल सके और रोजगार बढ़ाने की दिशा में भी यह पहल कारगर हो। इसके साथ ही स्थानीय किसानों की आय भी इससे कई गुना बढ़ गई है। जिससे पिथौरागढ़ के लोगों के लिए ये योजना काफी फायदेेमंद साबित हो रही है।बेडू का उपयोग वसंत की प्रारंभिक सब्जी के रूप में भी किया जाता है। उन्हें पहले उबाला जाता है और फिर निचोड़ कर पानी निकाला जाता है। फिर उनसे एक अच्छी हरी सब्जी तैयार की जाती है। इसक फल कच्चा मीठा रसीला होता है । बिना फलों और युवा अंकुरों को पकाया जाता है और सब्जी के रूप में भी खाया जाता है । इस फल की खासियत को देखते हुए स्थानीय बोली में एक गीत भी खूब प्रचलित है। जिसमें एक पंक्ति में बताया गया है बेडू पाको बारो मासा, ओ नरणी काफल पाको चैता मेरी छैला अर्थात बेडू 12 महीनों पकता है। यह गीत विश्व में उत्तराखंड के लोगों के लिए खास प्रसिद्ध है।इसको लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ट्वीट कहा कि पीएम मोदी ने बेडू का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वास्तव में बेडू स्वास्थ्य के लिए संजीवनी हैए जिसके माध्यम से स्थानीय लोगों द्वारा अनेक रोगों का शमन किया जाता है। प्रधानमंत्री ने पिथौरागढ़ प्रशासन के द्वारा बेडू के उत्पादन को बढ़ावा देकर रोजगार सृजन व खनिज एवं वनस्पतियों के संरक्षण के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। मुख्यमंत्री ने पिथौरागढ़ जिलाधिकारी आशीष चौहान को इसके लिए बधाई दी है।जिलाधिकारी पिथौरागढ़ डाक्‍टर आशीष चौहान की पहल पर सुदर्शन स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बेडू से जैम, स्क्वैश, चटनी, जूस आदि उत्पाद बनाए जा रहे हैं। जिलाधिकारी डाक्‍टर चौहान ने बताया कि इस वर्ष बेडू के 500 किग्रा उत्पाद तैयार किए गए। इसे अगले वर्ष 250 से 300 क्विंटल करने का लक्ष्य है।बेडू विटामिन ए, बी1, बी2, सी, खनिज, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, अमीनो एसिड और फेनोलिक का अच्‍छा स्रोत है।बेडू पाचन से संबंधित रोग में बहुत फायदेमंद होता है।यह डायट्री फाइबर का एक अच्छा स्रोत है।पहाड़ी अंजीर का सेवन दिल के लिए फायदेमंद होता है।ब्लड में शुगर की मात्रा का कम करता है।कोलेस्ट्रॉल लेवल हाई है तो बेडू का सेवन आपके फायदेमंद हो सकता है।बेडू का सेवन कैंसर से बचाव में सहायक हो सकता है।इसके सेवन से पेट और ब्रेस्ट कैंसर का खतरे कम होता है कई जगह इसे सब्जी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उत्तराखंड में बेडू का कोई व्यावसायिक उत्पादन नहीं होता है लेकिन बहुत पहले गांव के लोग जंगल से बेडू लाकर खाते थे।बेडू का उत्तराखंड की संस्कृति से कितना लगाव था इसका अंदाजा आप पौराणिक गीतों से भी लगा सकते हैं किसानों को आय को दोगुना करने के लिये पहाड़ी अंजीर बेडू के जूस, जैम, चटनी, अचार समेत फल सुखाकर ड्राई फ्रूट तक तैयार किये गये है, जिन्हें ऑनलाइन और ऑफलाइन बाजारों में खूब पसंद किया जा रहा है. पिथौरागढ़ प्रशासन की पहल के कारण बेडू से बने उत्पादों को सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में खूब सराहना मिल रही है. उत्पादों को व्यावसायिक स्तर पर बाजार में उतारा है जिससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार पैदा करने में मदद मिलेगी. यह भारत के लोगों के लिए राज्य की प्राकृतिक बहुतायत, संस्कृति और परंपरा का एक टुकड़ा भी पूरा करेगा। लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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